Reality or Illusion : मुहावरा है या वास्तव में है कोई वैज्ञानिक आधार
नई दिल्ली।टीम डिजिटल : Reality or Illusion : क्या खरबूजा (melon) खरबूजे को देखकर वाकई रंग बदलता है? क्या वास्तव में ऐसा होता है या फिर यह महज एक कहावत है। क्या इस कहावत के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार भी है? इस मुहावरे का प्रयोग उन लोगों के लिए किया जाता है, जो एक दूसरे को देखकर नकल करते हैं। आईए, यहां हम आपको इन सवालों का जवाब देते हैं।
कैसे बनी यह कहावत

यह कहावत आमतौर पर खरबूजे का उदाहरण देते हुए इंसानों के लिए बनाई गई है। इसका अर्थ यह है कि जब खरबूजे के पकने का समय होता है, तब सबसे पहले वह खरबूजा पकता है, जिसका फूल सबसे पहले आया था। जब खरबूजा पकने लगता है, तब उसका रंग हरे से पीला होने लगता है। यह खरबूजे के पकने का संकेत है। इस प्रक्रिया के बाद दूसरे खरबूजे भी पकने शुरू हो जाते हैं। इसी प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए यह कहावत बनाई गई थी, जो आज बेहद लोकप्रिय हो चुकी है।
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क्या है वैज्ञानिक आधार?
खरबूजा खरबूजे को देखकर रंग बदलता है.. इसके पीछे कौन सा वैज्ञानिक आधार है। दरअसल, एथिलीन (गैसियस कंपाउंड) फलों को पकाने के लिए जिम्मेदार होता है। पके हुए फल एथिलीन कंपाउंड को रिलीज करते हैं। इसका असर पक रहे फल के आसपास मौजूद अन्य फलों पर भी पडता है। कई बार यह भी देखा गया है कि फल बहुत अधिक पककर सडने भी लग जाते हैं। ऐसे में उसके आसपास मौजूद दूसरे फल भी प्रभावित होते हैं। इसके पीछे मुख्य रूप से एथिलिन ही जिम्मेदार होता है। एथिलिन एक गैसियस कंपाउंड होने के साथ एक प्लांट हार्मोन भी है।
आपने देखा होगा कि कुछ फलों के ढेर में एक या दो फल के पकने की प्रक्रिया शुरू होते ही दूसरे फल भी पकने शुरू हो जाते हैं। पकने वाले फलों में एथिलिन गैसियस फॉर्म में होता है। जब पके फलों से गैस रीलीज होता है और दूसरे फल इसके संपर्क में आते हैं, तब वे भी पकने की प्रक्रिया में आ जाते हैं। ऐसे में यह साबित होता है कि खरबूजा खरबूजे को देखकर रंग बदलता है, यह महज कहावत ही नहीं है बल्कि इसके पीछे ठोस वैज्ञानिक आधार भी है।
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