मोटापे (Obesity) की वजह से डायबिटीज (Diabetes) होने का बढता है जोखिम
Obesity in Hindi : मोटापा एक बडी स्वास्थ्य समस्या बन गई है। भारत के साथ इस समस्या से दुनियाभर के लोग प्रभावित हैं। गलत तरीके से खानपान मोटापे की प्रमुख वजहों (main cause) में से एक है। यह एक जटिल समस्या है। मोटापे की समस्या (obesity problem), आनुवांशिक (genetic), पर्यावरणीय (environmental) और व्यावहारिक (practical) कारणों से होती है।
मोटापा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य (Obesity Mental and Physical Health) को भी प्रभावित कर सकता है। इसकी वजह से दीर्घकालिक बीमारियां (chronic diseases) हृदय रोग (heart disease), डायबिटीज (diabetes), हाई कोलेस्ट्रॉल (high cholesterol), स्ट्रोक (stroke), स्लीप एप्निया (sleep apnea) और अस्थमा (Asthma) जैसे श्वसन संबंधी समस्याएं भी हो सकती है।
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मोटापे का प्रभाव (Health effects of obesity) भावनात्मक स्वास्थ्य (emotional health) पर भी पड़ता है। जिसमें डिप्रेशन (depression) तथा आत्मविश्वास का कम होने (loss of confidence) जैसी समस्याएं शामिल है। इससे यह पता चलता है कि मोटापे का पूरी सेहत पर कितना व्यापक प्रभाव (How wide-ranging is the impact of obesity on overall health?) पड़ता है।
मोटापा किस तरह डायबिटीज के खतरे को बढ़ा देता है? | How is obesity a risk of diabetes?
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल (Indraprastha Apollo Hospital) के सीनियर कंसल्टेंट एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. एस के वाग्नू (Senior Consultant Endocrinologist Dr. SK Wagnu) के मुताबिक, मोटापा मुख्य रूप से इंसुलिन प्रतिरोध और एडिपोज (वसा) टिशूज के सूजनकारी अणुओं के स्राव को बढ़ाकर डायबिटीज के खतरे को बढ़ा देता है।
इंसुलिन प्रतिरोधकता | Insulin Resistance
एडिपोज टिशूज ना केवल वसा के लिए संग्रह की जगह है बल्कि एक सक्रिय एंडोक्राइन अंग की जरूरी कार्यप्रणाली के रूप में काम करता है। यह कई सारे संकेतक अणुओं को रिलीज करने का काम करता है। मोटापे में जितनी मात्रा में फैटी टिशूज बढ़ते हैं, उससे इंसुलिन की सामान्य प्रणाली में बाधा पहुंचने वाले तत्व रिलीज होने लगते हैं। यह हॉर्मोन ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने के लिए बहुत ही अहम है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह इंसुलिन प्रतिरोधकता को बढ़ाता है, जहां शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रभाव को लेकर काफी कम सक्रिय रह जाती हैं। इसकी वजह से ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है।
मोटापे से बढ़ती है सूजन | Inflammation increases due to obesity
मोटापे की वजह से लगातार हल्की सूजन बनी रहती है क्योंकि इंसुलिन प्रतिरोधकता कोशिकाओं के प्रभावी रूप से ग्लूकोज अवशोषित करने की क्षमता बाधित कर देती है। सूजन की वजह से कई और तरह की शारीरिक समस्याएं हो सकती हैं।
फैट मेटाबॉलिज्म का अनियमित होना | Irregular fat metabolism
यदि कोई व्यक्ति मोटा है तो उनकी रक्तधारा में फ्री फैटी एसिड की अधिक मात्रा संचारित होने लगती है। फैटी एसिड की बढ़ी हुई मात्रा (increased amounts of fatty acids), लिवर तथा मांसपेशियों जैसे टिशूज में इंसुलिन के काम में बाधा डाल सकती है। इसकी वजह से इंसुलिन प्रतिरोधकता तथा ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म़ में गड़बड़ी (disturbances in glucose metabolism) हो जाती है।
आगे चलकर मोटापे की वजह से पैनक्रियाज पर दबाव पड़ता है और क्षति पहुंच सकती है, जिसकी वजह से इस अंग के पर्याप्त इंसुलिन का निर्माण करने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। इससे मोटे लोगों में टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 diabetes in obese people) बढ़ जाता है।
मोटापे की वजह से हृदय रोगों का खतरा कैसे बढ़ जाता है? How does obesity increase the risk of heart diseases?
मोटापा हृदय रोगों के लिए सबसे बड़ा जोखिम का कारण है और कई तरीकों से कार्डियोवैस्कुलर समस्याओं (cardiovascular problems) को बढ़ाने का काम करता है। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) | High blood pressure (hypertension)
एक मोटे व्यक्ति को अतिरिक्त रक्त आपूर्ति की जरूरत होती है, जिससे व्यक्ति के कार्डियोवैस्कुलर तंत्र पर प्रभाव पड़ता है। इससे ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है, जोकि हृदय रोग का सबसे बड़ा खतरा है।
डायस्लिपिडेमिया | Dyslipidemia
मोटापा एक विपरीत लिपिड प्रोफाइल (lipid profile) की ओर ले जाता है, जिसे ट्राइग्लिसराइड के बढ़े हुए स्तर (increased triglyceride levels) तथा लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन (LDL) कोलेस्ट्रॉल के रूप में जाना जाता है। साथ ही हाई-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (HDL) कोलेस्ट्रॉल के कम स्तर के रूप में भी। यह डाईस्लिपिडेमिया, एथेरोस्क्लेरोसिस के विकास (development of atherosclerosis) में एक अहम भूमिका निभाता है। इसके साथ ही, धमनियों में वसा के जमा होने से, वे सिकुड़ने लगते हैं और हार्ट अटैक तथा स्ट्रोक का खतरा (Risk of heart attack and stroke) बढ़ जाता है।
इसके साथ ही मोटापा, इंसुलिन प्रतिरोधकता और क्रॉनिक सूजन (chronic inflammation) को बढ़ाने का काम करता है और ये दोनों ही प्लाक के निर्माण का कारण (cause for plaque formation) बन सकते हैं। इससे धमनियां सिकुड़ने लगती हैं और फिर कार्डियोवेस्कुलर समस्याएं (cardiovascular problems) जैसे हार्ट अटैक से लेकर स्ट्रोक तक का खतरा बढ़ने लगता है।
कुल मिलाकर, डायबिटीज, स्ट्रोक तथा हृदय रोगों जैसी क्रॉनिक बीमारियों के खतरे (Risk of chronic diseases like diabetes, stroke and heart diseases) को कम करने के लिए मोटापे की समस्या को दूर करना जरूरी है। इसलिए, मोटापे से पीड़ित व्यक्ति के लिए नियमित रूप से जांच करवाना और इससे जुड़े खतरे के कुछ कारकों का पता लगाने से संभावित स्वास्थ्य समस्याओं को कम करने या उनसे बचने में मदद मिल सकती है।