देश में ग्लूकोमा के 112 लाख मरीज
World Glaucoma Day : भारत में ग्लूकोमा (Glaucoma) के 70 प्रतिशत से अधिक मामलों का पता नहीं चल पाता है। यह अंधेपन का एक प्रमुख कारण है। ग्लूकोमा एक ऐसी बीमारी है जो ऑप्टिक तंत्रिका को प्रभावित करती है। ग्लूकोमा देश में अंधेपन का तीसरा सबसे आम कारण है।
भारत में 40 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लगभग 112 लाख लोगों को ग्लूकोमा (Glaucoma) है। इसमें से सिर्फ 20 प्रतिशत को ही यह पता है कि उन्हें ग्लूकोमा है। विशेषज्ञ इसकी संख्या के और अधिक होने की आशंका इसलिए भी व्यक्त कर रहे हैं क्योंकि ग्लूकोमा के 70 प्रतिशत मामलों का पता नहीं चल पाता है।
शुरूआत में नहीं उभरते Glaucoma symptoms
दिल्ली एम्स के डॉ. आर.पी. सेंटर फॉर ऑप्थेलमिक साइंसेज में प्रोफेसर डॉक्टर रोहित सक्सेना के मुताबिक, “ग्लूकोमा के अधिकांश रोगियों को अपनी बीमारी के बारे में पता नहीं होता है क्योंकि शुरुआत में इसके कोई लक्षण नहीं होते हैं। केवल जब उन्नत मामलों में वे दृष्टि खोने लगते हैं तब चिकित्सा सहायता लेते हैं। हालांकि, ग्लूकोमा मुख्य रूप से मध्यम आयु वर्ग और बुजुर्गों को प्रभावित करता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस रोग से किसी भी उम्र के लोग प्रभावित हो सकते हैं। ग्लूकोमा में दृष्टि हानि ऑप्टिक तंत्रिका की क्षति के कारण होती है। यह तंत्रिका आंखों से चित्र लेने का काम करती है। दृष्टि हानि होने से जीवन की कम गुणवत्ता के साथ दैनिक जीवन की गतिविधियों को करने की क्षमता प्रभावित होती है। इससे स्वतंत्रता की हानि, प्रतिबंधित गतिशीलता, अवसाद और चिंता शामिल है।”
बीमारी बढने के साथ दृष्टि होने लगती है धुंधली
सर गंगा राम अस्पताल में वरिष्ठ कॉर्निया, मोतियाबिंद और रिफ्रैक्टरी सर्जरी विशेषज्ञ डॉ. इकेदा लाल के मुताबिक, जैसे-जैसे स्थिति बढ़ती है, मरीजों को धुंधली दृष्टि, कम रोशनी के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाई, परिधीय (साइड) दृष्टि कम होना और रोशनी के चारों ओर प्रभामंडल देखने का अनुभव हो सकता है। कुछ रोगियों को आंखों में दर्द और सिरदर्द का भी अनुभव हो सकता है। यदि आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई देता है, तो व्यापक नेत्र परीक्षण के लिए नेत्र चिकित्सक को दिखाना महत्वपूर्ण है।
लाइलाज है आंखों की यह समस्या
डॉक्टर इकेदा लाल के मुताबिक, “ग्लूकोमा (Glaucoma) एक लाइलाज बीमारी है। शीघ्र पता लगाने के साथ समय रहते उपचार करना बहुत महत्वपूर्ण है। इससे आगे दृष्टि हानि को रोकने में मदद मिल सकती है। उपचार के विकल्पों में इंट्राओकुलर दबाव कम करने के लिए आई ड्रॉप, दवाएं, लेजर थेरेपी या गंभीर मामलों में सर्जरी शामिल हो सकती है।
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शीघ्र पता लगाने और उपचार से, ग्लूकोमा से दृष्टि को बचाया जा सकता है और इन रोगियों को अपने पूरे जीवन में बहुत अच्छी दृष्टि मिल सकती है। इसलिए इस बीमारी से डरने की जरूरत नहीं है। 40 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों, विशेष रूप से जिनके परिवार में ग्लूकोमा का इतिहास है, उन्हें हर साल आंखों की व्यापक जांच करानी चाहिए, जिसमें रेटिना और ऑप्टिक तंत्रिका की जांच भी शामिल है।