मछली खाने से त्वचा कैंसर का बढता है जोखिम ? एक ताजा रिसर्च में नए खुलासे ने मछली पसंद करने वाले लोगों का जायका बिगाड दिया है। अब इसके साथ ही इस विषयय को लेकर नए स्तर पर बहस छिड गई है।
नई दिल्ली : मछली खाने वाले लोगों के लिए नई स्टडी निराश करने वाला साबित हो रहा है। स्टडी में खुलासे के बाद मछली खाने वाले लोगोंं का जायका बिगड सकता है लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि सामान्य रूप से मछली खाने वालों को जोखिम नहीं है। जोखिम उन लोगों के लिए बताई गई है, जो असामान्य मात्रा में मछली खाते हैं।
नई स्टडी में यह खुलासा हुआ है कि अधिक मात्रा में मछली खाने से त्वचा कैंसर (Skin Cancer) का जोखिम बढ जाता है। यह स्टडी अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी में की गई है। एनआईएच-एएआरपी हाइट और हेल्थ स्टडी (NIH-AARP Diet and Health Study) में यह पाया गया है कि रोजाना 42.8 ग्राम (सप्ताह में लगभग 300 ग्राम) मछली के सेवन और रोजाना 3.2 ग्राम के सेवन की तुलना में घातक मेलेनोमा (melanoma) का जोखिम 22 फीसद अधिक हो जाता है।
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यह स्टडी 4 लाख 91 हजार 367 अमेरिकी वयस्कों पर की गई है। जिसके आधार पर वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुुंचे हैं कि असामान्य मात्रा में मछली खाने से भी स्किन की बाहरी परत में असामान्य कोशिकाओं के विकास का जोखिम बढ जाता है। इसे कैंसर के पहले का स्टेज भी कहते हैं। यह त्वचा में होने वाला सामन्य कैंसर में से एक है।
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यहां बता दें कि इस तरह की स्टडी अभी तक कम ही की जा सकी थी। कुछ हुई भी थी लेकिन उसके परिणामों को लेकर विशेषज्ञों मेंं विश्वास की कमी थी। मौजूदा स्टडी का निष्कर्ष ‘कैंसर कॉजेज एंड कंट्रोल (Cancer Causes and Control)’ जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
हालांकि, अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन स्वस्थ भोजन के तौर पर एक हफ्ते में दो बार मछली खाने को सुरक्षित मानता है। इस स्टडी के ऑथर यूनयॉन्ग चो (Eunyoung Cho) मुताबिक ऐसी आशंका है कि स्टडी के नतीजों को शायद मछली में पाई जाने वाली दूषित पदार्थों से जोडकर देखा जाए।
मछली में पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल, डाइऑक्सिन, आर्सेनिक और मरकरी की मात्रा पाई जाती है, जो एक सामान्य मात्रा के बाद स्वास्थ्य के लिए समस्याएं पैदा कर सकता है।
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हलांकि, भारतीय डॉक्टर मौजूदा स्डटी को लेकर अलग अलग विचार रखते हैं। कुछ ने इसके तलने के दौरान पोषक तत्वों की कमी हो जाने से संबधित मामले को इस स्टडी से जोडकर देखा तो कुछ ने स्टडी को अनिर्नायक करार दिया। कुछ विशेषज्ञों कहना है कि भारतीय और एशियाई लोगों की त्वचा पर यह स्टडी फिट नहीं बैठती है।
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