Friday, November 22, 2024
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 Delhi : एक ‘शब्द’ को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने IRDA को दिखाया आईना 

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Delhi : IRDA ने दिव्यांगों से संबंधित नियमोें में ‘घटिया जीवन’ शब्द का किया था प्रयोग

नई दिल्ली।टीम डिजिटल : शब्द अपने आप में पूरा संसार है। शब्द सही हो तो हृदय को भाता है और अगर यही शब्द गलत हो तो मन को कष्ट पहुंचाता है। दिल्ली (Delhi) हाईकोर्ट ( High Court) में एक मामले में बहस के दौरान भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA) द्वारा दिव्यांगों से संबंधित नियम (rules related to disabilities) में एक शब्द के प्रयोग को लेकर न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कडी आपत्ति जताई। साथ ही आईआरडीए  के शब्द ज्ञान पर सवाल उठाते हुए तत्काल आपत्तिजनक शब्द को संशोधित करने के निर्देश दिए। 
दरअसल, आईआरडीए ने दिव्यांगों से संबंधित नियमों में ‘घटिया जीवन’ शब्द का प्रयोग किया था। यह देखकर दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति हैरान रह गईं। उन्होंने प्राधिकरण से कहा कि दिव्यांगों (विकलांगों) का उल्लेख करते हुए ऐसी ‘अस्वीकार्य शब्दावली’ उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

दिव्यांंगों के लिए स्वास्थ्य बीमा डिजाइन करने के निर्देश 

 एक 'शब्द' को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने IRDA को दिखाया आईना 
एक ‘शब्द’ को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने IRDA को दिखाया आईना
दिल्ली उच्च न्यायलय की न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने आईआरडीए से कहा कि जीवन के अधिकार में स्वास्थ्य का भी अधिकार (right to life also right to health) शामिल है। ऐसे में दिव्यांग लोगों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजनाओं (health insurance plans for disabled people) को तैयार करने के लिए सभी बीमा कंपनियों की बैठक बुलाई जाए। उन्होंने योजनाओं का खाका पेश करने के लिए प्राधिकण को दो महीनों का वक्त दिया है। उन्होंने कहा कि दिव्यांग स्वास्थ्य बीमा कवर के हकदार हैं और उनके साथ भेदभाव करना मुनासिब नहीं है। 
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क्या कहता है कानून 

कानून में यह स्थापित स्थिति है कि जीवन के अधिकार में स्वास्थ्य के अधिकार को भी शामिल किया गया है। स्वास्थ्य देखभाल इसी का एक अभिन्न अंग है। दिव्यांगों के अधिकार अधिनियम 2016, (Rights of Persons with Disabilities Act 2016) बीमा के लिए विकलांग व्यक्तियों के अधिकार के रूप में कोई अस्पष्टता नहीं छोड़ता है। धारा 3, 25 और 26 के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि स्वास्थ्य देखभाल और अन्य जुड़े पहलुओं से संबंधित मामले में  दिव्यांगों से भेदभाव नहीं किया जा सकता है। अदालत ने अपने हाल के आदेश में यह टिप्पणी की है। 

टेट्राप्लेजिया पीडित की याचिका पर हो रही थी सुनवाई 

कोर्ट ने आईआरडीए से सभी बीमा कंपनियों की बैठक बुलाकर यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि उत्पादों को 2 जून, 2020 के परिपत्र के अनुसार विकलांग व्यक्तियों और अन्य व्यक्तियों के लिए डिज़ाइन किया गया है या नहीं। सा​थ ही ऐसे उत्पादों को डिजाइन करने की प्रक्रिया की निगरानी भी करने की जिम्मेदारी आईआरडीएआई को सौंपी है। कोर्ट ने कहा है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि उक्त उत्पादों को प्रारंभिक तिथि (दो महीने के अंदर) पर पेश किया जाए।
दरअसल, अदालत का आदेश एक निवेश पेशेवर की याचिका पर पारित किया गया, जो टेट्राप्लेजिया के कारण व्हीलचेयर तक सीमित था। पीडित की छाती के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त है और दो बीमा कंपनियों ने उन्हें स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी जारी करने से इंकार कर दिया। जिसके बाद पीडित ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 

संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन 2006 के तहत भी दिव्यांगों के साथ भेदभाव अनुचित 

 एक 'शब्द' को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने IRDA को दिखाया आईना 
एक ‘शब्द’ को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने IRDA को दिखाया आईना
अदालत संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, 2006 (United Nations Convention, 2006) का हवाला देते हुए कहा कि स्वास्थ्य बीमा के प्रावधान में विकलांग व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव अनुचित है। साथ ही यह भी कहा कि वर्तमान मामले में बीमा कंपनियों द्वारा याचिकाकर्ता के प्रस्ताव को गुप्त अस्वीकृति पत्रों के साथ अस्वीकार करना बेहद निराशाजनक है। अदालत ने कहा कि विकलांग व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के बावजूद, बीमा कवरेज को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। सा​थ ही बीमा प्रदाताओं को स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी जारी करने के लिए याचिकाकर्ता के मामले पर विचार करने के निर्देश भी दिए। 

आईआरडीए सुनिश्चित करे नितियां विधिवत लागू हो 

अदालत ने अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि इसमें संदेह को कोई सवाल ही नहीं है कि विकलांग व्यक्ति स्वास्थ्य बीमा कवरेज के हकदार होंगे (Persons with disabilities will be entitled to health insurance coverage)। उन्हें कवरेज प्राप्त हो सके, इसलिए जरूरी है कि उत्पादों को सही तरह से  डिजाइन किया जाए। विनियामक ढांचे के तहत भी बीमा कंपनियों को विकलांग व्यक्तियों, एचआईवी पीडित मरीजों के अलावा मानसिक बीमारी से प्रभावित व्यक्तियों को बीमा कवर देना होता है।
आईआरडीएआई को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नीतियों का बीमा कंपनियां विधिवत पालन करे। अदालत ने कहा कि “याचिकाकर्ता को स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी जारी करने से इंकार करना IRDA के लिए एक चेतावनी की घंटी होनी चाहिए। दुर्भाग्य से, उपरोक्त कानूनी स्थिति और रिकॉर्ड पर IRDA की स्थिति के बावजूद, कार्यान्वयन में एक डिस्कनेक्ट है। अदालत ने IRDAI और बीमा कंपनियों से स्टेट्स रिपोर्ट मांगी। साथ ही मामले की अगली सुनवाई के लिए 17 मार्च का समय दिया है। 
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

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