IIT और एम्स (Aiims) ने मिलकर तैयार किया डेंटल ट्रॉमा स्प्लिंट (Dental trauma splint)
Delhi Aiims : दिल्ली एम्स (Aiims) और आईआईटी (IIT) की संयुक्त तकनीक से अब दुर्घटना में टूटे दांत को एम्स 3डी प्रिंटिंग तकनीक (AIIMS 3D Printing Technology) से जोड़ा जाएगा।
एम्स के दंत चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र (AIIMS Dental Education and Research Center) के बाल चिकित्सा और निवारक दंत चिकित्सा विभाग (Pediatrics and preventive dental department Aiims) ने आईआईटी दिल्ली (IIT Delhi) के इंजीनियर और एम्स फॉरेंसिक लैब (Delhi AIIMS Forensic Lab) के डॉक्टरों के साथ मिलकर डेंटल ट्रॉमा स्प्लिंट (Aiims Dental trauma splint) का निर्माण किया है।
यह तार 3डी मुद्रित सिलिकॉन आधारित डिजाइन (3D printed silicone -based design) पर तैयार किया गया है। इस तार की मदद से टूटा हुआ दांत फिक्स कर दिया जाएगा (Broken tooth will be fixed with the help of wire in Aiims) और वह अपनी जगह से नहीं हिलेगा। इस तकनीक से मरीजों की रिकवरी (घाव भरने की गति) भी तेज हो जाएगी। सामान्य तार लगाने के दौरान खून का अधिक रिसाव होता है और संक्रमण की भी संभावना बनी रहती है।
Delhi Aiims Dental trauma splint trial में मिले बेहतर परिणाम
एम्स (Aiims Delhi) के डॉक्टर सौरभ शर्मा (doctor Saurabh Sharma AIIMS) के मुताबिक, इस नई तकनीक के ट्रायल (Aiims New technology trial) के दौरान पुराने तरीके से लगाए जाने वाले तार और 3डी प्रिंटिंग की मदद से लगाए गए तार का तुलनात्मक अध्ययन किया गया। ट्रायल में पांच शवों पर दोनों ही तकनीक से तार फिक्स किए गए।
दोनों के परिणाम में काफी समानता पाई गई। जबकि, नई तकनीक से दुर्घटना के दौरान लोगों के टूटे हुए दांतों को फिक्स किया गया। इसके परिणाम भी बेहतर पाए गए। खून के रिसाव से होने वाले संक्रमण को भी रोकने में कामयाबी मिली। डॉ. शर्मा के मुताबिक आगे इस तकनीक के और भी ट्रायल किए जाएंगे।
Delhi Aiims : भारतीय लोगों के जबडे को ध्यान में रखते हुए तकनीक विकसित
एम्स (Aiims) बाल चिकित्सा और निवारक दंत चिकित्सा विभाग के डॉ. सौरभ शर्मा (Dr. Saurabh Sharma of AIIMS Pediatric and Prevention Dental Department) के मुताबिक, यह तकनीक भारतीय लोगों के जबडे को ध्यान में रखते हुए विकसित की गई है। इसके स्पिलंट में 66 एमएम का तार (66 mm wire in splaint) लगाया गया है।
जिसे आसानी से दांत के आगे वाले हिस्से में फिक्स किया जा सकेगा। वहीं, तार फिक्स करने के दौरान जो खून का रिसाव होता है, उसे जैली की मदद से रोकी जाएगी। अभी तक दांत को जोडने के लिए सामान्य तार का इस्तेमाल किया जा रहा था। सामान्य तार को लगाने के दौरान दांत हिल जाते हैं।
वहीं, खून का रिसाव भी अधिक मात्रा में होता है। इससे संक्रमण की संभावना भी बढ जाती है। 3 डी प्रिंटिंग से तैयार तार (Wire prepared from 3D printing) आसानी से फिक्स किया जा सकता है। इस तकनीक के तहत एक ही तार लगाया जाता है, जो मजबूत होने के साथ खूबसूरत भी है।
हादसे में अक्सर टूट जाते हैं आगे के दांत :
एम्स (Aiims) में आने वाले दुर्घटना प्रभावित मरीजों के आंकडों (Data of accident affected patients coming to AIIMS) के मुताबिक, हादसे में ज्यादातर लोगों के आगे के दांत आधे टूटे हुए होते हैं। वहीं, कई मरीजों के दांत अपनी जगह से हिल भी जाते हैं।
डॉक्टरों (Delhi Aiims) के मुताबिक दुर्घटना के दौरान मुंह के बल गिरने वाले मरीजों में आगे के दांत टूटने की आशंका ज्यादा होती है। कई बार एक से अधिक दांत भी टूटे हुए होते हैं। दुर्घटना के दौरान कई बार मरीजों के जबडे में भी फ्रैक्चर हो जाता है। नई तकनीक से मरीजों के टूटे हुए दांतों को जहां बेहतर और जोखिम मुक्त तरीके से जोडा जा सकेगा।
वहीं, उनके घाव के भी जल्दी भरने की संभावना अधिक होगी। एम्स (Delhi Aiims) विशेषज्ञों के मुताबिक आगे होने वाले परीक्षणों को लेकर वे उत्साहित हैं। उम्मीद है कि एम्स (delhi aiims) विशेषज्ञ इस तकनीक को और भी अधिक उन्न्त बनाएंगे, जिससे दुर्घटना पीडित मरीजों के टूटे दांत को जोडने में आसानी होगी और उन्हें संक्रमण का भी जोखिम नहीं रहेगा। मौजूदा तकनीक की यह विशेषता है कि इस तकनीक से दांत जोडने पर घाव भी तेजी से भरते हैं। जिससे मरीजों को तेजी से रिकवरी करने में भी असानी होती है। इससे मरीजों को होने वाली तकलीफ भी कम होती है।
नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
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