Bone Marrow Transplant और Immune System Reprogram कर किडनी मरीज को दी दवाइयों से मुक्ति
लंदन।नई दिल्ली : लंदन के डॉक्टरों ने बोन मैरो प्रत्यारोपण (Bone Marrow Transplant) और उसके बाद इम्यून सिस्टम री-प्रोग्राम (Immune System Reprogram) कर किडनी प्रत्यारोपण (kidney transplant) करवा चुकी 8 वर्षीय मरीज को जीवन भर दवा खाने की परेशानी से उबार लिया है।
डॉक्टरों की चिकित्सकीय कार्यकुशलता की बदौलत नन्हीं मरीज अदिति शंकर के शरीर ने दाता किडनी (donor kidney) को अपनी किडनी के रूप में स्वीकार कर लिया। आमतौर पर दाता किडनी को शरीर द्वारा अस्वीकार करने से बचाने के लिए किडनी प्रत्यारोपण (kidney transplant) के मरीजों को आजीवन कुछ दवाइयां खानी पडती है। अदिति शंकर को अब आजीवन दवाइयां लेने की जरूरत नहीं पडेगी। यह कमाल ग्रेट ऑरमंड स्ट्रीट अस्पताल (Great Ormond Street Hospital) में किया गया है।
मां ने ही दी थी किडनी और Bone Marrow
अदिति शंकर को उनकी मां ने किडनी और बोन मैरो दोनों ही प्रत्यारोपण के लिए डोनेट किया था। अदिति की प्रत्यारोपित किडनी अब दवाओं की आवश्यता के बिना ही काम कर रही है। किडनी प्रत्यारोपण के मामले में मरीज को सर्जरी के बाद जीवन भर इम्यूनोसप्रेसेन्ट मेडिसिन (immunosuppressant medicine) खाना पडता है। इन दवाओं को आजीवन इसलिए लेना पडता है क्योंकि दाता किडनी को शरीर के इम्यून सिस्टम (immune system) द्वारा बाहरी तत्व मानकर रिजेक्ट करने का जोखिम बना रहता है। इम्यूनोसप्रेसेन्ट के जरिए मरीज के इम्यून सिस्टम को कमजोर किया जाता है ताकि रिजेक्शन के जोखिम से बचा जा सके। इन दवाओं के उपयोग से इम्यून सिस्टम के कमजोर होने के कारण संक्रमण का जोखिम बढ जाता है।
यह इन दवाओं का प्रमुख दुष्प्रभाव है। अदिति के मामले में अब इन दवाओं की जरूरत नहीं पडेगी और आगे वह बिना दवा के उपयोग किए ही सामान्य जिंदगी जी सकेगी। अदिति की मां दिव्या के मुताबिक वह अपनी बेटी को बोनमैरो और अपनी एक किडनी दान कर गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। अदिति को स्क्रैबल (scrabble) पसंद है और अब वह अपने ट्रैम्पोलिन पर तैरना, गाना, नृत्य करना और खेलना जारी रख सकती हैं। अदिति पिछले साल से ही डायलिसिस (dialysis) की प्रक्रिया के कारण अपने समय का एक बडा हिस्सा अस्पताल आने-जाने में व्यतीत कर चुकी हैं।
Also Read : Oral Hygiene बिगड़ी तो खराब हो सकती है दिमाग की सेहत
पांच साल की उम्र में की गई थी ग्रेट ऑरमंड स्ट्रीट अस्पताल में रेफर
अदिति को पहली बार जब ग्रेट ऑरमंड स्ट्रीट अस्पताल में रेफर किया गया था, तब उसकी उम्र महज 5 वर्ष थी। जांच पडताल के बाद डॉक्टरों ने पाया कि उसे शिम्के इम्यूनो-ऑसियस डिसप्लेसिया (Schimke immuno-osseous dysplasia) नामक एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी (rare genetic disease) है। यह बीमारी प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) और किडनी दोनों को ही प्रभावित करती है। अदिति के लिए प्रस्तावित पहला उपचार डायलिसिस था। उसे उपचार के लिए सप्ताह में कम से कम तीन बार उत्तर पश्चिम लंदन के ग्रीनफोर्ड स्थित अपने पारिवारिक घर से मध्य लंदन तक की यात्रा करनी पड़ती थी। मार्च 2021 में उसकी किडनी की कार्यक्षमता में भारी गिरावट आ गई। इस दौरान उसका किडनी प्रत्यारोपण करना संभव नहीं था। उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली काफी कमजोर थी।
लंदन के डॉक्टरों ने अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मिलकर बनाई उपचार की योजना
