दृष्टीहीनों को मिलेगी रोशनी
Neuralink : टेस्ला के मालिक एलन मस्क के स्टार्टअप न्यूरालिंक ने इंसान के दिमाग में चिप इम्प्लांट किया है। सर्जरी के जरिए लगाई गई यह डिवाइस सिक्के के आकार की है। यह चिप ह्यूमन ब्रेन और कंप्यूटर के बीच सीधे कम्युनिकेशन चैनल स्थापित करती है।
अगर यह ह्यूमन ट्रायल कामयाब रहा तो इससे दृष्टिहीन को रोशनी मिलेगी और पैरलिसिस के मरीज मूवमेंट करेंगे। बताया जा रहा है कि पैरालिसिस से पीडित मरीज इस चिप की मदद से कंप्यूटर भी चला सकेंगे। कंपनी ने इस चिप का नाम ‘लिंक’ रखा है।
पेशेंट की हो रही है बेहतर रिकवरी
मस्क ने अपनी X पोस्ट के जरिए यह जानकारी दी है। उन्होंने लिखा है, ‘ हमारी कंपनी न्यूरालिंक (Neuralink) ने पहली बार इंसान के दिमाग में डिवाइस इंप्लांट की है। पेशेंट अच्छी तरह रिकवर कर रहा है। शुरूआती परिणाम आशाजनक हैं।
अपने एक अन्य पोस्ट में एलन मस्क ने लिखा है कि ‘इस डिवाइस की मदद से सिर्फ सोचने मात्र से ही फोन, कंप्यूटर और इनके जरिए किसी भी अन्य डिवाइस को नियंत्रित किया जा सकेगा। इसके शुरूआती यूजर्स वे होंगे जिनके अंगों ने काम करना बंद कर दिया है।
मस्क ने कहा कि कल्पना करें कि अगर स्टीफन हॉकिंग होते, तो इस डिवाइस की सहायता से एक स्पीड टाइपिस्ट या नीलामीकर्ता की तुलना में ज्यादा तेजी से कम्युनिकेट कर पाते।
सितंबर 2023 में प्रोजेक्ट को मिली थी मंजूरी
इस प्रोजेक्ट को सितंबर 2023 में अपने पहले ह्यूमन ट्रायल के लिए इंडिपेंडेंट इंस्टीट्यूशनल रिव्यू बोर्ड से रिक्रूटमेंट की मंजूरी मिली थी। यानी मंजूरी के बाद न्यूरालिंक (Neuralink) ह्यूमन ट्रायल के लिए लोगों की भर्ती कर कर उन पर इस डिवाइस का ट्रायल करेगा।
6 साल में पूरी होगी स्टडी
न्यूरालिंक (Neuralink) के मुताबिक, परीक्षण वैसे लोगों पर किया जा रहा है, जिनके सर्वाइकल स्पाइनल कॉर्ड में चोट या एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS) के कारण क्वाड्रिप्लेजिया है। इस ट्रायल में हिस्सा लेने वालों की न्यूनतम उम्र 22 वर्ष निर्धारित किया गया है। बताया गया है कि इस स्टडी को पूरा होने में करीब 6 साल लगेंगे।
इस दौरान पार्टिसिपेंट को लैब तक आने-जाने का ट्रैवल एक्सपेंस भी दिया जाएगा। ट्रायल के जरिए कंपनी यह पता करना चाहती है कि डिवाइस मरीजों पर किस तरह काम करती है। मई में कंपनी को ट्रायल के लिए यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) से मंजूरी मिल गई थी।
क्या है Neuralink डिवाइस?
