देश में सबसे अधिक मौत के लिए जिम्मेदार है फेफडे का कैंसर
नई दिल्ली। टीम डिजिटल :
फेफडे का कैंसर (lung cancer) देश में सबसे अधिक मौत की वजह बन रहा है। यह हाल तब है, जब इसके उपचार में प्रगति हुई है। बावजूद इसके मृत्यु दर में मामूली गिरावट पाई गई है। विशेंषज्ञ फेफडे के कैंसर के ऐसे प्रभाव से खासे चिंतित नजर आ रहे हैं।
गुरूग्राम स्थित मेदांता अस्पताल (Medanta Hospital) के डॉ. अरविंद कुमार और उनकी टीम ने एक दशक में उपचार प्राप्त करने वाले 300 से ज्यादा फेफडे का कैंसर (lung cancer) वाले मरीजों पर अध्ययन (Study on patients with lung cancer) का विश्लेषण साझा किया है। जिसमें जन स्वास्थ्य पर गंभीर परिणामों के रूझान सामने आए हैं। ग्लोबोकैन 2020 की रिपोर्ट (Globocan 2020 Report) के मुताबिक भारत में कैंसर से होने वाली सबसे ज्यादा मौतें फेफड़ों के कैंसर की वजह से होती हैं।
कम उम्र के और धूम्रपान न करने वाले मरीजों की बढ रही है तादाद
lung cancer expert डॉ. अरविंद कुमार (Dr. Arvind Kumar) के नेतृत्व में एक टीम ने पाया कि आउट-पेशेंट क्लिनिक में आने वाले मरीजों में धूम्रपान न करने वाले और कम उम्र वाले मरीजों की संख्या बढ़ रही है। मार्च 2012 से नवंबर 2022 के बीच इलाज कराने वाले मरीजों का विश्लेषण करके इन मरीजों का जनसांख्यिकीय विवरण और रूझान का एक चार्ट तैयार किया गया।
ऐसे किया अध्ययन
इस अध्ययन में 304 मरीजों का विश्लेषण किया गया। क्लिनिक में पहुंचने पर उम्र, लिंग, धूम्रपान की स्थिति, निदान के वक्त बीमारी के चरण और फेफडे का कैंसर का प्रकार (type of lung cancer) दर्ज किया गया और अन्य पैरामीटर्स के साथ उसका विश्लेषण किया गया।
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मुख्य बिंदु
1. पुरुषों और महिलाओं, दोनों में फेफड़ों के कैंसर में वृद्धि देखी गई। पुरुषों में प्रसार व मृत्युदर के मामले में यह पहले से ही नं. 1 कैंसर है, जबकि महिलाओं में यह पिछले 8 सालों में नं. 7 (ग्लोबोकैन 2012) से उछलकर नं. 3 (ग्लोबोकैन) पर पहुँच गया है। 2. लगभग 20 प्रतिशत मरीजों की उम्र 50 साल से कम पाई गई। रूझान में सामने आया कि भारतीयों में फेफड़ों का कैंसर पश्चिमी देशों के मुकाबले लगभग एक दशक पहले विकसित हो गया। लगभग 10 प्रतिशत मरीज 40 साल से कम उम्र के थे। जिनमें 2.6 प्रतिशत की उम्र 20 वर्ष के आस-पास थी। 3. इनमें से लगभग 50 प्रतिशत मरीज धूम्रपान नहीं करते थे। इनमें 70 प्रतिशत मरीज 50 साल से कम उम्र के थे, और 30 साल से कम उम्र के 100 प्रतिशत मरीज धूम्रपान नहीं करते थे। 4. फेफड़ों के कैंसर के मामले महिलाओं में बढ़ते हुए पाए गए, जो मरीजों के कुल भार की 30 प्रतिशत थीं, और ये सभी धूम्रपान नहीं करती थीं। इससे पूर्व यह आंकड़ा बहुत कम था (ग्लोबोकैन 2012 में)। 5. 80 प्रतिशत से ज्यादा मरीजों का निदान बीमारी के विकसित चरण में हुआ, जब उनका पूरा इलाज संभव नहीं हो पाता है, और इलाज केवल राहत प्रदान करने तक सीमित रह जाता है। 6. लगभग 30 प्रतिशत मामलों में मरीज की स्थिति को प्रारंभ में भ्रमित होकर ट्यूबरकुलोसिस मान लिया गया और महीनों तक उसका इलाज किया गया, जिससे सही निदान और इलाज में विलंब हो गया। 