दुनिया भर में Alzheimer के 320 लाख से अधिक मरीज
नई दिल्ली। अल्जाइमर (Alzheimer) रोग स्वास्थ्य के साथ एक सामाजिक समस्या भी है क्योंकि समय बीतने के साथ मरीज की शारीरिक और मानसिक हालत गिरती चली जाती है। आखिरी स्टेज में मरीज अपनी देखभाल खुद करने में असमर्थ हो जाता है और उसकी सोचने – समझने की शक्ति जवाब दे जाती है।
Alzheimer के बेहतर प्रबंधन में Ayurveda कर सकता है मदद
आयुर्वेद के माध्यम से अल्जाइमर्स और डिमेंशिया (dementia) जैसे रोगों का बेहतर प्रबंधन और इलाज संभव है। आयुर्वेद की पंचकर्मा थेरेपी के साथ अश्वगंधा, जटामांसी, ब्राह्मी, मंडूकपर्णी, शंखपुष्पी, वच, हल्दी, तुलसी, गिलोय आदि आयुर्वेदिक दवाएं अल्जाइमर की चिकित्सा में फायेदेमंद साबित हो सकता हैं।
तंत्रिकाओं को मजबूत कर सकती है आयुर्वदिक दवाएं
अल्जाइमर्स रोग की शुरुआत मस्तिष्क के सेल्स व तंत्रिकाओं के नष्ट होने के कारण होती है और समय बीतने के साथ-साथ मरीज की शारीरिक और मानसिक स्थिति बिगड़ती चली जाती है। रसराज रस, महावातविध्वंसक रस, वातगजांकुश रस आदि दवाएं मांसपेशियों और तंत्रिकाओं को मजबूत बनाती हैं। शिरोधारा नामक पंचकर्म थेरेपी मस्तिष्क के सेल्स को नष्ट होने से बचाने में महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है।
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क्या है शिरोधारा पंचकर्म
शिरोधारा पंचकर्म थेरेपी के इसके अंतर्गत दवाओं से सिद्ध तेल धीरे-धीरे मस्तिष्क और सिर पर टपकाए जाते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक चिकित्सा के साथ यदि योग और प्राणायाम का अभ्यास नियमित रूप से किया जाए तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। आनुवंशिक कारणों के अलावा मोटापा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, स्मोकिंग और अल्कोहल के प्रयोग से भी अल्जाइमर होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसलिए अल्जाइमर से बचने के लिए प्रौढ़ावस्था में नियमित रूप से व्यायाम और भ्रमण करने के साथ-साथ शराब व तंबाकू का सेवन पूरी तरह से त्याग देना चाहिए।
अल्जाइमर और डिमेंशिया के 550 लाख मरीज
अल्जाइमर्स एसोसिएशन के अनुसार इस समय दुनिया भर में अल्जाइमर के 320 लाख से अधिक मरीज हैं। इसमें अगर डिमेंशिया जैसे संबंधित बीमारी से प्रभावित लोगोें की संख्या जोड दी जाए तो इनकी संख्या 550 लाख के करीब हो जाती है। सी.एस.आई.आर. और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस कम्युनिकेशन एंड पॉलिसी रिसर्च के अनुसार भारत में अल्जाइमर्स के 38.4 लाख मरीज हैं और डिमेंशिया जैसे संबंधित रोगों को मिलाकर यह संख्या 44 लाख से ऊपर हो जाती है।
प्रौढ़ावस्था का व्यक्ति यदि कुछ समय पहले कही बातों, रोजमर्रा के कामों तथा नियत स्थान पर रखे जाने वाली चीजों के बारे में भूलने लगे, खाने-पीने की आदतों में बदलाव दिखाई दे, परिचित व्यक्ति और वस्तुओं के बारे में याददाश्त में कमी आने लगे तो शुरुआती अवस्था में ही इलाज शुरू कर देना चाहिए ।
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