शाकाहार या मांसाहार पर टिके रहना केवल इच्छाशक्ति का नहीं है मामला
नई दिल्ली। vegetarianism : क्या आप नॉनवेज छोडने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मांस खाने की इच्छा पीछा ही नहीं छोड रही? शाकाहार (vegetarianism) अपनाना मुश्किल हो रहा है। घबराएं नहीं, इसमें आपकी कोई गलती नहीं। जर्नल पीएलओएस वन में प्रकाशित ताजा शोध में वैज्ञानिकों ने कुछ अलग खुलासा किया है।
इस अध्ययन में कम से कम एक साल तक शाकाहारी भोजन (vegetarianism) का पालन करने वाले लोगों से जुड़े जीन के एक समूह (a group of genes) की पहचान की गई है। अध्ययन के मुख्य लेखक और नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में पैथोलॉजी के प्रोफेसर एमेरिटस नबील यासीन (Professor Emeritus Nabil Yasin) के मुताबिक इस अध्ययन का निष्कर्ष यह संकेत देता हैं कि शाकाहार (vegetarianism) पर टिके रहना केवल इच्छाशक्ति से जुडा हुआ मामला नहीं है बल्कि इसके लिए जीन भी जिम्मेदार हो सकते हैं।
अनुवांशिकी पर भी निर्भर हो सकती है आहार से संबंधित पसंद
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यासीन के मुताबिक अध्ययन में इस बात के संकेत मिले हैं कि आपके लिए शाकाहार (vegetarianism) या मांसहार, इन दोनों में से कौन सा उपयुक्त है और कौन सा नहीं, यह काफी हदतक आपके आनुवंशिकी (genetics) पर निर्भर करता है। यादि आप किसी एक पर टिके नहीं रह सकते, तो इसके लिए स्वयं को दोष देने की आवश्यकता नहीं है।
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अध्ययन में ऐसे हजारों शाकाहारियों (vegetarianism) और मांसाहारियों के आनुवंशिकी की तुलना की गई, जिन्होंने यू.के. बायोबैंक के साथ अपना चिकित्सा और जीवनशैली से संबंधित डेटा शेयर किया था। यह एक बायोमेडिकल अनुसंधान डेटाबेस (Biomedical Research Database) है, जिसमें यू.के. में लगभग आधे मिलियन प्रतिभागियों की जानकारी शामिल है।
तीन जीनों की पहचान की गई जो पसंद से जुडे हो सकते हैं
अध्ययन में लगभग 5,300 शाकाहारियों और 329,000 मांसहारियों के डेटा का विश्लेषण किया गया। इस दौरान तीन ऐसे जीनों की पहचान की गई, जो शाकाहारी जीवन शैली (vegetarianism) पसंद करने वाले लोगों के पसंद से खासतौर पर जुडे हुए थे। ये तीनों एक गुणसूत्र पर स्थित हैं, जिस प्रक्रिया के तहत ऊर्जा के लिए वसा टूट जाती है।
इसमें मस्तिष्क कार्य और लिपिड मेटाबॉलिज्म (Metabolism) में शामिल जीन होते हैं। परिणामों ने शाकाहार (vegetarianism) से जुड़े 31 अन्य जीनों की ओर भी इशारा किया है। हालांकि, यह एक शुरूआती अध्ययन है और इसमें अभी ठोस प्रमाणिक जानकारियों को जुटाया जा रहा है। शुरूआती निष्कर्ष के मुताबिक कई जीन हैं, जो लिपिड मेटाबॉलिज्म् (lipid metabolism) में भूमिका निभाते हैं।
अभी पूरी तरह दावा नहीं कर सकते वैज्ञानिक
यासीन के मुताबिक “यह अनुमान लगाया जा रहा है कि शायद शाकाहारी भोजन (vegetarianism) का पालन करने की क्षमता का जीन से लेना-देना हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर कर सकता है कि शरीर में वसा का किस प्रकार उपयोग होता है और यह मस्तिष्क के कार्य को कैसे प्रभावित करता है।” हालांकि, उन्होंने कहा कि अध्ययन केवल आनुवंशिक संबंध पर प्रकाश डालता है और यह दावा नहीं करता है कि विशेष जीन सीधे तौर पर लोगों को शाकाहारी भोजन पसंद करने के लिए प्रेरित करते हैं।
सख्ती से vegetarianism का पालन करने वालों को किया अध्ययन में शामिल
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शोध के लिए, यासीन और उनकी टीम ने वैसे लोगों को चुना, जो सख्त रूप से शाकाहार का पालन करने वाले माने जाते थे। जिन्होंने कम से कम एक वर्ष से जानवरों के मांस या मांस उत्पादों का सेवन नहीं किया था। यू.के. (UK) बायोबैंक के लिए प्रतिभागियों द्वारा भरी गई दो प्रश्नावलियों के आधार पर यह तय किया गया कि इस अध्ययन के लिए कौन योग्य है।
