सर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टर ने acute liver failure मरीज की बचाई जान
नई दिल्ली।टीम डिजिटल : राजधानी दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल (Sir Gangaram Hospital Delhi) के चिकित्सक की सजगता ने एक्यूट लिवर फेलियर (acute liver failure) वाले मरीज की जान बचाने में कामयाबी हासिल की है। इस मामले में अगर देखा जाए तो चिकित्सक ने अपनी कार्यकुशलता से मरीज को मौत के मुंह से वापस खींच लिया।
गंभीर स्थिति में पहुंच गया था मरीज
दरअसल, एक 52 वर्षीय शख्स को दो हफ्ते पहले पीलिया के लक्षणों के साथ सर गंगाराम अस्पताल (Sir Gangaram Hospital Delhi) में भर्ती कराया गया था। इसी दौरान मरीज के सोचने-समझने की शक्ति भी चली गई। acute liver failure वाले मरीजों में आम लक्षण है, जो एडवांस स्टेज में उभरकर आता है। केवल इतना ही नहीं, मरीज के पेट में पानी इकट्ठा होना भी शुरू हो गया। वहीं यूरिन की मात्रा में कमी के साथ किडनी वाले हिस्से में तेज दर्द की समस्या भी शुरू हो गई।
एक महीने भी मुश्किल से जीवित रह पाता मरीज
मरीज की आगे जब कुछ और जरूरी जांच की गई तो उसे हेपेटाइटिस (hepatitis) वायरस से भी संक्रमित पाया गया। जो मामले को और भी जटिल बनाने के लिए काफी था। acute liver failure वाले मरीज को तत्काल जीवन रक्षक उपचार की आवश्यकता थी। स्थिति को संभालने के लिए चिकित्सक ने मरीज को तत्काल डायलिसिस करने की जरूरत जताई और उसके बाद लिवर ट्रांसप्लांट (liver transplant) कराने का सुझाव दिया। चिकित्सक के मुताबिक सभी जरूरी जांच के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे की अगर शीघ्र ही कुछ नहीं किया गया तो मरीज एक महीने से भी कम समय में दम तोड देगा।
प्लाजमा एक्सचेंज प्लेक्स (PLEX) की मदद से बचाई गई जान
डिपार्टमेंट ऑफ़ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. पीयूष गोयल ने बताया कि, मरीज के परिवार में कोई डोनर नहीं था, इसलिए हमने प्लाज्मा एक्सचेंज (plasma exchange) प्लेक्स (PLEX ) के एक असामान्य विकल्प का सुझाव दिया और हमने PLEX की प्रक्रिया पांच बार की। दूसरी बार की प्रक्रिया में ही मरीज को पीलिया से राहत मिलनी शुरू हो गई। इसके साथ ही उसकी चेतना भी लौटने लगी। वहीं किडनी की कार्यप्रणाली में भी सुधार होता हुई पाया गया।
इन तमाम कवायदों के बीच हमने अन्य चिकत्सा विकल्पों को भी जारी रखा हुआ था। जिसमें से सबसे महत्वपूर्ण एंटी-वायरल थेरेपी (anti-viral therapy) थी। अस्पताल (sir gangaram hospital delhi) में भर्ती होने के 20 दिनों के बाद मरीज की स्थिति काफी बेहतर थी और हर तरह से आश्वस्त होने के बाद हमने मरीज को अस्पताल से छुट्टी दे दी। इसके बाद एक महीने के फॉलोअप के बाद मरीज के पेट में भरा हुआ पानी भी पूरी तरह खत्म हो गया और मरीज पीलिया की स्थिति से भी उबर चुका था।
लिवर ट्रांसप्लांट के मामले में संकटमोचक साबित हो रहा है प्लास्मफेरेसिस (Plasmapheresis)
डॉ. गोयल के मुताबिक लिवर ट्रांसप्लांट की नौबत वाले मरीजों में प्लास्मफेरेसिस (Plasmapheresis) का तेजी से उपयोग किया जा रहा है। जबकि, कई मामलों में ऐसे मरीजों की एक बडी संख्या बीमारी को बढावा देने वाले अन्य कारकों को नियंत्रित कर के ही ठीक हो सकती हैं। जैसे इस मरीज के मामले में एक ओर जहां हेपेटाटिस वायरस के संक्रमण का उपचार किया गया तो वहीं ऐसी स्थिति में PLEX के साथ हेपेटाइटिस वायरस का उपचार भी किया गया। तो इस स्थिति में PLEX की मदद से लिवर को फेल होने से बचाने में मदद मिली। यानि दो तरह के उपचार मरीज की जान बचाने के लिए एक दूसरे के पूरक बन गए।
क्या है प्लेक्स (PLEX)
प्लेक्स हेमोडायलिसिस (hemodialysis) जैसी एक प्रक्रिया है। जिसमें मरीज के शरीर से दूषित खून निकाल दिया जाता है और मशीन में सेंट्रीफ्यूगेशन द्वारा सेलुलर घटकों (आरबीसी, डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेट) को प्लाज्मा से अलग किया जाता है। प्लाज्मा को हटाने के बाद ताजा प्लाज्मा (FFP) और एल्ब्यूमिन को सेलुलर घटकों के साथ मिलाया जाता है और भी ब्लड वापिस मरीज को चढा दिया जाता है। डॉ. गोयल के मुताबिक प्लाज्मा में बहुत सारे जहरीले तत्व भी होते हैं, जो लीवर को नुकसान पहुंचाते हैं। चूंकि PLEX की प्रक्रिया के तहत प्लाज्मा को पूरी तरह से हटा दिया जाता है। इसलिए डायलिसिस (dialysis) और MARS की तुलना में यह बेहतर विकल्प साबित होता है।
एक बार PLEX कराने में होता है 30 हजार खर्च
PLEX के लिए प्रत्येक बार 30 हजार रूपए खर्च करने पडते हैं और इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए ब्ल्ड डोनर्स की जरूरत होती है। एक मरीजों को औसतन तीन बार इस प्रक्रिया से गुजरना पडता है। वहीं कुछ मरीजों को तीन से अधिक बार यह थेरेपी देने की जरूरत हो सकती है। इस मरीज को पांच सत्र देने की आवश्यकता पडी थी। इस मरीज के मामले में “प्लाज्मा एक्सचेंज” जीवन रक्षक साबित हुआ और अन्य उपचारों को अपना प्रभाव दिखाने का समय भी मिल गया।
इन मरीजों को दिया जा सकता है PLEX
डॉ. गोयल के मुताबिक गंभीर अल्कोहलिक हेपेटाइटिस (severe alcoholic hepatitis), हेपेटाइटिस बी (hepatitis B) और ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस (autoimmune hepatitis) वाले मरीजों में जब स्टेरॉयड बेअसर हो जाता है, तब उनका चयन स्थापित मानदंडों के आधार पर PLEX के लिए किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया के अच्छे परिणामों के साथ वह अभी तक 10 मरीजों का उपचार कर चुके हैं और उन्हें लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत से बचाने में कामयाबी मिली है। यहां बता दें कि लिवर ट्रांसप्लांट एक उच्च लागत वाली प्रक्रिया है। वर्तमान दौर में निजी क्षेत्र के तहत लिवर ट्रांसप्लांट कराने में लगभग 25 से 30 लाख रूपए खर्च होते हैं।
ट्रांसप्लांट बिना ही acute liver failure वाले मरीज की बचा ली जान
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