1. सीधे ब्रेन से जुडेंगे फोन
न्यूरालिंक (Neuralink) ने सिक्के के आकार का एक डिवाइस तैयार किया है। जिसे लिंक नाम दिया गया है। यह डिवाइस कंप्यूटर, मोबाइल फोन या किसी अन्य उपकरण को ब्रेन एक्टिविटी (न्यूरल इम्पल्स) से सीधे नियंत्रित करने की शक्ति देगा। जैसे, पैरालिसिस से पीड़ित व्यक्ति मस्तिष्क में चिप के प्रत्यारोपित होने के बाद केवल सोचकर ही आपने मन के मुताबिक माउस का कर्सर मूव करने में सक्षम होगा।
2. कॉस्मैटिक रूप से अदृश्य है यह चिप
न्यूरालिंक (Neuralink) के मुताबिक, हम पूरी तरह से इम्प्लांटेबल, कॉस्मैटिक रूप से अदृश्य ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस डिजाइन को तैयार कर रहे हैं। जिससे कहीं कंप्यूटर या मोबाइल डिवाइस को नियंत्रित किया जा सके। माइक्रोन-स्केल थ्रेड्स को ब्रेन के उन क्षेत्रों में लगाया जाएगा, जो मूवमेंट को नियंत्रित करते हैं। प्रत्येक थ्रेड में कई इलेक्ट्रोड होते हैं जो उन्हें “लिंक” नामक इम्प्लांट से जोड़ते हैं।
3. रोबोटिक प्रणाली की डिजाइन
कंपनी (Neuralink) के मुताबिक, लिंक पर थ्रेड इतने महीन और लचीले है कि उन्हें इंसान के हाथ से नहीं लगाया जा सकता है। इस काम को पूरा करने के लिए कंपनी ने एक रोबोटिक तकनीक विकसित की है। जिसकी मदद से थ्रेड को मजबूती और कुशलता से इम्प्लांट किया जा सकता है।
न्यूरालिंक ने एक ऐप भी डिजाइन किया है, जिससे ब्रेन एक्टिविटी से सीधे अपने कीबोर्ड और माउस को बस सोचकर ही नियंत्रित किया जा सकेगा। इस डिवाइस को चार्ज भी करना होगा। इसके लिए कॉम्पैक्ट इंडक्टिव चार्जर भी डिजाइन किया गया है। यह बैटरी को बाहर से चार्ज करेगा और वायरलेस तरीके से इम्प्लांट से जुड़ जाएगा।
चिप में ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल
एलन मस्क ने जिस तकनीक से चिप बनाई है, उसे ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस या शॉर्ट में BCIs कहते हैं। इस तकनीक पर कई और कंपनियां कई वर्षों से काम कर रही है।
ये प्रणाली ब्रेन में रखे गए छोटे इलेक्ट्रोड का इस्तेमाल पास के न्यूरॉन्स से संकेतों को “पढ़ने” के लिए करता है। इसका सॉफ्टवेयर इन सिग्नल्स को कमांड या एक्शन में डिकोड करता है। ठीक उसी तरह से जैसे कर्सर या रोबोटिक आर्म को हिलाने में इस्तेमाल किया जाता है।
एलन मस्क की ब्रेन-चिप कंपनी न्यूरालिंक को अपने पहले ह्यूमन ट्रायल के लिए इंडिपेंडेंट इंस्टिट्यूशनल रिव्यू बोर्ड से रिक्रूटमेंट की मंजूरी मिली थी। जिसके बाद अब न्यूरालिंक ह्यूमन ट्रायल के लिए लोगों की भर्ती भी कर सकेगी। अगर ह्यूमन ट्रायल कामयाब रहता है तो चिप के जरिए ब्लाइंड भी देखने में सक्षम होंगे। जबकि, पैरालिसिस से पीड़ित मरीज सिर्फ सोचकर कंप्यूटर चलाने में सक्षम हो जाएंगे।
माना जा रहा है कि इस ट्रायल की सफलता से लंबे समय से निष्क्रिय मरीजों को नई आशा मिलेगी। वहीं, अंधेपन से पीडित लोगों को देखने की क्षमता मिल जाएगी। अगर यह ट्रायल सफल होता है तो इंसानी जिंदगी के लिए वरदान साबित होगा।