Ankylosing Spondylitis Treatment : गंगाराम अस्पताल के विशेषज्ञ ने किया Ankylosing Spondylitis मरीज की सर्जरी
नई दिल्ली। टीम डिजिटल :Ankylosing Spondylitis Treatment : बेड रिडेन मरीज सर्जरी के बाद पैरों पर खडा हुआ –एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (ankylosing Spondylitis) की वजह से महज 30 वर्ष की आयु में ही एक मरीज के कूल्हों के जोड (hip joint) पूरी तरह से फ्यूज हो चुके थे। फ्लेक्सियन सिकुडन के साथ ही नुकसान रीढ की हड्डी में भी दिख रहा था। ज्वाइन इस कदर फ्यूज हो चुके थे कि मरीज सामान्य रूप से कुर्सी पर भी बैठने में असमर्थ हो गया था।
उसे या तो लेटे रहना पडता था या सहारे की बदौलत खडा होना पडता था। मरीज बहुत मश्किल से महज कुछ कदम ही पैरों से चल पा रहा था। कुलमिलाकर देखा जाए तो एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस से पीडित यह मरीज बेडरिडेन हो चुका था और उसकी मूवमेंट रिस्ट्रिक्ट हो चुकी थी।
एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (ankylosing spondylitis) एक ऐसी बीमारी है, जिसमें शरीर के केंद्रीय जोड़ों में रीढ़, कूल्हों, घुटनों, कंधों और बाद में अन्य परिधीय जोड़ों पर इलाज शुरू हो जाता है। अगर अनुपचारित छोड़ दिया जाता है तो ये सभी जोड बीमारी से प्रभावित होकर फ्यूज हो जाते हैं। जिससे मरीज का आवागमन बुरी तरह से बाधित हो जाता है। इस तरह की बीमारियां अप्राकृति विकलांगता को बढाने में बडी भूमिका निभा रही है।
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7 घंटों तक चली जटिल सर्जरी
Gangaram Hospital के डॉ. अनंत कुमार तिवारी और उनकी टीम ने एक साथ द्विपक्षीय हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी (bilateral hip replacement surgery) 7 घंटे में सफलतापूर्वक की और सर्जरी के अगले दिन बिना किसी कठिनाई के मरीज अपने पैरों पर चलने में कामयाब रहा। विशेषज्ञों की माने तो सर्जरी के बाद, एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (ankylosing spondylitis) से पीडित मरीजों को ज्वाइंट डिस्लोकेशन, घाव भरने की समस्याओं और संक्रमण का जोखिम अधिक रहता है। इन सभी पहलुओं का ध्यान रखते हुए ऐसे मरीज को विशेष शल्य चिकित्सा केंद्र में कुशल सर्जिकल टीम के साथ सर्जिकल प्रक्रिया को अंजाम दिया जाना जरूरी होता है।
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एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस में बेहद आम है कूल्हों की समस्या
सर गंगाराम अस्पताल के ज्वाइंट रिप्लेस्मेंट सेंटर के यूनिट हेड डॉ. अनंत कुमार तिवारी के मुताबिक एंकिलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस (ankylosing Spondylitis) के रोगियों में कूल्हे की समस्या बहुत आम है। इस बीमारी से पीडित मरीजों में करीब 50 प्रतिशत से थोड़ा अधिक कूल्हे के प्रभावित होने की समस्या से पीडित हो जाते हैं। अक्सर रीढ़ की हड्डी के आसपास होने वाली समस्याएं रिप्लेस्मेट सर्जरी की संभावनाओं को बढाने वाला साबित होता है।
डॉ. तिवारी के अनुसार कूल्हे को प्रभावित करने वाले गठिया के अन्य रूपों, जैसे कि पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस की तुलना में एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (AS) के साथ कूल्हे की भागीदारी वाले अधिकांश लोगों को कम उम्र में ज्वाइंट रिप्लेस्मेंट की आवश्यकता होती है। पुराने ऑस्टियोअर्थराइटिस से पीडित मरीजों में आमतौर पर, 55 से 75 वर्ष की आयु के बजाय 30 और 45 वर्ष की उम्र के बीच हिप रिप्लेसमेंट, दर्द को कम करने के लिए किया जाता है लेकिन एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस के मरीजों में केवल दर्द नहीं बल्कि ज्वाइंट फ्यूजन के कारण होने वाली मूवमेंट रिस्ट्रिक्शन को दूर करने के लिए भी हिप रिप्लेस्टमेंट सर्जरी की जरूरत पडती है।
