Delhi High Court order: कहा समानता हासिल करने की दिशा में पहला कदम
नई दिल्ली।टीम डिजिटल : Delhi High Court Order : दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि आदेश के बाद बीमा कंपनियों ने दिव्यांगों के लिए 29 हेल्थ इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स (health insurance products) पेश किए हैं। कोर्ट ने कहा कि यह समानता हासिल करने की दिशा में पहला कदम होगा।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा, “हालांकि उक्त प्रोडक्ट दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सबसे आदर्श नहीं हो सकते हैं। यह केवल दिव्यांग व्यक्तियों के लिए समानता हासिल करने की दिशा में पहला कदम ही साबित होगा, जो दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 सहित कानूनों का गंभीर उद्देश्य है।
दिव्यांग व्यक्ति की याचिका पर हो रही थी सुनवाई
अदालत ने 2012 से टेट्राप्लाजिया सहित कई स्वास्थ्य बीमारियों से पीड़ित निवेश बैंकिंग पेशेवर सौरभ शुक्ला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सौरभ शुक्ला ने दो बीमा कंपनियों द्वारा हेल्थ इंश्योरेंस की अस्वीकृति के खिलाफ याचिका दायर की थी। याचिका पर फैसला करते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की। समय-समय पर अधिकारियों को विभिन्न निर्देश पारित करने के बाद मामले का निपटारा करते हुए अदालत ने कहा कि “वर्तमान याचिका में कार्यवाही के समापन तक भारत में 29 बीमा कंपनियों ने दिव्यांग व्यक्तियों के लिए इंश्योरेंस प्रोडक्ट पेश किए। यह वास्तव में उन्हें इंश्योरेंस का लाभ उठाने के लिए आशा की किरण प्रदान करते हैं।”
पिछले वर्ष बीमा कंपरियों की बैठक बुलाने का दिया था निर्देश
बीते वर्ष दिसंबर में अदालत ने भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) को सभी बीमा कंपनियों की बैठक बुलाने का निर्देश दिया था। उन्हें इस बैठक के जरिए यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया था कि जो इंश्योरेंस प्रोडक्ट दिव्यांग व्यक्तियों के लिए डिज़ाइन किए गए, उससे उन्हें लाभ मिल सके। जस्टिस सिंह ने कहा कि चार सरकारी बीमा कंपनियां न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड सहित विभिन्न सामान्य और इंश्योरेंस कंपनियों ने देश में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए प्रोडक्ट लॉन्च कर दिए हैं।
खूबियां और शुल्क में सुधार की गुंजाईश
हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि लॉन्च किए गए प्रत्येक प्रोडक्ट (health insurance products) की खूबियां और शुल्क उचित हैं या नहीं? इस विषय पर किसी भी उपयुक्त मंच द्वारा विचार किया जाए। मंच इस विषय पर फैसला करे। अदालत ने कहा, “सेक्टर नियामक होने के नाते आईआरडीएआई का यह भी दायित्व होगा कि वह यह सुनिश्चित करे कि दिव्यांगजन अनुचित रूप से पूर्वाग्रहित न हों और लॉन्च किए गए प्रोडक्ट की समीक्षा के बाद बीमा कंपनियों को उचित निर्देश दें।”
यह देखते हुए कि शुक्ला ने 17 मार्च को पारित पहले के आदेश (Delhi High Court Order) के अनुसार पहले ही हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का लाभ उठाया, अदालत ने उन्हें किसी भी बकाया शिकायत के लिए कानून के अनुसार अपने उपचार का लाभ उठाने की स्वतंत्रता दी। अदालत ने कहा, “यह अदालत यह सुनिश्चित करने में पक्षकारों और उनके वकीलों द्वारा दी गई सहायता की सराहना करती है कि भारत में दिव्यांगग व्यक्तियों के लिए इंश्योरेंस प्रोडक्ट (health insurance products) लॉन्च कर दिए गए हैं।”
जस्टिस सिंह ने फरवरी में इसी तरह के एक मामले के निपटने के दौरान, आईआरडीएआई से उस तरीके पर विचार करने के लिए कहा, जिसमें श्रवण दिव्यांगता और प्रत्यारोपण वाले व्यक्तियों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के प्रोडक्ट (health insurance products) को डिजाइन किया जा सके। शुक्ला अपनी बाहों के सीमित उपयोग के कारण व्हीलचेयर तक ही सीमित है।
उनका यह मामला है कि कभी अस्पताल में भर्ती नहीं होने के कारण उन्होंने मेडिक्लेम या हेल्थ इंश्योरेंस लेने के लिए दो बीमा कंपनियों मैक्स बूपा हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और ओरिएंटल हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से संपर्क किया लेकिन दोनों कंपनियों ने उन्हें कोई भी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी देने से इनकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने दिव्यांगता आयुक्त से संपर्क किया, जिन्होंने इस मामले को आईआरडीएआई के समक्ष भी उठाया लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। जिसके बाद शुक्ला ने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
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