नई दिल्ली एम्स के पाठ्यक्रम में शामिल होगा मेडिकल ह्यूमिनिटी
नई दिल्ली।टीम डिजिटल : एम्स (Aiims) के मेडिकल छात्रों के पाठ्यक्रम में जल्दी ही मेडिकल ह्यूमिनिटी भी शामिल हो जाएगी। इसके तहत उन्हें ध्यान-योग और अध्यात्म सिखाया जाएगा। संस्थान में आयोजित प्रेस वार्ता में फिजियोलॉजी विभाग प्रमुख डॉ. केपी कोचर ने यह जानकारी साझा की।
उन्होंने फिजियोलॉजी विभाग के डॉक्टरों के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि मेडिकल छात्र और डॉक्टर अपनी शिक्षा पाठ्यक्रम में मेडिकल ह्यूमिनिटी के शामिल नहीं होने को बडी कमी मानते हैं। ऐसे में वह चाहते हैं कि यह विषय पाठ्यक्रम का हिस्सा बने।
स्वास्थ्य सेवा की बेहतरी के लिए कदम उठाना जरूरी
डॉ. केपी कोचर ने कहा कि कार्यक्षेत्र में अत्यधिक दबाव की स्थिति होने से डॉक्टरों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड रहा है। इसकी वजह से कम उम्र में ही डॉक्टर डायबिटीज, हाइपरटेंशन जैसी लाइफस्टाइल से संबंधित बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों के खिलाफ जिसतरह से हिंसा के मामले बढे हैं, यह इस बात के संकेत हैं कि मानवीय मूल्यों में कमी आ रही है। ऐसे में मानवीय मूल्यों और आध्यात्मिकता का मेल स्वास्थ्य सेवा को बेहतरी की दिशा में ले जाने में मददगार साबित होगा।
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एलोपैथी और आयुर्वेद का होगा एक मंच पर मेल
संस्थान में बुधवार से तीन दिवसीय एकीकृत स्वास्थ्य सुविधाओं पर आधारित एक सम्मेलन शुरू होगा। जिसमें एलोपैथी के विशेषज्ञों के साथ अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान की निदेशक डा. तनुजा नेसारी भी शामिल होंगी। इस कार्यक्रम के जरिए युवा डॉक्टरों को मेडिसिन के साथ योग,ध्यान और अध्यात्म के महत्व को भी जानने का अवसर प्राप्त होगा।
शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र की कमियों के लिए रायशुमारी
डॉ. केपी कोचर के मुताबिक शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र की कमियों का पता लगाने के लिए हाल ही में मेडिकल छात्रों और डॉक्टरों के बीच एक रायशुमारी की गई थी। इसमें ऑनलाइन माध्यम से 500 मेडिकल के छात्रों और डॉक्टरों ने अपनी प्रतिक्रिया दर्ज कराई है। इस दौरान ज्यादातर डॉक्टरों ने मेडिकल शिक्षा में मेडिकल ह्यूमिनिटी को शामिल करने की जरूरत पर बल दिया। यह विषय दुनियाभर के कई देशों की मेडिकल शिक्षा में शामिल किया गया है। अब यह विषय एम्स में भी शामिल कर लिया जाएगा।
दूसरों की कहानियां जानकर सामाजिक समस्याओं को जानेंगे मेडिकल छात्र
डॉ. कोचर ने कहा कि हम चाहते हैं कि मेडिकल में छात्र मेडिसिन का इतिहास, दूसरों के तकलीफ से जुडी कहानियों को पढकर सामाजिक समस्याओं का अनुभव करें। उन्हें काम के बीच 15 मिनट का समय निकालकर ध्यान और योग करने के लिए प्रेरित किया जाएगा। इसके दोहरे लाभ होंगे।
इससे छात्र और डॉक्टर तनाव मुक्त भी रह सकेंगे और उनका मरीजों के प्रति मित्रवत बर्ताव भी बना रहेगा। डॉक्टर मरीजों को भरोसा देकर उपचार के परिणाम को ज्यादा सकारात्मक कर सकते हैं। हालांकि, डॉक्टर भी किसी की मरीज की मौत नहीं टाल सकते। फिर भी इस कवायद के बेहतर भरोसे की नींव रखी जा सकती है। इन प्रयासों से डॉक्टरों के खिलाफ होने वाली हिंसा में भी कमी आएगी।
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