Ankylosing Spondylitis (HLA B27) को लगभग दे दी है मात
Ankylosing Spondylitis News in Hindi : Ankylosing Spondylitis (Hla b27 positive) Patient Story : लाइलाज ऑटोइम्यून बीमारी (Autoimmune Disease) से मुकाबला कर रहे हैं अनिल : एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing Spondylitis) जो एक ऑटोइम्यून (Autoimmune Disease) श्रेणी की लाइलाज बीमारी है। इस बीमारी को दिल्ली के एक मरीज ने लगभग मात दे दी है। एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing Spondylitis) से प्रभावित मरीजों का जीवन बेहद असहज और संघर्षपूर्ण हो जाता है लेकिन अनिल ने अपनी जीवनशैली में जरूरी सुधार कर अपने शरीर पर एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस के प्रभाव (Effects of Ankylosing Spondylitis) को लगभग सीमित कर दिया है। अन्य मरीजों के मुकाबले अनिल सहगल का स्वास्थ्य काफी बेहतर है और शरीर की मूवमेंट भी सामान्य है।
26 वर्ष के उम्र में पता चला Ankylosing Spondylitis है
अनिल सहगल जब 26 वर्ष के थे, तभी अचानक उनकी कमर के निचले हिस्से में दर्द की शुरूआत हुई थी। सुबह उठने के बाद उनके शरीर में अकडन और दर्द रहने लगा था। वह इस वजह से रात को ठीक से सो भी नहीं पा रहे थे। अपनी इस समस्या के उपचार के लिए वह ऑर्थोपेडिक डॉक्टर के पास पहुंचे।
डॉक्टर ने उन्हें दवा दी लेकिन उन्हें यह नहीं बताया कि उन्हें कौन सी बीमारी या समस्या है। दवा खाने के काफी दिनों बाद भी उनकी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा था। अनिल कपडा विक्रेता हैं और एक दिन एक ग्राहक उनकी दुकान पर पहुंचा और उन्हें तकलीफ में देखकर उनसे कहा कि उन्हें Ankylosing Spondylitis को सकता है और उन्हें तत्काल किसी रूमेटोलॉजिस्ट (Rheumatologist) से मिलना चाहिए। यहां बता दें कि एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस जैसी बीमारियों के उपचार में रूमेटोलॉजिस्ट को विशेषज्ञता हासिल होता है। ग्राहक के सुझाव को अनिल ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया। इसके कुछ समय बीतने के बाद अनिल की हालत बिगडती चली गई और वह लगभग बेड रिडेन हो चुके थे।
रूमेटोलॉजिस्ट के पास पहुंचे तो बीमारी का हुआ खुलासा
अनिल सहगल फिर दिल्ली के एक रूमेटोलॉजिस्ट (Rheumatologist) के पास पहुंचे और कई तरह की जांच के बाद डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उन्हें एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing Spondylitis) है। रूमेटोलॉजिस्ट ने उन्हें कुछ दवाइयां लिखी और नियमित रूप से एक्सरसाइज करने के निर्देश दिए। अनिल सहगल के मुताबिक, डॉक्टर ने उनसे कहा कि इस बीमारी से बचना है तो एक बार भोजन करना भूल जाना लेकिन एक्सरसाइज करना नहीं भूलना।
अनिल ने डॉक्टर के बताई हुई दवाइयां लेनी शुरू की तो दर्द से राहत मिलनी शुरू हो गई। इसके बाद उन्होंने नियमित रूप से एक्सरसाइज करना शुरू कर दिया। जिसके बाद उनकी समस्या में नाटकीय रूप से सुधार होना शुरू हो गया। जब वह फॉलोअप के लिए रूमेटोलॉजिस्ट के पास पहुंचे तो उन्होंने शारीरिक जांच के बाद कहा कि उनकी बीमारी के लक्षणों में काफी सुधार है और उन्होंने बीमारी के खिलाफ रेमिशन (Remission against the disease) हालिस कर लिया है। इसके कुछ महीनों के बाद जब वह तीसरी बार डॉक्टर के पास पहुंचे तो डॉक्टर ने पर्ची पर स्पष्ट लिख दिया कि उनकी बीमारी अब एक्टिव नहीं है।
