Rheumatology : भारत-पाकिस्तान में जोडों के दर्द वाले मरीजों का हाल बेहाल
नई दिल्ली, टीम डिजिटल :
रूमेटोलॉजी के क्षेत्र में भारत और पाकिस्तान Rheumatology in India and Pakistan दोनों का कमोबेश एक जैसा ही हाल है। बीते कुछ वर्षों से जहां भारत ने कई मोर्चों पर तेजी से विकास किया है, वहीं पाकिस्तान आर्थिक मोर्चे पर लगातार जूझ रहा है। रूमेटोलॉजी चिकित्सा का एक अहम क्षेत्र है और आज के युग में इस क्षेत्र में विशेषज्ञों की मांग तेजी से बढ रही है।
दोनों ही देशों में रूमेटोलॉजी (rheumatology) क्षेत्र में मौजूद अभाव के कारण जोडों के दर्द, ऑटो इम्यून रूमेटिक डिसआर्डर, इम्यूनोथेरेपी, और जेनेटिक बीमारियों के मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड रहा है।
दरअसल, यह हम नहीं कह रहे बल्कि रूमेटोलॉजी के क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित विशेषज्ञ की एक लेख में दोनों ही देशों की स्थिती पर चिंता जताई गई है। यह लेख एक प्रतिष्ठित हेल्थ जर्नल में प्रमुखता से प्रकाशित की गई है। इस लेख में विशेषज्ञ ने दोनों देशों में रूमेटोलॉजी (rheumatology) के क्षेत्र की उन तमाम कमियों को उजागर किया है, जिसकी वजह से मरीजों को उपचार के लिए भारी संघर्ष करना पड रहा है।
क्या है रूमेटोलॉजी
रुमेटोलॉजी (rheumatology) आमवाती रोगों के निदान और उपचार के लिए समर्पित दवा की एक शाखा है। रुमेटोलॉजी में औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले चिकित्सकों को रुमेटोलॉजिस्ट कहा जाता है। रुमेटोलॉजिस्ट मुख्य रूप से मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम, कोमल ऊतकों, ऑटोइम्यून रोगों, वास्कुलिटाइड्स और विरासत में मिले संयोजी ऊतक विकारों के प्रतिरक्षा-मध्यस्थता विकारों से निपटते हैं। इनमें से कई बीमारियों को अब प्रतिरक्षा प्रणाली के विकार के रूप में जाना जाता है। रुमेटोलॉजी को मेडिकल इम्यूनोलॉजी का अध्ययन और अभ्यास माना जाता है।
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क्यों बिगड रहे हैं हालात
रूमेटोलॉजी इन इंडिया एंड पाकिस्तान (Rheumatology in India and Pakistan) टुडे शीर्षक से प्रकाशित इस लेख को लंदन स्थित सेंट थॉमस एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट के डिपार्टमेंट ऑफ रूमेटोलॉजी के विशेषज्ञ terence Gibson ने लिखा है। इस लेख में उन्होंने कहा है कि भारत और पाकिस्तान में रूमेटोलॉजी (Rheumatology in India and Pakistan) से संबंधित बीमारियों से पीडित मरीजों की फ्रिक्वेंसी और पैटर्न पश्चिमी देशों से काफी मिलती जुलती है। जहां काफी तादाद में लोग अर्थराइटिस से पीडित हैं।

उपचार के अभाव में भटकने को मजबूर हैं मरीज
गिब्सन के मुताबिक इन दोनों ही देशों में रूमेटोलॉजी (rheumatology) क्षेत्र में मौजूद अभाव की स्थिति मरीजों को भटकने के लिए मजबूर कर रही है। जिसके कारण मरीज परंपरागत उपचार, हकीम और फॉर्मासिस्टों का सहारा लेने को विवश हैं। उन्होंने लिखा है कि यह स्थिती इसलिए हावी है क्योंकि रूमेटोलॉजी के डॉक्टरों की उपलब्धता, मरीजों की कमजोर आर्थिक स्थिति प्रमुख रूप से बाधा बन रही है।
हलांकि, उन्होंने यह भी कहा है कि भारत में आयुर्वेद एक स्थापित और सस्ता विकल्प जरूर है। इसकी गहरी सांस्कृतिक जडें हैं और कुछ पारंपरिक औषधियां दर्द के मामले में मॉर्डन मेडिसिन की तरह ही बेहतर राहत प्रदान करने में भी सक्षम है।
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रूमेटोलॉजिस्टों की भारी कमी
गिब्सन के मुताबिक रूमेटोलॉजी (rheumatology) में विशेषतौर से रूमेटाइड अर्थराइटिस की समस्या से निपटने के लिए बेहद प्रशिक्षित चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। दक्षिण एशिया में विभिन्न तरह की विशेषज्ञता के विकास के बावजूद जनसंख्या के मुकाबले भारत और पाकिस्तान दोनों में ही रूमेटोलॉजिस्टों की उपलब्धता बेहद दयनीय स्थिति में है। भारत में जहां केवल 100 मान्यता प्राप्त रूमेटोलॉजिस्ट हैं। वहीं, पाकिस्तान में इनकी संख्या महज 20 ही है।
कमोबेश पूरे दक्षिण एशिया में ऐसा ही हाल है। देखा जाए तो प्रति नौ मिलियन लोगों पर यहां एक रूमेटोलॉजिस्ट उपलब्ध है। यह आंकडा अपने आप में चौंकाने वाला साबित हो रहा है। अगर अन्य विशेषज्ञता के साथ इन देशों में रूमेटोलॉजिस्टों (rheumatology) की उपलब्धता पर ध्यान केंद्रित किया जाए तो हालात सुधर सकते हैं। रूमेटोलॉजिस्टों की कमी एक प्रमुख वजह है, जिसके कारण चिकित्सा शुल्क देने में सक्षम लोगों को भी उपचार के लिए संघर्ष करना पडता है।
