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ऑटोइम्यून डिसऑर्डर से जूझ रहे लोगों में 40 % अधिक होता है मनोवैज्ञानिक विकारों का जोखिम

ऑटोइम्यून डिसऑर्डर से जूझ रहे लोगों में मनोवैज्ञानिक विकार होने की संभावना 40 % अधिक होती है। गैर-न्यूरोलॉजिकल ऑटोइम्यून विकार और मनोविकृति के बीच संबंध को लेकर एक ताजा अध्ययन ने इस स्थिति के सबंध में कई परतों को खोला है। ऑटोम्यून्यून विकार में जहां शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपने स्वयं के कोशिकाओं पर हमला करती है, ऐसे में मनोवैज्ञानिक विकार होने की संभावना बढ जाती है। इस अध्ययन में इस तथ्य की पुष्टि हुई है।


इससे पहले किए गए एक अन्य शोध में पाया गया कि आम जनसंख्या में अपेक्षाकृत मनोविज्ञान वाले लोगों में रूमेटोइड गठिया की दर कम थी लेकिन बाद के अध्ययनों से पता चला कि अन्य ऑटोम्यून्यून विकार, जैसे कि कोएलियाक बीमारी और autoimmune थायराइड वाले मरीजों में मनोवैज्ञानिक विकार अधिक पाया गया। इसके बाद वैज्ञानिकों ने यह स्पष्ट कर दिया कि ऑटोम्यून्यून विकारों और मनोविज्ञान के बीच संबंध है। इन विकारों और मनोवैज्ञानिक स्थितियों के बीच संबंधों के बारे में अनिश्चितता और इस क्षेत्र में बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए वैज्ञानिकों ने अनुसंधान की समीक्षा और मेटा-विश्लेषण करने का निर्णय लिया।

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मेटा विश्लेषण एक विधि है जिसमें कई अध्ययनों के डेटा का संयुक्त विश्लेषण किया जाता है ताकि अधिक आंकडों को हासिल किया जा सके। इस तरह के अध्व्ययनों के जरिए महत्पपूर्ण परिणामों को हासिल करने की संभावना बढ जाती है।

जैविक मनोचिकित्सा जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में 30 प्रासंगिक अध्ययन, और 25 लाख लोगों पर डेटा शामिल था।अध्ययन में वैज्ञानिकों ने ऑटोइम्यून विकारों पर ध्यान केंद्रित किया जो परिधीय प्रणाली को प्रभावित करते हैं। जैसे टाइप 1 मधुमेह, क्योंकि वैज्ञानिकों को इस विषय में खास रूचि थी कि मस्तिष्क
के विपरीत शरीर को लक्षित करने वाले ऑटोम्यून्यून विकार मनोवैज्ञानिक विकास को प्रभावित कर सकते हैं।

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मुख्य विश्लेषण के लिए, उन्होंने रूमेटोइड गठिया को छोड़कर सभी गैर-न्यूरोलॉजिकल ऑटोम्यून्यून विकारों से डेटा एकत्र किया (नकारात्मक गठजोर को देखते हुए) और पाया कि ऑटोम्यून्यून डिसऑर्डर वाले रोगियों में मनोवैज्ञानिक विकार (जैसे स्किज़ोफ्रेनिया) होने की संभावना सामान्य लोगों के मुकाबले में 40% अधिक रहती है।
विश्लेषण के लिए वैज्ञानिकों ने इंडिविजुअल तरीके से ऑटोम्यून्यून विकारों की जांच की। जिसमें इसका खुलासा हुआ कि ऐसे रोगियों में मानोवज्ञानिक विकार होने की संभावना अधिक है। यह अध्ययन लंदन के एक वैज्ञानिक दल ने किया है।

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