7. अधिकांश मरीज पिछली रिपोर्ट्स में सबसे ज्यादा होने वाले स्क्वैमस कार्सिनोमा के विपरीत एडेनोकार्सिनोमा के साथ आए। एडेनोकार्सिनोमा तब होता है, जब फेफड़ों के बाहर की लाईनिंग में कैंसर हो जाता है, जबकि स्क्वैमस कार्सिनोमा से वो सेल्स प्रभावित होती हैं, जो वायुनलिका की सतह की लाईनिंग बनाती हैं। एडेनोकार्सिनोमा के परिणाम ज्यादा खराब होते हैं। 8. शुरुआती चरण में केवल 20 प्रतिशत मरीजों का निदान हुआ, इस चरण में सर्जरी और इलाज संभव हैं। 9. 70 प्रतिशत से ज्यादा सर्जरी की-होल प्रक्रियाएं (वैट्स या रोबोटिक) थीं, जो मरीज के लिए ज्यादा मित्रवत सर्जरी होती हैं, और बेहतर दीर्घकालिक परिणाम प्रदान करती हैं। |
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जन स्वास्थ्य पर परिणाम
o अध्ययन में सामने आया कि आगामी दशक में महिलाओं में धूम्रपान न करने वाले कम उम्र के फेफड़ों के कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ने की संभावना है। जोखिम का यह समूह पिछले जोखिम वाले ज्यादा उम्र के पुरुष, जो तम्बाकू सेवन करते हैं, के मुकाबले काफी अलग है।
o मौजूदा रूझान प्रदर्शित करते हैं कि ज्यादातर मामलों में निदान विलंब से होने की संभावना है, जब पर्याप्त इलाज संभव नहीं हो पाता है, और फेफड़ों के कैंसर के कारण मृत्युदर बढ़ जाती है। निकट भविष्य में फेफड़ों का कैंसर एक महामारी के रूप में दिखाई दे रहा है।
o यह ज्ञात है कि इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए विशेषज्ञ थोरेसिक सर्जिकल सेंटर जरूरी हैं, जहां की-होल सर्जरी (वैट्स एवं रोबोटिक सर्जरी) सहित लेटेस्ट टेक्नॉलॉजी उपलब्ध हो। देश में ऐसे बहुत कम सेंटर हैं, जो ऐसा इलाज कर सकते हैं, जिससे प्रदर्शित होता है कि हमारी तैयारी पर्याप्त नहीं है।
o फेफड़ों के कैंसर की संख्या में अनुमानित वृद्धि और इलाज सुविधाओं की अपर्याप्त संख्या से परिणाम संतोषजनक न आने और मृत्युदर बढ़ने की संभावना है।
सुझाव
समाज के विभिन्न वर्गों में फेफड़ों के कैंसर के जोखिम (risk of lung cancer) के बारे में जागरुकता बढ़ाए जाने की बहुत जरूरत है, ताकि हर स्तर पर उचित कार्रवाई हो सके।
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जनता के बीच जागरुकता बढ़ाना
फेफड़ों का कैंसर पहले वृद्ध लोगों को प्रभावित करता था, जो धूम्रपान करते थे, पर अब इससे कोई भी प्रभावित हो सकता है। यह संदेश जनसमूह के बीच पहुंचाए जाने की जरूरत है, ताकि यदि खांसी कम नहीं हो रही है, और उसके साथ थूक में खून आ रहा है, तो इन लक्षणों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए और उनका परीक्षण कराया जाना चाहिए। इससे समय पर निदान हो सकेगा, और बचने के आंकड़ों में सुधार हो सकेगा।
मेडिकल समुदाय के अंदर जागरुकता बढ़ाना
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फेफड़ों के कैंसर के 30 प्रतिशत मामलों का इलाज प्रारंभ में ट्यूबरकुलोसिस के रूप में शुरू कर दिया जाता है, जिससे सही निदान करने में विलंब हो जाता है, और मरीज टर्शियरी केयर सेंटर में तब पहुंचते हैं, जब यह बीमारी विकसित रूप ले चुकी होती है। इस चरण में इलाज ज्यादातर अप्रभावी रहता है। इसलिए डॉक्टर्स, खासकर सामान्य प्रैक्टिशनर्स के बीच इस बीमारी की जागरुकता बढ़ाए जाने की जरूरत है, ताकि वो स्पुटम की जांच (टीबी के मामले में) या बायोप्सी (कैंसर के मामले में) द्वारा निदान करने के महत्व को समझ सकें।
