नेपाल में अन्नपूर्णा पीक की चढाई के दौरान हुआ था हादसा
Delhi Aiims : नेपाल के अन्नपूर्णा पीक की चढाई करने के दौरान एक हादसे में अनुराग मल्लू (Anurag Mallu) को मौत ने अपने पंजे में दबोच लिया था। 80 मीटर बर्फ में धंसे और 72 घंटों तक बर्फीले गड्ढे के चक्रव्यूह में अनुराग इसतरह से फंस चुके थे, जहां से मौत निश्चित ही थी। दो दिनों तक इस भीषण स्थिति में रहने के बाद उनके ग्रुप के सदस्यों को उन्हें ढूढ निकालने में कामयाबी मिली। नेपाल में शुरूआती उपचार के बाद उन्हें दिल्ली लाया गया। इन सबके बीच सभी को यही लग रहा था कि इस हादसे के बाद मौत के पंजे से निकलना लगभग नामुमकिन ही होगा।
एम्स ट्रॉमा सेंटर में लाए गए अनुराग
हादसे का शिकार हो चुके पर्वतारोही अनुराग मल्लू को एम्स दिल्ली (Delhi Aiims) के जयप्रकाश नारायण ट्रॉमा सेंटर (Jaiprakash Narayan Trauma Center) लाया गया। जहां उन्हें बर्न एंड प्लास्टिक विभाग (Burnt and Plastic Department) में उपचार के लिए भर्ती किया गया। इस विभाग के प्रमुख डॉ. मनीष सिंघल (Dr. Manish Singhal) के मुताबिक, अनुराग को बेहद मुश्किल हालात में एम्स लाया गया था। अबतक उनकी छह सर्जरियां की जा चुकी है। जिसके बाद अब वह अपने पैरों पर चलने की स्थिति में हैं।
इतनी आसानी से नहीं होता हौसले का अंत
34 वर्षीय पर्वतारोही अनुराग (climber anurag Mallu) के मुताबिक जब वह नेपाल की अन्नपूर्णा चोटी (Annapurna Peak of Nepal) पर अपनी चढाई पूरी कर लौट रहे थे, इस दौरान एक गलत रस्सी पकड लेने की वजह से वे पहाड की दो चोटियों के बीच मौजूद गहरी बर्फीली खाई में गिर गए।
गड्ढे में गिरने के बाद भी वह पहले दो दिनों तक होश में थे। 80 मीटर गिरने के बाद भी वह सचेत और सतर्क रहे। गिरने के बाद उन्हें किसी तरह का फ्रैक्चर नहीं हुआ था। इतने बडे संकट में घिरने के बाद भी अनुराग ने हिम्मत नहीं हारी। वह अपने गो-प्रो कैमरे से वीडियो बनाते रहे लेकिन अंतिम 12 घंटों में वे बेहोश हो गए। उसके बाद क्या हुआ, उन्हें इसके बारे में कुछ भी याद नहीं है।
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कई अंग हो चुके थे फेल
डॉ मनीष सिंघल के मुताबिक, इन्हें शाम को सात बजे मरीज की तरफ से रिक्वेस्ट प्राप्त हुई थी। अनुराग को नेपाल से दिल्ली (Delhi Aiims) लाना आसान नहीं था। उन्हें बेहद खराब हालत में दिल्ली एम्स लाया गया। दिल्ली एम्स (Delhi Aiims) पहुंचते हुए उनके कई ऑर्गन फेल हो चुके थे।
खुद का जिंदा बचने को बताया चमत्कार
अनुराग के मुताबिक, वह आज जिंदा हैं, यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। पिछले 200 दिनों के बाद, उन्हें नई जिंदगी मिली है। जिसका श्रेय वे पूरी तरह एम्स (Delhi Aiims) के चिकित्सकों और उपचार करने वाली टीम को देते हैं। अनुराग ने बताया कि उनका बेड नम्बर 9 था। शायद यह बेड नंबर उनके लिए भाग्यशाली साबित हुआ।
