Rheumatology विभाग की देखरेख में संचालित होगा वार्ड
Delhi AIIMS Rheumatology Ward, Aiims Delhi 20 bed Rheumatology Ward, Aiims Rheumatology Department News : दिल्ली एम्स (AIIMS) में शुक्रवार को रूमेटिक मरीजों के उपचार (Treatment of rheumatic patients) के लिए 20 बिस्तरों वाले वार्ड (20 bedded Rheumatology ward) की शुरूआत की गई है।
यह दिल्ली एम्स (AIIMS) में उपचार करवाने वाले रूमेटिक मरीजों के लिए राहत भरी खबर है। रूमेटिक मरीजों के लिए 20 डेडिकेटेड बिस्तरों (20 dedicated beds for rheumatic patients) की उपलब्धता से विभिन्न प्रकार के रूमेटिक डिसऑर्डर (Rheumatic Disorder) से पीडित मरीजों के उपचार में सुविधा होगी।
Delhi AIIMS Rheumatology Ward : जरूरत पड़ने पर पेशेंट हो सकेंगे एडमिट
दिल्ली एम्स में रूमेटिक डिसऑर्डर (Treatment of Rheumatic Disorder in AIIMS Delhi) मरीजों के लिए 20 बिस्तरों वाले वार्ड (20 bedded rheumatology ward AIIMS) का विशेष रूप से महत्वपूर्ण होगा। अभी से पहले यहां के मरीजों को डे-केयर (Day Care) के तहत उपचार किया जाता था। जिसमें सिर्फ छह डे-केयर बेड उपलब्ध थे
जहां एडमिट रहने की एक खास समय सीमा तय होती है। नये वार्ड की शुरूआत (New rheumatology ward inaugurated in Delhi AIIMS) के साथ ही अब इस समस्या का समाधान भी हो गया है। अब जरूरत पडने पर यहां मरीजों को बाकायदा भर्ती करके उनको जरूरी उपचार दिया जा सकेगा।
Delhi AIIMS Rheumatology Ward : जल्द ही मिलेगी लैब की भी सुविधा
एम्स दिल्ली (AIIMS Delhi) में खुले 20 बिस्तरों वाले नए वार्ड के साथ ही शीघ्र ही रूमेटिक मरीजों की जांच (Screening of rheumatic patients) के लिए टेस्ट लैब (Test Lab) को भी स्थापित करने की योजना है। यहां ऑटोइम्यून रूमेटिक डिसऑर्डर (Autoimmune Rheumatic Disorder) मरीजों के लिए सभी अत्याधुनिक जांच की सुविधा होगी।
बायोलॉजिक्स लगवाने में होगी आसानी
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दिल्ली एम्स के 20 बिस्तरों वाले नए वार्ड (Delhi Aiims Rhumatology Ward) के शुरू होने से सबसे अधिक उन रूमेटिक मरीजों को राहत मिलेगी, जिन्हें बायोलॉजिक्स इंजेक्शन (biologics injections) लगाने की जरूरत पडती है।
यहां बता दें कि इंफ्लेमेटरी अर्थराइटिस (inflammatory arthritis) जैसी क्रोनिक कंडीशन (Chronic condition) वाली बीमारियों में लक्षणों को प्रबंधित (Symptoms manage) करने के लिए बायोलॉजिक्स इंजेक्शन (biological injection) देने की जरूरत पडती है। जिससे पहले मरीजों को एडमिट कर कई तरह के जरूरी जांच करने पडते हैं।
1970 में हुई थी रूमेटोलॉजी सेवाओं की शुरूआत
दिल्ली एम्स में रुमेटोलॉजी सेवाओं की शुरुआत (Rheumatology services started in AIIMS Delhi) 1970 में हुई थी। आज के मुकाबले तब देश में रूमेटिक डिसऑर्डर के प्रति जागरूकता (Awareness about rheumatic disorders) बेहद कम थी।
तब से रूमेटोलॉजी सेवाएं (Rheumatology Services Delhi AIIMS) मेडिसिन विभाग (Medicine Department) के तहत संचालित किया जा रहा था। वर्ष 2012 में दिल्ली एम्स में रूमेटिक मरीजों के लिए डे-केयर सुविधा (Day care facility for rheumatic patients at Delhi AIIMS) शुरू की।
वहीं, वर्ष 2015 में दिल्ली एम्स में रुमेटोलॉजी विभाग (Rheumatology Department Delhi AIIMS) स्थापित किया गया। वर्ष 2016 में रूमेटोलॉजी विभाग के तहत चार अतिरिक्त फैक्ल्टी को नियुक्त किया गया। वहीं, ऑक्यूपेशनल (Occupational Therapy) और वोकेशनल काउंसलिंग (Vocational Counseling) के साथ विशिष्ट लैब टेस्ट सेवाओं (Specialized lab test services) का भी विस्तार किया गया।
“हमने डी5 वार्ड में ये बेड उन रोगियों के लिए स्थापित किए हैं जिन्हें निदान परीक्षण और उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। बहुत से लोग निजी सुविधाओं का खर्च नहीं उठा सकते हैं, और यह विस्तार सुनिश्चित करता है कि उन्हें समय पर और प्रभावी देखभाल मिले।”– प्रोफेसर उमा कुमार, एचओडी, रूमेटोलॉजी विभाग, दिल्ली एम्स
रुमेटोलॉजी वार्ड से किन्हें मिलेगा लाभ ? Who will get benefits from Rumetology Ward?