टिश्यू ही इश्यू है – यह संदेश संदिग्ध मामलों में समय पर बायोप्सी की जरूरत पर बल देता है, जो मेडिकल समुदाय में स्पष्ट रूप से पहुँचाया जाना चाहिए।
नीति निर्माताओं के बीच जागरुकता बढ़ाना
फेफड़ों का कैंसर जन स्वास्थ्य की एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है, और आने वाले दशक में इसके कारण बीमारी का भार एवं मृत्यु दर बढ़ने की उम्मीद है। इसलिए नीति निर्माताओं द्वारा प्राईमरी, सेकंडरी और टर्शियरी लेवल पर कार्रवाई कर इसकी रोकथाम और इलाज किए जाने की जरूरत है।
प्राईमरी रोकथाम – तम्बाकू सेवन को कम करने और वायु प्रदूषण घटाने के प्रभावशाली उपायों से फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते मामलों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
सेकंडरी रोकथाम – जोखिम वाली आबादी (55 साल से ज्यादा उम्र और धूम्रपान के 25 सालों से अधिक समय के इतिहास वाले) में लो-डोज़ सीटी स्कैन द्वारा फेफड़ों के कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए गहन प्रयासों द्वारा अमेरिका में फेफड़ों के कैंसर के कारण मृत्युदर में 20 प्रतिशत की कमी आई। अब हमारे देश में भी यही दृष्टिकोण अपनाकर ज्यादा मामलों का शुरुआत में ही निदान व जांच किए जाने की जरूरत है, ताकि बेहतर परिणामों द्वारा मृत्युदर में कमी लाई जा सके।
टर्शियरी रोकथाम – कई अन्य बीमारियों की तरह ऐसे स्पेशलाईज़्ड सेंटर कम हैं, जहां फेफड़ों के कैंसर का इलाज (की-होल सर्जरी सहित) प्रदान किया जा सके। ऐसे सेंटर्स की कमी के कारण फेफड़ों के कैंसर के मामलों में होने वाली अनुमानित वृद्धि को संभालना मुश्किल होगा। इसलिए देश में क्षमता विस्तार करने और इलाज की बेहतर सुविधाएं विकसित करने की जरूरत है, ताकि फेफड़ों के कैंसर का उचित इलाज हो सके।
मेदांता के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. नरेश त्रेहान ने बताया कि इस अध्ययन के परिणाम पहले अप्रभावित रहने वाले लोगों में बढ़ते मामले प्रदर्शित कर रहे हैं, जो चिंता का विषय है। मेदांता वैश्विक स्तरों के अनुरूप फेफड़ों के कैंसर के इलाज के लिए अत्याधुनिक प्रिवेंटिव एवं इलाज की सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।’’ |
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इंस्टीट्यूट ऑफ चेस्ट सर्जरी, चेस्ट ऑन्को सर्जरी एवं लंग ट्रांसप्लांटेशन, मेदांता चेयरमैन डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि ‘‘फेफड़ों का कैंसर एक जानलेवा बीमारी है,जिसमें बचने की दर सबसे कम 5 साल है। मैं युवाओं, धूम्रपान न करने वालों, और महिलाओं में इस बीमारी के बढ़ते मामलों को देखकर हैरान हूँ। पारंपरिक रूप से फेफड़ों के कैंसर का कारण धूम्रपान होता था, लेकिन अब इस बात के सशक्त प्रमाण मिल रहे हैं कि फेफड़ों का कैंसर हवा के प्रदूषण के कारण बढ़ रहा है। |
मेदांता ने शुरू किया अभियान
Beat Lung Cancer नाम से एक अभियान शुरू किया गया है, ताकि इस बीमारी की जागरुकता बढ़ाकर समय पर जांच कराने का महत्व समझाया जा सके, और अन्य मरीजों के साहस की कहानियों द्वारा प्रेरणा व सपोर्ट प्रदान की जा सके। ग्लोबोकैन (Global Cancer Observatory) एक ऑनलाईन डेटाबेस है, जो 185 देशों में 36 तरह के कैंसर के लिए और सभी कैंसर साईट्स के लिए ग्लोबल कैंसर के आंकड़े एवं घटना और मृत्युदर के अनुमान प्रदान करता है।
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