Arthritis Osteoarthritis से सबंधित ट्रायल में मिली सफलता
नई दिल्ली। अर्थराइटिस-ऑस्टियोआर्थराइटिस (Arthritis Osteoarthritis) किसी भी इंसान के लिए एक बडी स्वास्थ्य समस्या है। जिसकी वजह से स्वास्थ्य के साथ पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक और निजी जीवन प्रभावित होता है। इस समस्या से पीडित मरीज आईसोलेशन में जीने को मजबूर हो जाते हैं। विशेषज्ञ लंबे समय से इस समस्या के लिए प्रभावी उपचार (effective medecine of arthritis) ढूंढने के प्रयास में जुटे हुए हैं लेकिन दशकों से इस बीमारी की कोई ऐसी दवा बनाई नहीं जा सकी है।
देसी विशेषज्ञ ने ढूंढा उपचार
आईआईटी कानपुर से जो खबर सामने आई है, वह लाखों आर्थराइटिस पीडितों के लिए नई उम्मीद लेकर आई है। जहां पूरे विश्च भर के विशेषज्ञ इसके प्रभावी उपचार को ढूंढने में जुटे हैं, वहीं एक देसी विशेषज्ञ ने आर्थराइसि-ऑस्टियोआर्थराइटिस (गठिया) का उपचार ढूंढने का दावा कर सभी को चौंका दिया है। आईआईटी के बायो साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अमिताभ बंधोपाध्याय ने अपनी टीम के साथ गठिया रोग की दवा खोजने का दावा किया है। उनका कहना है कि इस दवा से बीमारी रूकेगी और आगे नहीं बढेंगी।
चूहों पर ट्रायल सफल
विशेषज्ञों ने चूहों पर इस दवा का ट्रायल किया है। जो पूरी तरीके से सफल रहा है। तीन महीने के भीतर विशेषज्ञ इसका ट्रायल कुत्तों पर करेंगे। प्रोफेसर अमिताभ बंधोपाध्याय के मुताबिक कुत्तों पर ट्रायल की सफलता के बाद फंड्स जुटाकर इंसानों पर भी इसका ट्रायल किया जाएगा। हालांकि, इस प्रक्रिया में कुछ और वक्त लग सकता है।
ऐसे होती है बीमारी की पहचान
प्रोफेसर बंदोपाध्याय के मुताबिक आर्थराइटिस-ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीडित लोगों की हड्डियों के पास बने कार्टिलेज के अगल-बगल मौजूद हड्डियां दिखने लगती हैं। इन्हीं लक्षणों के आधार पर इस बीमारी को आसानी से पहचाना जा सकता है। ऑस्टियोआर्थराइटिस के मरीजों को लंबे समय तक दवाइयां लेनी पडती है। बावजूद इसके अंत में ज्वाइंट रिप्लेसमेंट करवाना ही पडता है।
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ऐसे किया ट्रायल
प्रोफेसर अमिताभ बंदोपाध्याय के मुताबिक दवा के ट्रायल के लिए पीएचडी छात्रों को कनाडा भेजा गया और चूहों की सर्जरी करवाई गई। इसके बाद चूहों में ऑस्टियोआर्थराइटिस की समस्या पैदा की गई। फिर ऐसे चूहों पर दवा को इंजेक्ट किया गया। इसके बाद चूहों में तीन महीने तक बीमारी के लक्षण प्रकट नहीं हुए। प्रोफेसर अमिताभ के मुताबिक चूहों पर तीन माह तक बीमारी न दिखना दवा के प्रभाव को सकारात्मक तरीके से पेश करता है। यह प्रमाण है कि दवा इंजेक्ट करने के बाद बीमारी से सबंधित गतिविधियां पूरी तरह से रुक गई। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि यह दवा इंसानों पर भी कारगर साबित होगी। यहां बता दें कि चूहों की औसत उम्र 18 महीने होती है।
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