हेल्थ रिपोर्ट 2022 : हेल्थ के मामले में दुनिया में किस तरह की रही हलचल
दुनियाभर में बडी समस्या बन चुकी है बांझपन
नई दिल्ली। Team Caas India : बांझपन (Infertility) दुनियाभर के लिए बडी समस्या बनकर उभर रही है। एक अनुमान के मुताबिक 48 मिलियन जोड़े और 186 मिलियन व्यक्ति विश्व स्तर पर बांझपन से पीडित हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में सक्रिय रूप से गर्भ धारण करने का प्रयास करने वाले लगभग 27.5 मिलियन जोड़े इस समस्या से पीड़ित हैं।
सेहत से सीधी जुडी हुई है समस्या :
विश्वभर के 18 वर्ष से अधिक आयु के 39 प्रतिशत वयस्क सामान्य के मुकाबले अधिक वजन वाले हैं। जबकि, 13 प्रतिशत लोग


मोटापे का शिकार हैं। 1970 के दशक के मुकाबले मोटापे की समस्या तीन गुनी हो चुकी है। मोटापा के कारण हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हृदय रोग और बांझपन जैसी बीमारियां तेजी से लोगों को चपेट में ले रही है। यह समस्या जीवन शैली से संबंधित सबसे बड़ा जोखिम साबित हो रहा है। लेप्टिन, मुक्त फैटी एसिड (एफएफए), और साइटोकिन्स जैसे कई कारकों के उत्पादन के माध्यम से वसा ऊतक अच्छी प्रजनन क्षमता के लिए आवश्यक हार्मोनल संतुलन को बिगाड सकता है।
बढ रहा है जोेखिम :
उच्च बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) वाली महिलाओं में अंडा उत्पादन, अनियमित मासिक धर्म चक्र, गर्भपात की घटनाओं में वृद्धि और गर्भावस्था की जटिलताओं में बढोत्तरी पाई गई है।
पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज वजन बढ़ने की वजह से संबंधित है। यह महिलाओं में बांझपन का सबसे आम कारण है।
पुरुष प्रजनन प्रणाली में, उच्च बीएमआई वाले पुरुषों में वीर्य की अस्वीकृति, शुक्राणु की अनुपस्थिति या निम्न स्तर, या असामान्य आकार (आकृति विज्ञान) और शुक्राणु की गति (गतिशीलता) में समस्याएं पाई जाती हैं। बांझपन से पीड़ित लगभग 40 प्रतिशत जोड़ों में ऐसे पुरुष कारकों की समस्या होती है।
देर से विवाह और अपने तीसवें और चालीसवें दशक में गर्भधारण की कोशिश करने वाले जोड़े प्रजनन क्षमता दर कम हो जाती है। खराब आहार और गतिहीन जीवन शैली के नकारात्मक प्रभाव हार्मोनल असंतुलन की वजह बनते हैं और यह बांझपन बढाने वाला साबित होता है।
बांझपन के अन्य कारण :
बांझपन पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से प्रभावित करता है।कई पर्यावरणीय, आनुवंशिक और अधिग्रहित कारक हैं जो वर्तमान प्रजनन आयु समूहों में प्रजनन क्षमता में गिरावट की तरफ ले जाते हैं। जो अभी 25 से 34 वर्ष के बीच है।
जीवनशैली से संबंधित बांझपन के कारण :
1. खराब जीवनशैली
जैसे देर तक काम करने की प्रवृत्ति, देर रात की शिफ्ट, अनियमित सोने का समय, नींद के पैटर्न में गड़बड़ी, साथ ही तनाव और चिंता हमारी दैनिक दिनचर्या को प्रभावित करने वाले कारण हैं। नियमित व्यायाम की कमी, मोटापा जैसी समस्या हार्मोनल विकार और अनियमित अवधियों की वजह बनती है।
मोटापा शुक्राणुओं को नुकसान पहुंचाने वाली एक बडी वजह है। पुरुष हार्मोन असंतुलित अनुपात, काम पर लंबे समय तक बैठने से उत्पन्न गर्मी शुक्राणुओं को प्रभावित करने लगती है। लंबे समय तक तंग अंडरगारमेंट्स पहनने के साथ जींस पहनने से भी शुक्राणु प्रभावित होते हैं।
2. खराब आहार :