वर्ष 1984 में हुआ था आईआरए का गठन
ये हालात तब हैं, जब दोनों ही देशों में लंबे समय से नेश्नल रूमेटोलॉजी एसोसिएशन (एनआरए) मान्यता प्राप्त है। भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इंटरनेशनल लीग ऑफ एसोसिएशन फॉर रूमेटोलॉजी कम्यूनिटी ओरिएंटेड प्रोग्राम फॉर कंट्रोल रूमेटिक डिजिजेज (डब्ल्यूएचओ आईएलएआर सीओपीसीओआरडी) कम्यूनिटी स्तर पर इस तरह के रोगियों की जरूरतों की पहचान और डॉक्यूमेंटेशन के कार्य में जुटा हुआ है।
दोनों, भारतीय रुमेटोलॉजी एसोसिएशन (आईआरए) और पाकिस्तान सोसाइटी फॉर रुमेटोलॉजी (पीएसआर) विभिन्न स्थानों पर वार्षिक बैठकें आयोजित करते हैं जिनमें इन मामलों पर चर्चा की जाती है। हलांकि, इंडियन रूमेटोलॉजी एसोसिएशन ने इस क्षेत्र में कुछ राष्ट्रीय स्तर के अध्ययन भी किए हैं।
यहां बता दें कि इंडियन रूमेटोलॉजी एसोसिएशन की स्थापना वर्ष 1984 में की गई थी। गिब्सन के मुताबिक वर्ष 1988 में जब पहली बार उन्होंने एसोसिएशन के वार्षिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया तो उस समय बैठक में 60 प्रतिनिधि मौजूद थे। इनमें आधे से ज्यादा यूके के विशेषज्ञ थे।
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आबादी के अनुपात में चिकित्सकों का होना जरूरी
गिब्सन के मुताबिक 2013 में आयोजित वार्षिक बैठक के दौरान इसमें 700 प्रतिनिधि मौजूद थे लेकिन रूमेटोलॉजिस्टों की संख्या बेहद कम थी। भारत में राष्ट्रीय रूमेटोलॉजी एसोसिएशन के गठन के एक दशक के बाद पाकिस्तान में रूमेटोलॉजी एसोसिएशन का गठन किया गया लेकिन इसका लाभ रूमेटॉलाजी क्षेत्र को उतना नहीं मिला, जितना मिलना चाहिए था।
दक्षिण एशिया क्षेत्र में रूमेटोलॉजिस्टों (Rheumatology in India and Pakistan) की कमी को दूर करने के लिए आबादी के हिसाब से रूमेटोलॉजी (rheumatology) के क्षेत्र में प्रशिक्षित विशेषज्ञों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ लेटेस्ट ट्रीटमेंट के विकास के लिए प्रयास तेज करने होंगे।
तभी यहां रूमेटोलॉजी से संबधित बीमारियों से जूझ रहे मरीजों की मुश्किलों को कुछ हदतक कम किया जा सकेगा। इसके लिए वित्त पोषित पदों के सृजन के साथ मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति का भी होना जरूरी है। ऐसा होगा तभी इन विकाशील देशों में रोगियों के जीवनस्तर में सुधार की उम्मीद की जा सकती है।

ज्यादातर रूमेटोलॉजिस्ट करते हैं विदेश का रूख
दोनों देशों में रूमेटोलॉजी (Rheumatology in India and Pakistan) के क्षेत्र में बढती चुनौतियों के लिए एक और फैक्टर जिम्मेदार है। यहां के 20 प्रतिशत रूमेटोलाजिस्ट ही स्वदेश में प्रैक्टिस कर रहे हैं। 50 प्रतिशत रूमेटोलॉजिस्ट विदेशों से प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं और वे अपने देश वापस ही नहीं लौटते। गिब्सन के मुताबिक भारत में रूमेटोलॉजिस्टों के 11 प्रशिक्षण संस्थान मान्यता प्राप्त हैं। इनमें से 3 दिल्ली में, 2 लखनऊ में और अन्य देश के दूसरे स्थानों में मौजूद हैं। जबकि, पाकिस्तान में ऐसे प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या चार ही है। ये सभी इस्लामाबाद, लाहौर और कराची में स्थित हैं।
अगर पश्चिमी देशों की व्यवस्था से भारत की तुलना करें तो यूके में प्रति एक हजार जन्संख्या पर नर्सों की संख्या 12.7 है, अमेरिका में यह अनुपात 12.3 है और भारत की बात करें तो यहां प्रति एक हजार की जनसंख्या पर महज 1.6 नर्स ही उपलब्ध हैं।
गिब्सन के मुताबिक इन तमाम स्थितियों को ध्यान रखते हुए दक्षिण एशिया और भारत पाकिस्तान (Rheumatology in India and Pakistan) जैसे देशों में रूमेटोलॉजी के क्षेत्र में कार्यबल बढाने और इस क्षेत्र में उपचार क्षमता को गंभीरता से बढाने के प्रयास किए जाने चाहिए। ऐसे मरीजों के उपचार में रूकावट की वजह से वे विकलांगता के शिकार होते हैं। इसलिए इस क्षेत्र में व्यापक सुधार की दिशा में ध्यान देने की जरूरत है। रूमेटोलॉजी के क्षेत्र में भारत और पाकिस्तान दोनों का कमोबेश एक जैसा ही हाल
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