Ganga Ram Hospital (SGRH) : उपचार में लापरवाही पाए जाने पर मरीज को 5.10 लाख मुआवजा देने का निर्देश
Delhi News : दिल्ली स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमिशन (DSCDRC) ने एक Ganga Ram Hospital और उसके डॉक्टरों को आडे हाथों लिया है। साथ ही सभी डॉक्टरों और हेल्थकेयर इंडस्ट्री (healthcare industry)से जुडे सदस्यों को सतर्क रहने की भी सलाह दी है। कमिशन ने शहर (Delhi) के एक नामी अस्पताल और उसके डॉक्टरों के मेडिकल प्रैक्टिस में घोर लापरवाही (Gross negligence in medical practice) से जुडे मामले की सुनवाई करते हुए ऐसी टिप्प्णी की है।
सेवा में लापरवाही का जिम्मेदार माना
दिल्ली (Delhi) के एक अखबार में छपी खबर के मुताबिक, कमिशन ने सूबे (Delhi) के सर गंगाराम अस्पताल (Sir Ganga ram Hospital Delhi) और उसके पांच डॉक्टरों को सेवा और मरीज की देखभाल में लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हें मुआवजा देने का निर्देश दिया है। कमिशन ने माना कि लापरवाही के कारण शिकायतकर्ता को जिस तरह की शारीरिक और मानसिक तकलीफ हुई उसके लिए उसे 5 लाख 10 हजार रुपए मुआवजा राशि के तौर पर दी जाए।
सर्जरी के दौरान वसूले रकम वापस करने के आदेश
मामला त्रिनगर निवासी बसंत लाल शर्मा से जुडा है। आयोग की अध्यक्ष जस्टिस संगीता ढींगडा सहगल (Justice Sangeeta Dhingra Sehgal) की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। उन्होंने अपना फैसला शिकायतकर्ता के पक्ष में सुनाया। उन्होंने गंगाराम अस्पताल और इसके डॉक्टर पंकज अग्रवाल (Dr Pankaj Aggarwal), डॉक्टर अंबुज गर्ग (Dr. Ambuj Garg), डॉक्टर श्याम अग्रवाल (Dr. Shyam Aggarwal), डॉक्टर सुधीर कल्हान (Dr. Sudhir Kalhan) और डॉक्टर प्रकाश शास्त्री (Dr Prakash Shastri) को लापरवाही के लिए जिम्मेदार माना।
इसके साथ ही कमिशन ने पांचों डॉक्टरों को मानसिक कष्ट के लिए 20-20 हजार रुपए, और वाद खर्च के लिए 15-15 हजार रुपए अलग से देने के आदेश दिए। इसके अलावा सर्जरी की प्रकिया के लिए मरीज से वसूले गए 1,97,900 रुपए भी वापस करने के निर्देश दिए।
संबंधित मामले की जजमेंट कॉपी का हम अध्ययन कर रहे हैं। जबतक हम ऑर्डर कॉपी पढ नहीं लेते, तबतक इस मामले पर हम टिप्पणी नहीं कर सकते हैं।– मनोज शर्मा, मीडिया कॉम्यूनिकेशन अधिकारी, सर गंगाराम अस्पताल (Delhi)
Delhi News : यह है पूरा मामला
शिकायतकर्ता ने 2014 में अपनी पत्नी को सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया था। यहां डॉक्टर श्याम अग्रवाल ने मरीज को नॉन हॉजकिन लिम्फोमा (non hodgkin lymphoma) कैंसर (Cancer) से पीडित बताया। छह महीने बाद डॉक्टर अग्रवाल ने मरीज को स्प्लेनेक्टोमी (splenectomy) कराने की सलाह दी। इस सर्जिकल प्रक्रिया को डॉक्टर सुधीर कल्हान ने अंजाम दिया। मगर सर्जरी असफल रही।
डॉक्टर ने मरीज के शरीर से स्पलीन (spleen) हटाने की बात कही थी। जब मरीज के पति ने शरीर से हटाए गए हिस्से को देखने की इच्छा जाहिर की तो डॉक्टर ने इससे इनकार कर दिया। मरीज की हालत बिगडती जा रही थी। 18 जून 2015 को मरीज की मौत हो गई। इसके बाद कई बार निवेदन करने के बाद भी अस्पताल ने मृतक मरीज के पति को उनकी पत्नी के उपचार से जुडे संपूर्ण मेडिकल रिकॉर्ड (complete medical records) नहीं दिया। डॉक्टर अंबुज गर्ग पर यह आरोप था कि उन्होंने फर्जी और निराधार डिस्चार्ज समरी (discharge summary) तैयार कर अस्पताल को बचाने की कोशिश की।
आयोग ने दिखाए कडे तेवर
इस मामले की सुनवाई करते हुए आयोग बेहद सख्त दिखाई दे रहा था। आयोग ने कहा कि डॉक्टरों की टीम इंसान के जीवन के साथ काम कर रही थी, न कि किसी गिनी पिग के साथ कोई प्रयोग (experiments with guinea pigs) चल रहा था। उपचार देने वाले डॉक्टर रोगी का इस्तेमाल एक्सपेरिमेंट साइट (experiment site) की तरह नहीं कर सकते।
रिपोर्ट में लिखा गया एक शब्द सर्जरी करते समय सिर्फ सिर घुमाना, मरीज को जीवन भर का आघात दे सकता है। ऐसे में मरीज का पूरा जीवन प्रभावित हो सकता है। डॉक्टर की एक छोटी सी लापरवाही उपचार की पूरी दिशा को बदल सकती है। ऐसे में मरीज को मानसिक, शरीरिक और आर्थिक दबाव का सामना करना पड सकता है। डॉक्टर सर्फ भरोसा जताने से मरीज को अगर यह हासिल हो तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।