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मच्छरजनित रोगों से निपटने में मदद करेंगे कीट वैज्ञानिक 

डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, लिम्फोटिक फाइलेरिया और जीका वायरस जैसी मच्छरजनित बीमारियों से निपटने के लिए आईसीएमआर ने कसी कमर

नई दिल्ली : मच्छरजनित रोगों की रोकथाम और बचाव में कीट वैज्ञानिकों की भूमिका अहम होगी। इन बीमारियों पर नकेल कसने  के लिए आईसीएमआर ने सुनियोजित योजना बनाई है। जिसके बाद डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, लिम्फोटिक फाइलेरिया और जीका वायरस फैलाने वाले मच्छरों से निपटने मेंं सहायता के लिए कीट वैज्ञानिक अपनी भूमिका निभाएंगे। 


भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने एक वर्ष के अंदर 100 कीट वैज्ञानिको (एन्टोमॉलॉजिस्ट) को प्रशिक्षित करने का निर्णय लिया है। इसके लिए पुडुचेरी में वेक्टर कंट्रोल रिसर्च सेंटर (वीआरसी) मेें सीटों की संख्या को बढाया गया है। इस योजना के तहत देश के प्रत्येक जिलों और नगर निगम स्तर पर एक बेहतर तरीके से प्रशिक्षित कीट वैज्ञानिकों की  मौजूदगी सुनिश्चित की जाएगी। इसके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य कीटविज्ञान 8 से 20 लोगोें की एक टीम तैयार करेगा। 
कीट विज्ञान – विकिपीडिया

कीट विज्ञान एक टैक्सोन-आधारित श्रेणी है; वैज्ञानिक अध्ययन के किसी भी रूप में ,जिसमें …
नेशनल पब्लिक हेल्थ एंटोमोलॉजी प्रोग्राम में चार अन्य आईसीएमआर ने भी साथ जुडने की सहमति दी है। ये क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र, डिब्रूगढ़ (असम), गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), राष्ट्रीय जनजातीय स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान, जबलपुर (मध्य प्रदेश) और राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, पटना (बिहार) से जुड़ कर काम करेंगे।
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वैज्ञानिकों ने हेपेटाइटिस ए वायरस की प्रभावी दवा ढूंढ ली है। इस  दावे में आखिर कितनी सच्चाई है। क्
इन संस्थानों के जरिए इससे संबंधित कोर्स को चरणबद्ध तरीके से शुरू किया जाएगा। पहले वर्ष में, लगभग 68 सीटें उपलब्ध होंगी। जिसके बाद 2023 में 80 सीटें बढाई जाएंगी। जबकि, 2025 तक सभी पांच संस्थानों में कुल मिलाकर 100 सीटें उपलब्ध कराया जाएगा। इस दौरान वीसीआरसी डिग्री, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स उपलब्ध कराकर इन-सर्विस और नए उम्मीदवारों के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य कीटविज्ञान के प्रशिक्षण के दायरे को बढ़ाया जाएगा।
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इसके लिए इंटरनेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर ट्रेनिंग इन मेडिकल एंटोमोलॉजी (ICETIME) की स्थापना की जाएगी। यहां बता दें कि देश में कीट वैज्ञानिकों की तादाद बेहद कम है लेकिन मच्छर जनित बीमारियों का जोर बढने से इनकी जरूरत महसूस हो रही है। इसी जरूरत को देखते हुए यह तैयारियां शुरू की गई है। 

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