वर्ष 2006 और 2019 के बीच चार बार प्रशासित (administered), प्रतिभागियों से स्वयं रिपोर्ट करने के लिए कहा गया कि क्या उन्होंने पिछले एक वर्ष के भीतर मांस खाया था? दूसरी बार, 2009 और 2012 के बीच पांच बार, लोगों से यह पूछा गया कि पिछले 24 घंटों के भीतर उन्होंने जो कुछ भी खाया था, उसकी जानकारी मांगी गई।
पहले भी हो चुके हैं ऐसे अध्ययन
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हालांकि, इस तरह के अध्ययन पहली बार नहीं किए गए हैं। पिछले साल प्रकाशित एक अध्ययन में लोगों के जीन और उनके द्वारा पसंद किए जाने वाले भोजन के प्रकारों के बीच भी संबंध पाए गए थे और लंबे समय से कुछ खाद्य पदार्थों के प्रति अरुचि के लिए आनुवंशिक संबंध को वजह बताई गई थी। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों को धनिया पसंद नहीं होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनमें कुछ खास जीन होते हैं, जो धनिया को नापसंद करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
“सिट्रो जीन (centro gene) वास्तव में आपकी नाक में एक घ्राण रिसेप्टर (olfactory receptor) है, जो सुगंध से जुडे यौगिकों (Compounds) को जोडता है।” यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो स्कूल ऑफ मेडिसिन में बायोमेडिकल इंफॉर्मेटिक्स विभाग में सहायक प्रोफेसर जोआन कोल के मुताबिक, “कुछ लोगों में इस जीन का एक संस्करण (version) होता है, जो उन्हें धनिया की गंध और स्वाद को साबुन जैसा महसूस कराता है। इसलिए ऐसे लोग धनिया को नापसंद करने लगते हैं और इसे ज्यादा खाना पसंद नहीं करते हैं।
जुडवा बच्चों पर कर चुके हैं ऐसे अध्ययन
इसके उलट पहले किए गए शोधों में आहार संबंधी प्राथमिकताओं में आनुवंशिकी की भूमिका (The role of genetics in dietary preferences) की जांच के लिए जुड़वा बच्चों की तुलना की गई। ऐसे ही एक अध्ययन की मुख्य लेखिका डॉ. लौरा वेसेल्डिज्क के मुताबिक, बीते जनवरी में प्रकाशित शोध में पाया गया कि आनुवांशिकी यह भी तय कर सकता है कि आप मुर्गी, मछली या किस जीव का मांस खाना पसंद करेंगे और किसका नहीं।
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ऐसे जीन 70 से 80% व्यक्तिगत अंतर के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। एम्स्टर्डम यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के एक व्यवहारिक आनुवंशिकीविद् वेसेल्डिज्क के मुताबिक, मानव लक्षण कभी भी प्रकृति या अकेले पोषण द्वारा निर्धारित नहीं होते हैं। यह मामला पूरी तरह से उलझा हुआ है। वेसेल्डिज्क के अनुसार जब आहार की बात आती है, तो एक व्यक्ति का पालन-पोषण, परिवेश, धार्मिक और नैतिक विश्वासों, स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं या संस्कृति से भी प्रभावित हो सकता है।
अध्ययन में शामिल किए गए सफेद कॉकेशियंस
यासीन ने अपने अध्ययन की कुछ प्रमुख बातों की ओर भी इशारा किया। पहला यह कि अनुसंधान में केवल सफेद कॉकेशियंस (white caucasians) को शामिल किया गया। इस अध्ययन से अन्य जातियों को बाहर रखा गया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो जीन किसी विशेष जाति से जुड़े हो सकते हैं, वे गलत तरीके से शाकाहारी होने से जुड़े तो नहीं है।
साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि निष्कर्ष को अधिक व्यापकता से लागू करने के लिए शोध को अन्य समूहों पर भी करने की आवश्यकता होगी। दूसरी बात उन्होंने यह कही कि, अध्ययन में मानव जीनोम (human genome) के केवल एक छोटे से अंश की जांच की गई, जिससे इस बात की अभी संभावना है कि इसके अतिरिक्त भी कुछ जीन शाकाहारी होने की प्रवृत्ति (vegetarianism) से जुडे हो सकते हैं।
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