वह पूरे 5.5 महीने बेड पर रहे। अनुराग के मुताबिक, वह अपने पैरों पर कभी खडा भी हो पाएंगे, इन्हें इसका यकीन नहीं था। अनुराग ने कहा कि एम्स उनके लिए एक मंदिर की तरह है, जहां के भगवान की वजह से आज वह जिंदा हैं। उन्होंने कहा कि सबकुछ ठीक होने के बाद वह एक बार फिर माउन्टेन एक्पीडीशन शुरू करेंगे।
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संक्रमण से बचाना डॉक्टरों के लिए थी बडी चुनौती
एम्स (Delhi Aiims) में आईसीयू फिजीशियन डॉ. कपिलदेव सोनी के मुताबिक, अनुराग बेहद क्रिटिकल स्थिति में एम्स लाए गए थे। नर्सिंग विभाग से लेकर आईसीयू कर्मचारियों के लिए अनुराग का केस किसी बडी चुनौती से कम नहीं थी। संक्रमण से अनुराग को बचाए रखना सबसे जरूरी और पहली चुनौती थी। डॉक्टर के मुताबिक, जब 31 अक्टूबर को उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया, तब वह पल लोगों के लिए भावुक करने वाला था। अनुराग के इस जिंदगी और मौत के बीच की लडाई से उबारने में एम्स के नौ विभागों के डॉक्टरों ने अपनी पूरी क्षमता झोंक दी थी।
कुछ और सर्जरियां करेंगे Delhi Aiims के डॉक्टर
एम्स (Delhi Aiims) के मुताबिक, इस तरह के मामले उनके पास पहले भी आते रहे हैं। इनमें से कई मामले भारतीय सेना के जवानों के भी थे। जिस वक्त अनुराग को अस्पताल लाया गया था, वे ऑक्सीजन सर्पोट पर थे। मरीज की डायलिसिस भी की जा रही थी। सर्जरी को अंजाम देने से पहले मरीज को स्थिर हालत में लाना बहुत जरूरी था। आने वाले दिनों में अनुराग की कुछ सर्जरियां और की जाएगी। एम्स के डॉक्टर इसके लिए योजना तैयार करने में जुटे हुए हैं।
चेतन चीता के केस में भी कमाल कर चुके हैं Delhi Aiims के डॉक्टर
दिल्ली एम्स (Delhi Aiims) के डॉक्टरों ने कुछ ऐसे ही जटिल मामले में पहले भी अपनी चिकित्सकीय कार्यकुशलता का कमाल दिखा चुके हैं। सीआरपीएफ के एक अधिकारी चेतन चीता (CRPF officer Chetan Cheetah) कश्मीर के बांदीपुरा इलाके में आतंकवादियों से भुठभेड में बुरी तरह घायल हो चुके थे। उन्हें नाजुक हालत में एम्स लाया गया था। इस मामले में भी यह माना जा रहा था कि उनके बचने की संभावना काफी कम है। चीता को मस्तिष्क, दाहिनी आंख, पेट, दोनों हाथ, बाएं हाथ और नितंब क्षेत्र में गोलियां लगी थी।
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उसका धड़ बुरी तरह से टूट गया था। जबकि, उनकी आंख का गोला भी फट गया था। ट्रॉमा सेंटर में भर्ती होने के 24 घंटों के भीतर, इंट्रा-क्रैनियल दबाव को कम करने के लिए उनकी खोपड़ी के उस हिस्से को हटाने के लिए सर्जरी की गई, जहां गोलियां लगी थी। एम्स के डॉक्टर ने उनकी बांई आंख को भी बचा लिया था।
इतना ही नहीं चीता को घाव की वजह से संक्रमण भी हो गया था। आईसीयू में करीब दो महीन की गहन देखभाल को एम्स विशेषज्ञों बेहतर तरीके से प्रबंधित किया था। डॉक्टरों ने क्षतिग्रस्त और संक्रमित ऊतकों को हटाने के लिए कई क्षतशोधन प्रक्रियाओं को भी अंजाम दिया। अपने उपचार के दौरान ही चीता मेनिनजाइटिस (मस्तिष्क झिल्ली की सूजन) की समस्या की चपेट में भी आ गए थे। इतने चुनौतीपूर्ण स्थिति के बाद भी एम्स के डॉक्टरों ने अपनी सूझबूझ से चेतन चीता को नई जिंदगी दी थी।