दिल्ली एम्स के 20 बिस्तरों वाले वार्ड (20 bedded wards of Delhi AIIMS) का लाभ सीधे तौर पर उन मरीजों को मिलेगा, जो ऑटोइम्यून रूमेटिक डिसऑर्डर (Autoimmune Rheumatic Disorder) या ऑटोइम्यून इंफ्लेमेटरी डिसऑर्डर (Autoimmune inflammatory disorders) से पीडित होते हैं।
इन बीमारियों का प्रभावी उपचार अभी तक संभव नहीं हो पाया है। बीमारियों के लक्षण को प्रबंधित कर मरीजों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर करने की कोशिश की जाती है।
डीएम प्रोग्राम अब अगला लक्ष्य
दिल्ली एम्स में रुमेटोलॉजी विभाग (Rumetology Department at AIIMS Delhi) में इस नई इंडोर सेवा (New indoor service) की शुरूआत के बाद अगला लक्ष्य यहां डीएम प्रोग्राम (DM program in Rheumatology) की शुरूआत करना है।
जहां रूमेटोलॉजी की उन्नत शिक्षा और प्रशिक्षण (Advanced education and training of rheumatology) दिए जाएंगे। यहां बता दें कि देश में रुमेटोलॉजिस्ट (Rheumatologist) की मौजूदा संख्या मरीजों के अनुपात में बेहद कम है।
इस कमी को दूर करने की तत्काल जरूरत भी है। पिछले कुछ वर्षों में देश में रूमेटिक मरीजों की तादाद (Number of rheumatic patients) भी बढे हैं। ऐसे में यह कदम भी विशेष महत्व का साबित होगा।
क्या होते हैं रूमेटिक डिऑर्डर ? What are rheumatic disorder ?
रूमेटिक डिसऑर्डर एक प्रकार की स्वास्थ्य स्थिति (Health Condition) है, जिसके तहत जोडों और संयोजी उत्तकों (joints and connective tissue) से संबंधित समस्याएं होती हैं। इनमें से अधिकतर समस्याएं ऑटोइम्यून श्रेणी (Autoimmune Category) से संबंधित होती हैं।
जिसमें एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (ankylosing spondylitis), ल्यूपस (Lupus), गाउट (Gout), ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis), यूवाइटिस (uveitis), सोरियाटिक अर्थराइटिस (psoriatic arthritis) आदि शामिल हैं।
क्या होती है ऑटोइम्यून बीमारियां ? What are autoimmune diseases?
जब इम्यून सिस्टम (Immune System) भ्रमित होकर अपने ही शरीर के महत्वपूर्ण अंगों, जैसे – जोडों के बीच मौजूद कोमल उत्तकों (soft tissue between joints) को प्रभावित करने लगता है, तो इस स्वास्थ्य स्थिति को ऑटोइम्यून डिसऑर्डर (Autoimmune Disorders) कहते हैं।
जब ऑटोइम्यून स्थिति का प्रभाव जोडों पर पडता है, तो इस स्थिति को ऑटोइम्यून रूमेटिक डिसऑर्डर (Autoimmune Rheumatic Disorder) कहा जाता है। जब इस स्थिति में किसी मरीज के जोडों में सूजन (joint inflammation) की समस्या पैदा होती है, तो इस कंडिशन को ऑटोइम्यून इंफ्लेमेट्री कंडीशन (Autoimmune inflammatory condition) कहते हैं। इन सभी बीमारियों का उपचार करने में रूमेटोलॉजिस्ट (Rheumatologist) को विशेषज्ञता हासिल होती है।
ऑर्थोपैडिक विशेषज्ञ जहां सिर्फ हड्डियों से संबंधित समस्याओं का उपचार करते हैं। वहीं रूमेटोलॉजिस्ट जॉइंट के बीच मौजूद कोमल उत्तकों में होने वाली समस्याओं के उपचार में माहिर होते हैं।
अक्सर अर्थराइटिस (Arthritis) या ऑटोइम्यून रूमेटिक डिसऑर्डर के मरीज इसमें कन्फ्यूज हो जाते हैं कि उन्हें अपनी समस्या के लिए ऑर्थोपेडिक विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए या रूमेटोलॉजिस्ट के पास पहुंचना चाहिए। इस स्थिति में कई बार बीमारियों के निदान में समय लग जाता है। जिसके कारण मरीजों को इसका नुकसान उठाना पडता है।