नई दिल्ली : कैटेरेक्ट सर्जरी को लेकर सामने आई ताजा रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि 50 प्रतिशत मरीज सर्जरी करवाने में देर कर देते हैं। इसका सीधा असर उनकी आंखों की रोशनी पर पडता है और देर से सर्जरी होने की वजह से उनके रिकवरी में भी अधिक वक्त लग जाता है।
देश में आंखों की रोशनी जाने का एक मुख्य कारण है कैटेरेक्ट यानि मोतियाबिंद है। हालांकि, आसान सी सजर्री के द्वारा इसका इलाज संभव है। सर्जरी की सफलता दर भी 98 प्रतिशत से अधिक होती है। नेशनल आई इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार कैटेरेक्ट सजर्री कराने वाले हर 10 में 9 लोगों की आंखें ठीक हो जाती है।
उन्हें सजर्री के बाद फिर से स्पष्ट दिखाई देने लगता है। कैटेरेक्ट आमतौर पर 40 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोगों को होता है। कैटेरेक्ट जागरुकता माह के अवसर पर प्रिस्टाईन केयर ने ग्रेट इंडिया कैटेरेक्ट सर्वे रिपेार्ट पेश किया है। आंखों की देखभाल के बारे में जागरुकता बढ़ाना इसका मुख्य उद्देश्य है। यह सर्वेक्षण महानगरों के 1000 से अधिक लोगों पर किया गया। जिनकी कैटेरेक्ट सजर्री हो चुकी है। आंकड़ों का विश्लेषण प्रिस्टाईन केयर डेटा लैब ने किया है।
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सवेर्क्षण के मुताबिक 50 फीसदी से अधिक भारतीय मरीज़ कैटेरेक्ट सर्जरी कराने में देरी करते हैं क्योंकि ज़्यादातर मरीज़ों को यह लगता है कि कैटेरेक्ट सर्जरी कराने से उनकी आंखों की रोशनी जा सकती है। कुछ लोगों को यह भी लगता है कि सर्जरी के दौरान उन्हें काफी दर्द का सामना करना पडेगा और रिकवरी में काफी वक्त भी लग जाएगा। सर्जरी कराने वाले 52 फीसदी मरीज़ों ने अनुभवी सर्जन को चुना1 41 फीसदी मरीज़ों ने आधुनिक तकनीक को महत्व दिया। जबकि 26 फीसदी मरीज़ों ने सर्जरी की लोकेशन यानि नेत्र अस्पताल और क्लिनिक के आधार पर फैसला लिया। 24 फीसदी मरीज़ों ने सर्जरी की लागत को ध्यान में रखते हुए सर्जरी का फैसला लिया।
सवेर्क्षण के नतीजे पर ऑप्थेेल्मोलोजिस्ट डाॅ. कृपा पुलासारिया ने बताया कि कैटेरेक्ट सजर्री में देरी के कई कारण हो सकते हैं। आमतौर पर जो मरीज़ आधुनिक तकनीक के फायदों को समझते हैं, वे सर्जरी के बारे में ज़्यादा चिंता नहीं करते। मरीज़ों को सही जानकारी देकर दद, जटिलता या आंखों की रोशनी खोने का डर दूर किया जा सकता है।
प्रिस्टाईन केयर की सह संस्थापक डाॅ. गरिमा साहनी के मुताबिक कैटेरेक्ट देश में आंखों की रोशनी कम होने या अंधेपन की मुख्य वजह बन रहा है। सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि इसके बारे में लोगों के बीच जानकारी का अभाव है। अन्य इलेक्टिव पक्रियाओं की तुलना में कैटेरेक्ट सर्जरियां अधिक होती है। हम इस आधुनिक तकनीकों के जरिए खुद को अपडेट करते रहते हैं।
हाईलाइट्स :
1000 से अधिक लोगों पर सवेर्क्षण किया गया
1 लाख से अधिक कैटेेरेक्ट मरीज़ों के सवालों और कंपनी द्वारा की गई 7000 कैटेरेक्ट सजर्रियों पर अध्ययन किया गया
शहरों की संख्या : 40 से अधिक शहर
एनसीआर, मुंबई, कोलकाता, बैंगलोर, पुणे, हैदराबाद। इसके अलावा चेन्नई सहित देश के 7 महानगर शामिल हैं
युवाओं में बढ रहे हैं मोतियाबींद के मामले :
प्रिस्टाईन केयर डेटा लैब के अनुसार, सर्वेक्षण के दौरान 1 लाख से अधिक कैटेरेक्ट मरीज़ों के सवालों तथा कंपनी द्वारा की गई 7000 से अधिक कैटेरेक्ट सर्जरियों का अध्ययन किया गया। 59 फीसदी कैटेरेक्ट सर्जरियां 56 साल या इससे अधिक उम्र में की जाती हैं। आंकड़ों के मुताबिक युवाओं में भी कैटेरेक्ट के मामले बढ़ रहे हैं। इसके कई कारण हैं, जैसे लम्बे समय तक यूवी किरणों क संपर्क में रहना, कम उम्र में डायबिटीज़, धूम्रपान, शराब का सेवन, पयार्वरण कारक जैसे भोजन में मिलावट या प्रदूषण।
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Bahut hi sundar khabar