कार्बोहाइड्रेट युक्त, रेडी टू यूज और पैकेज्ड खाद्य पदार्थ खाना नुकसान पहुंचा सकता है जबकि फाइबर युक्त आहार, बाजरा, फल और सब्जियां अधिक खाना चाहिए। उच्च शर्करा वाले खाद्य पदार्थ और बेकरी उत्पाद, और पैक और संरक्षित सामान में प्रोबायोटिक्स की कमी सामान्य योनि जिवाणु वनस्पतियों में असंतुलन पैदा करती है। योनि जीवाणु वनस्पतियां गर्भाशय और ग्रीवा के संक्रमण को रोकता है।
शुक्राणु की गुणवत्ता सीधे आहार संबंधी आदतों से प्रभावित होती है। महिलाओं में, खराब आहार के चलते ओव्यूलेशन डिसफंक्शन और पीरियड्स में देरी की समस्या हो सकती है, जिससे बांझपन भी हो सकता है। भोजन का समय अनियमित होने से भी बीएमआई प्रभावित होता है।
3. जागरूकता की कमी :
किशोरावस्था में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य में शिक्षा की कमी से यौन संचारित रोग होने का जोखिम बढ जाता है। जिससे ट्यूबल समस्याओं (tubal problems) के कारण लाइलाज बांझपन हो सकता है। इसके अलावा, फर्टाइल विंडो के बारे में ज्ञान की कमी भी महिलाओं में बहुत आम है। काम की शिफ्ट के कारण या नौकरी से संबंधित अलग-अलग जगहों पर रहने के कारण जब वास्तव में इसकी आवश्यकता होती है तो लोग सेक्स ही नहीं करते हैं।
4. शादी और बच्चे से अधिक करियर को प्राथमिकता :
आज के समय में करियर बनाना किसी भी व्यक्ति के लिए अधिक जरूरी हो गया है क्योंकि यह समय की सबसे बडी मांग है। करियर बनने का मतलब है जीवन सेटल हो जाना। वर्तमान समय में यह महिलाओं के लिए भी प्राथमिकता का विषय है, जो काफी हदतक ठीक भी है लेकिन इस कोशिश का नकारात्मक प्रभाव भी महिलाओं और पुरूषों के प्रजनन स्वास्थ्य पर पड रहा है। करियर के लिए लोग शादी और बच्चे के जन्म को स्थगित करके वित्तीय स्थिरता की तलाश करने की प्रवृत्ति रखते हैं। यूरोपीय महिलाओं की तुलना में भारतीय महिलाएं रिप्रोडक्टिव उम्र बढ़ने में छह साल आगे हैं।
भारतीय महिलाओं की मेनोपॉसल (menopausal) की औसत आयु 47 वर्ष है लेकिन यूरोपीय महिलाओं के लिए यह 51 वर्ष है। इसलिए, प्रजनन काल छोटा है और हम अपने दैनिक अभ्यास में कई महिलाओं को कम एएमएच (एंटी मुलेरियन हार्मोन) के साथ पाते हैं। लड़कियों में समय से पहले मासिक धर्म शुरू होने से यह समस्या और भी अधिक बढती हुई दिख रही है। प्रजनन काल जल्दी शुरू होता है और जल्दी खत्म भी हो जाता है।
5. पर्यावरण प्रदूषण का भी पड रहा है प्रभाव :
पर्यावरण और प्रदूषण महिलाओं में पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की वजह बन सकते हैं। जबकि इससे पुरूषों में शुक्राणुओं की मात्रा और गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। यह भी एक हकीकत है कि प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग से हमारे शरीर के विभिन्न अंग प्रभावित हो रहे हैं। लड़कियों में 10 साल से पहले शुरुआती माहवारी या असामयिक यौवन को वायु प्रदूषण और खाद्य पदार्थों में मिलावट उपोत्पाद (By-product) के रूप में सामने आ रहा है।
6. धूम्रपान और शराब पीना
धूम्रपान और शराब का सेवन, साथ ही गैजेट्स से विद्युत चुम्बकीय विकिरण से भी शुक्राणुओं की तादाद प्रभावित होती है। इससे शुक्राणु के डीएनए को नुकसान पहुंचता हैं। धूम्रपान करने वाली महिलाओं में ओवेरियन रिजर्व (ovarian reserve) में तेजी से गिरावट होता है। यानी फॉलिकल्स (follicles) की संख्या कम हो जाती है। एएमएच का स्तर भी गिर जाता है और समय से पहले मेनोपॉसल (menopausal) हो सकता है।
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