डॉक्टरों ने इस चुनौतिपूर्ण स्थिति से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मिलकर उपचार की योजना बनाई। जिसके बाद अदिति में बोनमैरो ट्रांसप्लांट (Bone Marrow Transplant) करने का फैसला किया गया। उसे प्रत्यारोपण की प्रक्रिया से पहले चार सप्ताह तक गहन देखभाल इकाई (intensive care unit) में रखा गया। इस दौरान उसका 24 घंटे डायलिसिस किया जा रहा था।
छह महीने बाद किडनी प्रत्यारोपण के लिए फिट हुई अदिति
डॉक्टरों द्वारा छह महीने (मार्च 2023) तक चिकित्सकीय निगरानी में उपचार देने के बाद अदिति किडनी प्रत्यारोपण (kidney transplant)) के लिए फिट पाई गई। जिसके बाद डॉक्टरों ने किडनी प्रत्यारोपण किया। अदिति के मुताबिक, मेरी मां ने मुझे बोनमैरो दिया। मैं नींद में गई और जब आंखे खुली तो पाया कि किडनी प्रत्यारोपित किया जा चुका है। अब मुझे नई जिंदगी मिली है और अब मैं तैराकी भी कर सकूंगी। अदिति के 48 वर्षीय पिता उदय के मुताबिक, “परिवार को सबसे अधिक सहयोग अदिति से ही मिला है। वह दिन में छह से आठ घंटे डायलिसिस के लिए जाती थी और फिर जब वह घर लौटती थी तो पूरे घर का माहौल खुशनुमा हो जाता था।
अदिति यूके की पहली मरीज है जिसे सर्जरी के बाद इम्यूनोसप्रेसिव की नहीं है जरूतर
ग्रेट ऑरमंड स्ट्रीट अस्पताल में बच्चों के किडनी विशेषज्ञ प्रोंफेसर स्टीफन मार्क्स (Professor Stephen Marx) के मुताबिक अदिति यूनाइटेड किंगडम (UK) की पहली मरीज हैं, जिन्हे किडनी ट्रांसप्लांट के बाद इम्यूनोसप्रेसिव दवा की जरूरत नहीं पड़ेगी। डॉक्टर के मुताबिक “अदिति का यूनाइटेड किंगडम में पहली मरीज बनना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के तहत पहली मरीज होना, इस स्थिति के लिए किडनी प्रत्यारोपण करना और एक महीने के भीतर इम्यूनोसप्रेशन से छुटकारा पाना काफी रोमांचक है।”
Also Read : Rare Auto immune Disorder : Guillain Barre syndrome से प्रभावित हुए यह लोकप्रिय गायक, हालत स्थिर
बोनमैरो प्रत्यारोपण के एक साल बाद और किडनी प्रत्यारोपण के छह महीने बाद, उसे गुणवत्तापूर्ण जीवन (quality life) बिताते हुए देखना बहुत उत्साहजनक है। अब वह एक सामान्य बच्चे की तरह समुद्र तट पर जाती है, गाना गाती है, नृत्य करती है और सामान्य तरीके से स्कूल भी जाती है। वह सभी कार्य करने में सक्षम है, जो सामान्य बच्चे कर सकते हैं।”
क्या अन्य मरीजों में भी कारगर होगी यह चिकित्सकीय तकनीक?
अन्य रोगियों के बीच प्रत्यारोपण की यह दोहरी प्रक्रिया कारगर साबित होगी या नहीं? इस पर प्रोंफेसर स्टीफन मार्क्स ने कहा है कि अन्य मरीजों पर इस दोहरी प्रक्रिया की सफलता मामले की बारीकियों पर निर्भर होगा। डॉक्टरों के मुताबिक “ऐसे रोगियों के उपसमूह हैं, जिनमें प्रतिरक्षा प्रणाली से जुड़ी विशेष किडनी की बीमारियां हैं। ऐसे में गंभीर स्थिति वाले मरीजों के लिए जोखिम लिया जा सकता है क्योंकि मरीज डायलिसिस के भरोसे लंबे वक्त तक जीवित नहीं रह सकते हैं।
सम्मेलन में विवरण प्रस्तुत करेंगे विशेषज्ञ
प्रोफेसर मार्क्स के मुताबिक वे अगले सप्ताह यूरोपियन सोसाइटी फॉर पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजी (European Society for Pediatric Nephrology) सम्मेलन में इस मामले का विवरण प्रस्तुत करने वाले हैं। इसके अलावा निष्कर्षों का विवरण देने वाला एक संपादकीय भी पीडियाट्रिक ट्रांसप्लांटेशन पत्रिका (Pediatric Transplantation Journal) में प्रकाशित किया जाएगा।
[table “9” not found /][table “5” not found /]