Dilated Cardiomyopathy से पीडित बच्चे का करना पडा हार्ट ट्रांसप्लांट
नई दिल्ली/ चेन्नई| टीम डिजिटल : Dilated Cardiomyopathy से पीडित डेढ़ साल के बच्चे को मेडिकल टीम बुल्गारिया से चेन्नई लेकर आ रही थी। जब विमान कराची के हवाई क्षेत्र में पहुंचा तभी बच्चे को कार्डियक अरेस्ट (cardiac arrest) हुआ। यह देखकर मेडिकल टीम सकते में आ गई।
हालात को देखते हुए मेडिकल टीम तुरंत हरकत में आई और 40 मिनट तक लगातार सीपीआर देने के बाद बच्चे को रिकवर कर लिया गया। यह सब हवाई यात्रा के दौरान ही हो रहा था। बच्चे की जिंदगी फिर तब संकट में आ गई, जब चेन्नई एयपोर्ट पर बच्चे को एक बार फिर कार्डियक अरेस्ट हुआ। इस बार भी मेडिकल टीम 45 मिनट के अथक प्रयासों के बाद बच्चे को बचाने में कामयाब रही।
बुझे चिराग ने जगाई जीवन ज्योति
एमजीएम हेल्थकेयर के इंस्टीट्यूट ऑफ हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट एंड मैकेनिकल सर्कुलेटरी सपोर्ट के निदेशक डॉ. के आर बालकृष्णन Dilated Cardiomyopathy (DCM) की वजह से टर्मिनल हार्ट फेल्योर (terminal heart failure) से पीडित बच्चे की हालत चिंताजनक थी।
अस्पताल लाए जाने के बाद उसे ऑपरेटिंग रूम में ले जाया गया। हार्ट को सपोर्ट देने के लिए वेनोआर्टेरियल (VA)-ईसीएमओ के साथ कनेक्ट किया गया। इसी हालत में बच्चे को आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया। करीब 48 घंटे के बाद अचानक बच्चे को चमत्कारिक तरीके से होश आया।
डॉक्टर आर्टिफिशियल हार्ट पंप लगाने की रणनीति पर विचार कर ही रहे थे कि तभी अचानक मुंबई के वाडिया चिल्ड्रेन अस्पताल से उन्हें उम्मीद भरी जानकारी मिली। मुंबई के अस्पताल में 2 वर्षीय बच्चे को डॉक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित किया था। ब्रेन डेड बच्चे का हार्ट चेन्नई के अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे बच्चे के लिए उपलब्ध कराया जा सकता था।
अस्पताल के डॉक्टरों ने तत्काल राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) से संपर्क किया। जिसके बाद बच्चे के लिए हृदय की व्यवस्था की गई। यहां एक खास बात और सामने आई है। बच्चे को जिस ब्रेन डेड बच्चे ने अंगदान किया, उन दोनों के ब्लड ग्रुप आपस में मेल नहीं खाते थे। बावजूद इसके बच्चे का सफल हार्ट ट्रांसप्लांट (Inpatient Pediatric Heart Transplant) कर लिया गया।
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बेमेल ब्लड ग्रुप के बावजूद इसलिए सफल हुआ हार्ट ट्रांसप्लांट
डॉ. के आर बालकृष्णन के मुताबिक ब्लड ग्रुप मिसमैच होने के बावजूद हार्ट ट्रांसप्लांट सफल रहा क्योंकि ऐसा सिर्फ शिशुओं और छोटे बच्चों के मामलों में ही संभव हो पाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली अपरिपक्व होती है और शरीर द्वारा ऑर्गन रिजेक्ट होने की बहुत कम संभावना रहती है।
यही कारण है कि ब्लड ग्रुप एक नहीं होने के बावजूद भी डोनर का हार्ट (ABO incompatible heart) रिसिवर बच्चे में ट्रांसप्लांट कर दिया गया। अगर एक व्यस्क मरीज का मामला होता, तब ऐसा करना संभव नहीं था। सर्जरी के बाद कई दिनों तक बच्चे को ईसीएमओ सपोर्ट पर रखने की आवश्यकता पड़ी। इस बीच आर्गन रिजेक्शन की जरा सी संभावना से बचाव के लिए बच्चे को इम्यूनोसप्रेंट्स दिए गए। बच्चा अब पूरी तरह से ठीक है और तेजी से रिकवर कर रहा है।
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