एम्स दिल्ली ने आईआरसीएफ के साथ किया करार
Delhi Aiims : दिल्ली (Delhi) एम्स अब 100 प्रतिशत सीपीआर प्रशिक्षित संस्थान (100% CPR trained institute) बनेगा। एम्स प्रशासन ने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए इंडियन रिससिटेशन कॉउंसिल फेडरेशन (Indian Resuscitation Council Federation) के साथ मेमोरेंडम ऑफ अन्डरस्टैंडिंग (MOU) साइन किया है।
दिल्ली एम्स के निदेशक प्रोफेसर एम.श्रीनिवास (Delhi AIIMS Director Professor M. Srinivas) ने आईआरसीएफ चेयरमैन (IRCF Chairman) के साथ एमओयू साइन किया। एमओयू पर हस्ताक्षर करने वालों में एम्स निदेशक (Director Aiims), एचओडी एनेस्थेसियोलॉजी, पेन मेडिसिन एंड क्रिटिकल केयर प्रोफेशर लोकेश कश्यप (HOD Anaesthesiology, Pain Medicine and Critical Care Professor Lokesh Kashyap), डॉक्टर शैलेन्द्र कुमार और आरडीए अध्यक्ष डॉक्टर विनय कुमार (AIIMS RDA President Dr. Vinay Kumar) शामिल थे।
सीआरसीटी बना Delhi Aiims
इस करार के बाद अब एम्स आईआरसीएफ (IRCF) का कंप्रिहेंसिव रिससिदेशन ट्रेनिंग सेंटर (Comprehensive Rehabilitation Training Center) बन गया है। अब यहां के स्वास्थ्य कर्मचारियों को मेड इन इंडिया सीपीआर कोर्स (Made in India CPR Course) कराया जाएगा। इसमें उन्हें दिल के दौरे के उपचार के लिए विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। प्रशिक्षण के बाद कर्मचारियों को सर्टिफाइड भी किया जाएगा।
रिसर्च करने के बाद तैयार किया गया है कोर्स
सीपीआर से संबंधित कोर्स (CPR related courses) को तैयार करने में देशभर के विशेषज्ञों से मदद ली गई है। अलग-अलग लोगों के लिए यह कोर्स अलग-अलग अवधि का होगा। इस पहल का उद्देश्य जीवन बचाने वाले कौशल सीपीआर (life saving skills CPR) की तकनीक को व्यापक रूप से फैलाना है, ताकि इसका लाभ अधिक से अधिक लोगों को प्राप्त हो सके। इस कवायद की कमान दिल्ली एम्स (Delhi Aiims) के डॉक्टर शैलेन्द्र कुमार (Dr Shailendra Kumar delhi aiims) को दी गई है।
यहां बता दें कि दिल के दौडे वाले मरीजों (heart attack patients) के लिए सीपीआर (CPR) तकनीक जीवन बचाने वाली साबित होती है। अगर दिल के दौडे वाले मरीजों पर इस तकनीक का प्रयोग किया जाए, तो चिकित्सा सहायता मिलने तक उनके जीवन की रक्षा की जा सकती है। वहीं इसकी मदद दिल के दौडे वाले मरीजीं को अस्पताल तक ले जाने का समय भी मिल जाता है।
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सीपीआर तकनीक की मदद से मरीज के ब्रेन में मानवीय तरीके से ऑक्सीजन की आपूर्ति बहाल रखी जाती है। जिससे उसकी जान बचाने में मदद मिलती है। विशेषज्ञों का कहना है कि सीपीआर करना ज्यादा से ज्यादा लोगों को सीखना चाहिए। परिवार में कम से कम एक व्यक्ति सीपीआर प्रशिक्षित जरूर होना चाहिए। एंबुलेंस के आने तक सीपीआर देते रहने से मरीज की जान बचाने में मदद मिलती है।
स्कूल और कॉलेजों में भी चलाया जाए सीपीआर प्रशिक्षण कार्यक्रम
विशेषज्ञों का मानना है कि सीपीआर प्रशिक्षण स्कूलों और कॉलेजों में भी दिया जाना चाहिए। स्कूल और कॉलेज के बच्चे और युवाओं को इस तकनीक के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी देने की जरूरत है। इस तकनीक से प्रशिक्षित व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर होने वाले हार्ट अटैक जैसी मेडिकल इमरजेंसी से निपटने में सक्षम होता है। सीपीआर प्रशिक्षित लोग अपने परिजनों और किसी अनजान पीडित व्यक्ति के लिए मददगार साबित हो सकते हैं।