‘एक्सरसाइज मस्ट’ को बना लिया अपना मूल मंत्र
एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाटिस में जोडों के अंदर मौजूद कोमल उत्तकों में सूजन (swelling of soft tissues) की समस्या होती है। जिसके कारण मरीज को असहनीय दर्द का सामना करना पडता है। इसके अलावा समय के साथ ज्वाइंट फ्यूजन (Joint Fusion) का भी जोखिम बना रहता है। ऐसे में नियमित एक्सरसाइज करने से जोडों में सूजन और ज्वाइंट फ्यूजन (Joint inflammation and joint fusion) के जोखिम को कम किया जा सकता है। अनिल अब समझ गए थे कि नियमित एक्सरसाइज ही उन्हें ज्वाइंट फ्यूजन और एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाटिस (Joint Fusion and Ankylosing Spondylitis) की समस्या से बचा सकती है। इसलिए उन्होंने रोज लगभग 30 मिनट तक स्ट्रेचिंग जैसी एक्सरसाइज (Stretching Exercises) करनी शुरू कर दी और आज तक वह नियमित रूप से इस प्रक्रिया को करते हैं।
चिकनगुनिया की चपेट में आए तो बढ गई समस्या
दिल्ली में जब चिकनगुनिया जब चरम पर था, तब अनिल सहगल भी इसकी चपेट में आ गए थे। उनके जोडों में फिर से असहनीय दर्द शुरू हो गई थी। मूवमेंट के दौरान काफी समस्या होने लगी। ऐसे में वह फिर से एकबार रूमेटोलॉजिस्ट के पास पहुंचे। उन्होंने जांच के बाद बताया कि चिकनगुनिया की वजह से उनका यह हाल हुआ है।
अनिल सहगल चिकनगुनिया की वजह से काफी परेशान थे, ऐसे में कुछ दिनों तक उन्होंने एक्सरसाइज नहीं किया लेकिन उनका ऐसा करना उन्हें कुछ हदतक भारी पड गया। अनिल के मुताबिक, इस दौरान उनके सर्वाइकल स्पाइन वाले हिस्से में ज्वाइंट फ्यूजन (Joint fusion in the cervical spine area) की प्रक्रिया शुरू हो गई और आंशिक रूप से उनकी नेक में फ्यूजन (Fusion in the neck) भी शुरू हो गई। गर्दन को घुमाने के दौरान दर्द और रूकावट का सामना करने लगे। यह देखकर उनके रूमेटोलॉजिस्ट ने उन्हें बायोलॉजिकल थेरेपी (Biological Therapy) लेने की सलाह दी।
बेहद महंगी होती है बॉयोलॉजिकल थेरेपी
एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस के लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए मरीजों को बॉयोलॉजिकल थेरेपी दी जाती है। इस थेरेपी में प्रयोग होने वाली बॉयोलॉजिक्स (Biologics) बेहद महंगी होती है। ज्यादा कीमत होने के कारण यह दवा आम मरीजों की पहुंच से दूर है लेकिन गर्दन की मूवमेंट को बचाने के लिए अनिल सहगल को यह महंगी थेरेपी लेनी पडी क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प ही नहीं था। यहां बता दें कि एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस जैसी ऑटोइम्यून बीमारियों (Autoimmune diseases) में से ज्यादातर के उपचार के लिए भारत में स्वास्थ्य बीमा कवर की सुविधा (Availability of health insurance cover in India) उपलब्ध नहीं है। जिसके कारण मरीजों को इसके महंगी दवाइयों के कारण उपचार से वंचित होना पडता है। नतीजतन बेहद कम उम्र में ही इसके मरीज विकलांगता (Disability) की चपेट में आकर निष्क्रिय हो जाते हैं।