Thursday, November 21, 2024
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Delhi Aiims : आयुर्वेद की 5 हजार वर्ष पुरानी मर्म थेरेपी के कायल हुए एम्स विशेषज्ञ 

विशेषज्ञों (Delhi Aiims) का कहना है कि सेरेब्रल पाल्सी (cerebral palsy) से लेकर मिर्गी के दौरों (epileptic seizures) तक की स्थितियों में रोग जटिलताओं और दुष्प्रभावों  (Disease complications and side effects) को कम करने की दिशा में इसकी क्षमता को प्रभावी पाया गया है। 

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Non Communicable बीमारियों के उपचार में उपयोगी

Delhi Aiims News : दिल्ली एम्स के विशेषज्ञों को 5 हजार वर्ष पुरानी मर्म थेरेपी (marma therapy) पसंद आ रही है। इस थेरेपी का उपयोग विभिन्न प्रकार के गैर-संचारी रोगों के प्रबंधन (Management of non-communicable diseases) में आधुनिक चिकित्सा के सहायक पद्धति (modern medicine supporting methods) के तौर पर देखा जा रहा है। यह एक प्राचीन भारतीय आयुर्वेदिक पद्धति (ancient indian ayurvedic system) है।

क्या है आयुर्वेद की मर्म थेरेपी | What is Ayurveda marma therapy ?

मर्म थेरेपी के तहत शरीर के ऊर्जा चैनलों को अनलॉक करके शरीर, मन और आत्मा में सामंजस्य स्थापित करने की पहल की जाती है। एलोपैथिक चिकित्सा (allopathic medicine) के साथ विशेष रूप से सर्जरी और एनेस्थीसिया (surgery and anesthesia) जैसी विशिष्टताओं में, विशेषज्ञ उपचार (specialist treatment) में कई मामलों में मर्म चिकित्सा  (Marma Chikitsa) सहायक और पूरक की भूमिका निभा सकता है।
विशेषज्ञों (Delhi Aiims) का कहना है कि सेरेब्रल पाल्सी (cerebral palsy) से लेकर मिर्गी के दौरों (epileptic seizures) तक की स्थितियों में रोग जटिलताओं और दुष्प्रभावों  (Disease complications and side effects) को कम करने की दिशा में इसकी क्षमता को प्रभावी पाया गया है।
Delhi Aiims : आयुर्वेद की 5 हजार वर्ष पुरानी मर्म थेरेपी पर कायल हुए एम्स विशेषज्ञ
Delhi Aiims : आयुर्वेद की 5 हजार वर्ष पुरानी मर्म थेरेपी पर कायल हुए एम्स विशेषज्ञ | Photo : Canva
इस चिकित्सा पद्धति के तहत मर्म बिंदुओं के सटीक स्थानों को इंगित करते हुए लक्षित दबाव तकनीकों को नियोजित (target) करके, चिकित्सकों का लक्ष्य व्यक्तिगत आवश्यकताओं और प्रतिक्रियाओं के अनुरूप शरीर की जन्मजात उपचार क्षमता (body’s innate healing ability) को सक्रिय करना होता है।
कठोर प्रशिक्षण पहल के माध्यम से, विभिन्न क्षेत्रों में स्वास्थ्य पेशेवरों को मर्म चिकित्सा को अपने अभ्यास में एकीकृत (Integrated) करने के लिए तैयार किया जा रहा है। जिससे इस अमूल्य पद्धति तक पहुंच व्यापक हो सके।
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय (Uttarakhand Ayurved University) के पूर्व कुलपति प्रोफेसर सुनील कुमार जोशी (Former Vice Chancellor Professor Sunil Kumar Joshi) चार दशकों से मर्म थेरेपी पर शोध और अध्ययन (Research and studies on Marma Therapy) में जुटे हुए हैं।
शोध और अध्ययनों के परिणाम (Results of research and studies) से प्रेरित होकर वे रोग की रोकथाम और उपचार (Disease prevention and treatment) दोनों में इसकी प्रभावशीलता की जोरदार वकालत करते हैं। उन्होंने उपचार के इस पारंपरिक रूप पर फिर से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।

Delhi Aiims विशेषज्ञों ने भी माना उपयोगी है यह थेरेपी

दिल्ली एम्स (Delhi Aiims) में मीडिया सेल प्रमुख डॉ. रीमा दादा (Dr. Reema Dada, Head of Media Cell in Delhi AIIMS) के मुताबिक, रोग प्रबंधन में मर्म थेरेपी (Marma Therapy in Disease Management) की परिवर्तनकारी क्षमता और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के साथ इसके मेल से उपयोगी परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि वह पारंपरिक प्रथाओं के साथ वैकल्पिक चिकित्सीय मार्गों की खोज (Exploration of alternative therapeutic routes) की वकालत करती हैं। साथ ही वह एक ऐसे भविष्य की कल्पना करती हैं, जहां समग्र स्वास्थ्य सेवा (holistic health care) सर्वोच्च होगी।
मर्म थेरेपी की प्रभावकारिता (Efficacy of Marma Therapy) का केंद्र इसके तत्काल उपचार और आराम देने वाले प्रभाव (Immediate healing and soothing effects) हैं, जो शारीरिक कायाकल्प से परे भावनात्मक और आध्यात्मिक कल्याण को शामिल करते हैं।
पूरे शरीर में रणनीतिक रूप से स्थित 107 प्रमुख मर्म बिंदुओं के साथ, इन महत्वपूर्ण ऊर्जा केंद्रों के महत्व को कम करके आंका नहीं जा सकता है, क्योंकि उनकी चोट या असंतुलन से स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। व्यापक स्वास्थ्य देखभाल के इस सहयोगात्मक प्रयास में, मर्म थेरेपी और आधुनिक चिकित्सा का मेल (Combination of Marma Therapy and Modern Medicine) आशा की एक किरण साबित हो सकता है।


नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

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