फ्लेक्सन में सिकुडन और दर्द वाले मरीजों को पडती है हिप रिप्लेस्टमेंट की जरूरत
डॉ. तिवारी के मुताबिक एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (ankylosing Spondylitis) मरीजों में हिप रिप्लेसमेंट के लिए एक सामान्य संकेत फ्लेक्सन सिकुड़न और दर्द है। जिसका अर्थ है कि “हिप थोड़ा सा मुड़ा हुआ है और रोगी पैर को सीधा नहीं कर सकता है। हिप रिप्लेसमेंट को एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस से पीड़ित लोगों में सामान्य संयुक्त गति को बहाल करने के लिए एक विश्वसनीय समाधान के रूप में देखा जाता है।
यहां तक कि इस प्रक्रिया से खड़े होने मूवमेंट को बहाल कर स्पाइनल अलाइनमेंट को दुरूस्त करने में मदद मिलती है। ऐसे एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस मरीज जिनके कूल्हे की गतिशीलता एक महत्वपूर्ण डिग्री तक प्रभावित नहीं हुई है, उन्हें दर्द को कम करने में रिप्लेस्टमेंट सर्जरी महत्वूपूर्ण भूमिका निभाती है।
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इलाज के अभाव में मरीज की हुई थी ऐसी स्थिति
डॉ. तिवारी के मुताबिक पिछले दो वर्ष से उचित उपचार नहीं मिलने की वजह से मरीज के कूल्हे और रीढ़ दोनों पूरी तरह से आपस में जुड़ गए थे। रोगी दयनीय स्थिति में था और अपने दिन की गतिविधियों को करने में सक्षम नहीं था। जब वास्तविक सर्जरी और रिकवरी की बात आती है, तो कई कारकों के कारण एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (ankylosing Spondylitis) से पीड़ित लोगों में हिप रिप्लेसमेंट अधिक जटिल हो जाता है।
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एनेस्थीसिया के लिहाज से आसान नहीं होती है ऐसी सर्जरियां
डॉ. तिवारी ने बताया कि एनेस्थीसिया के दृष्टिकोण से ऐसी सर्जरियां जटिल हो सकती हैं। अधिकांश एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (ankylosing Spondylitis) पीडित रोगियों में रीढ की हड्डी फ्यूज होती है और इसकी गतिशीलता प्रभावित हो चुकी होती है। जिसके कारण इंट्यूबेशन की प्रक्रिया (सर्जरी से पहले सांस की नली में ऑक्सीजन टयूब को डालने की प्रक्रिया) के लिए विशेष तकनीकों की आवश्यकता हो सकती है।
स्पाइनल एनेस्थीसिया जो सामान्य रूप से हिप रिप्लेसमेंट के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, एक फ्यूज्ड स्पाइन के साथ यह विकल्प शेष नहीं रह जाता है। यह स्थिति स्पाइनल कैनाल तक पहुंच को सीमित करता है। सर्जरी के दौरान स्पंजी हड्डियों से काफी खून बहता है इसलिए नियंत्रित हाइपोटेंसिव एनेस्थीसिया की अक्सर आवश्यकता होती है।
आमतौर पर एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस से पीडित मरीजों में सर्जिकल प्रक्रिया के दौरान कूल्हे के आसपास की हड्डी को हटाने की आवश्यकता होती है क्योंकि कूल्हे की बॉल और सॉकेट फ्यूज होकर सिंगल बोन में तब्दील हो चुकी होती है। इमेज इंटेंशिफिकेशन के तहत सॉकेट क्षेत्र को बहुत सावधानी से रिकन्सट्रक्ट किया जाता है। डॉक्टर के मुताबिक जॉइंट को बदलने के बाद भी इसके कॉन्ट्रैक्चर्स को दूर होने में महीनों लग सकते हैं।
Ankylosing Spondylitis Treatment : बेड रिडेन मरीज सर्जरी के बाद पैरों पर खडा हुआ
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