जानिए कैसे तय होता है दुर्लभ बीमारियों का पैमाना
Rare Disease Day 2024 in Hindi : दुर्लभ बीमारियों के प्रति उतनी जागरुकता नहीं है जितनी जरूरत है। हालांकि, यह बीमारियां आबादी के कुछ ही प्रतिशत लोगों को प्रभावित करती है लेकिन इन बीमारियों से पीडित मरीजों की जिंदगी किसी प्रचलित गंभीर बीमारी के मरीजों से भी बदतर हो जाती है।
भारत में दुर्लभ बीमारियों के प्रति पहले के मुकाबले कुछ जागरुकता का स्तर जरूर बढा है लेकिन अभी महज इसे शुरूआत ही कहना सही होगा। देश में ज्यादातर ऐसी बीमारियों को गंभीर बीमारियों की सूची में शामिल नहीं किया गया है। नतीजतन, ऐसे ज्यादातर मरीजों को उपचार के लिए मरीजों को स्वास्थ्य बीमा (Health insurance for patients with rare diseases) देने का भी प्रावधान नहीं है।
हालांकि, यह भी एक सच्चाई है कि ऐसी ज्यादातर बीमारियां अप्राकृतिक विकलांगता की एक प्रमुख वजह (major cause of unnatural disability) है। सबसे ध्यान देने वाली बात यह है कि यह विकलांगता मरीजों को वृद्धावस्था में नहीं होती है बल्कि युवा अवस्था में ही मरीज विकलांगता (one of the main cause disability at a young age) से प्रभावित हो जाता है।
कैसे तय करते हैं कौन सी बीमारी है दुर्लभ | How to decide which disease is rare
दुर्लभ बीमारियों को तय करने का पैमाना उनकी मरीजों की संख्या पर निर्भर करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में एक दुर्लभ बीमारी (rare disease in the united states) वह है जिससे 200,000 से भी कम लोग पीड़ित हैं। यानि, प्रति 100,000 व्यक्तियों पर 60 मरीज। दुनिया भर में, दुर्लभ बीमारियों की पहचान और समाधान (Identification and solution of rare diseases) अलग-अलग तरीके से किया जाता है।
यूरोपीय संघ तब किसी बीमारी को दुर्लभ (Rare diseases in the EU) मानता है, जब उस बीमारी से प्रति 100,000 लोगों पर 50 से अधिक प्रभावित न हो । दूसरी ओर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ऐसी बीमारियों को दुर्लभ मानता है जो प्रति 100,000 लोगों में 65 से कम लोगों को प्रभावित करती है।
अक्सर अनुवांशिक (Genetic) होती है दुर्लभ बीमारियां
विशेषज्ञों के मुताबिक एक दुर्लभ बीमारी अक्सर आनुवंशिक होती है। वर्ष 2019 में यूरोपियन जर्नल ऑफ ह्यूमन जेनेटिक्स (European Journal of Human Genetics) में प्रकाशित पेपर में शोधकर्ताओं द्वारा विश्लेषण किए गए 72 प्रतिशत दुर्लभ बीमारियों में आनुवंशिक उत्पत्ति (72 percent of rare diseases have genetic origin) पाई गई।
जबकि, अन्य दुर्लभ बीमारियों के पीछे संक्रमण या एलर्जी का अनुमान लगाया गया। वैसे ज्यादातर दुर्लभ बीमारियां का सटीक कारण आजतक मेडिकल साइंस को ज्ञात (The exact cause of most rare diseases is not known to medical science) नहीं है। यहां आपको बता दें कि कुछ प्रकार के कैंसर भी दुर्लभ बीमारियों की श्रेणी में आते हैं।
बच्चे और युवा ज्यादातर दुर्लभ बीमारियों से पीडित | Children and youth mostly suffering from rare diseases
दुर्लभ बीमारियां बचपन या कम उम्र में प्रकट होती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, दुर्लभ बीमारी से पीड़ित लोगों में से लगभग दो-तिहाई बच्चे हैं । इन बीमारियों का प्रभावी उपचार उपलब्ध नहीं है। अध्ययनों के मुताबिक सभी दुर्लभ बीमारियों में से लगभग 95 प्रतिशत का उपचार अभी तक उपलब्ध ही नहीं है (Nearly 95 percent of all rare diseases do not yet have a cure)।
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जॉनसन एंड जॉनसन की ग्लोबल मार्केट एक्सेस एंड पॉलिसी, रेयर डिजीज की जानसेन फार्मास्युटिकल कंपनियों की निदेशक कैरिना रिगेटी के मुताबिक, “दुर्लभ बीमारियां एक वैश्विक स्वास्थ्य प्राथमिकता हैं।” ” जितने प्रचलित बीमारियों के मरीजों को सटीक निदान और उपचार तक समय रहते पहुंचने का अधिकार है, उतनी ही दुर्लभ बीमारी से पीड़ित लोग सटीक निदान और उपचार तक समय रहते पहुंचाने के प्रयास किए जाने चाहिए।”
मरीज ही नहीं पूरा परिवार होता है ऐसी बीमारियों से प्रभावित
जिस तरह से एक कैंसर मरीज के साथ उसका पूरा परिवार, उनकी पारिवारिक आर्थिक और सामाजिक स्थिति प्रभावित होती है। उससे कहीं अधिक दुर्लभ श्रेणी की बीमारियों से पीडित मरीजों का परिवार प्रभावित होता है। भारत जैसे देश में यह किसी परिवार की आर्थिक बदहाली के प्रमुख कारणों में से एक है।
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कम उम्र में मरीजों को प्रभावित करने वाली इन बीमारियों से जूझता हुआ एक मरीज, ऐसे समय में शारीरिक, आर्थिक और शारीरिक रूप से लाचार होकर एंकाकी जीवन जीने लगता है, जिस उम्र में कोई युवा अपने परिवार की आर्थिक बागडोर संभालकर उनका सहायक बनता है।
किसी परिवार के लिए ऐसे मरीजों की देखभाल एक बडी चुनौती साबित होती है, जब परिवार का युवा सदस्य बिस्तर पर लाचार पडा हो और उसके बडे-बुजुर्ग उसकी सेवा करने पर मजबूर हों। दुर्लभ बीमारियों का निदान और उपचार भी आसानी से संभव नहीं है (Diagnosis and treatment of rare diseases is also not easily possible.) क्योंकि जागरुकता और जानकारी की कमी इसमें आडे आती है। जानकारों के मुताबिक ऐसी बीमारियों के निदान में वर्षों लग सकते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि इन रोगों के उपचार और अनुसंधान में भी कई तरह की चुनौतियां हैं, जिसका सीधा संबंध जागरुकता से है।
महंगे उपचार, मरीज हो रहे हैं लाचार
भारत में कुछ चुनिंदा दुर्लभ बीमारियों से पीडित मरीजों को स्वास्थ्य बीमा की सुविधा अब जाकर मिलने लगी है। जबकि, ज्यादातर ऐसी बीमारियों के उपचार के लिए आज भी यहां स्वास्थ्य बीमा देने का प्रावधान नहीं है। इसे विपरीत इन बीमारियों को प्रबंधित करने और मरीजों की जीवन की गुणवत्ता को कुछ हदतक बेहतर करने वाले उपचार और दवाएं बेहद महंगी है। जिनकी पहुंच आम मरीजों नहीं है। वर्तमान व्यवस्था के तहत ऐसी बीमारियों को गंभीर श्रेणी से बाहर रखा गया है। नतीजतन, ऐसी बीमारियों का स्वास्थ्य बीमा के तहत उपचार देने का प्रावधान नहीं है।