Patient Safety का मुद्दा है अत्यंत महत्वपूर्ण
नई दिल्ली। मरीजों के हितों की सुरक्षा (Patient Safety) के लिए आधुनिक तकनीक आधारित नीतियों के निर्धारण और क्रियान्वन बेहद जरूरी है। इसे सुनिश्चित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा घोषित “वैश्विक रोगी सुरक्षा कार्य योजना 2021-2030” के अनुरूप ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। ऐसा इसलि क्योंकि स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं में विस्तार के साथ मरीजों की सुरक्षा (Patient Safety) का मुद्दा भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
WHO ने सभी देशों से की अपील
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपने इस प्रमुख कार्यक्रम को “रोगी सुरक्षा की एक दशाब्दी” नाम देते हुए सभी सदस्य देशों से अपील की है कि वे इस कार्यक्रम को वैश्विक, क्षेत्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर सफल बनाने हेतु अधिकतम योगदान दें। उल्लेखनीय है कि 2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा नीति निर्माताओं, चिकित्सा विशेषज्ञों, स्वास्थ्य कर्मियों, सामाजिक संगठनों, रोगियों और उनके परिवारों द्वारा सामूहिक प्रयासों के माध्यम से शोध आधारित स्वास्थ्य रक्षा संबंधी नीतियों के निर्धारण और क्रियान्वयन हेतु विश्व रोगी सुरक्षा दिवस (World Patient Safety Day) के आयोजन की शुरुआत की थी।
मरीजों के नुकसान में 15 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य
वर्तमान में मरीजों को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक और कई अन्य प्रकार के नुकसान हो रहे हैं। डब्ल्यूएचओ ने जिनमें 15 प्रतिशत कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इससे वैश्विक स्तर पर न केवल लाखों मरीजों का जीवन को बचाया (Patient Safety) जा सकेगा बल्कि मरीजों को हो रहे नुकसान के इलाज और प्रबंधन पर होने वाले अरबों डॉलर की बचत भी हो सकेगी।
इसका उपयोग स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं के विस्तार के लिए हो सकेगा। यह नुकसान रोगियों को मुख्य रूप से दवाओं के साइड इफेक्ट्स, सर्जिकल प्रक्रियाओं, इन्वेस्टिगेशन के दौरान होने वाले रेडिएशन और अनावश्यक जांच प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है, जिनमें मृत्यु और विकलांगता भी शामिल हैं।
रोगियों को इलाज के दौरान होने वाले मुख्य नुकसान
- दवाओं के प्रयोग संबंधी गलतियों के चलते तीस में से एक मरीज को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। जिसमें से एक चौथाई मामलों में यह गंभीर और घातक भी हो सकता है।
- विश्व में हर साल 30 करोड़ से अधिक सर्जिकल प्रक्रियाएं होती हैं। जिनके दौरान होने वाले नुकसान को 10 प्रतिशत तक टाला जा सकता है।
- अस्पतालों में होने वाले संक्रमण की वैश्विक दर 0.14 प्रतिशत है, जो हर वर्ष 0.06 प्रतिशत की गति से बढ़ रही है। इससे अस्पतालों में मरीज के भर्ती रहने की अवधि बढ़ रही है। नतीजतन, मरीजों की जेब पर खर्च कर्ई गुना बढ़ जाता है। वहीं, अस्पतालों में उपलब्ध सुविधाओं और संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पाता है।
- अस्पतालों में भर्ती मरीजों में इलाज के दौरान सेप्सिस के मामले 23.6 प्रतिशत तक पाए गए हैं। जिससे प्रभावित 24.4 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती है।
- वैश्विक स्तर पर 5 से 20 प्रतिशत मामलों में मरीज की बीमारी का निदान सही तरीके से या पूर्ण रूप से नहीं हो पाता, जिसके चलते मरीज सही उपचार से वंचित रह जाते हैं। मरीजों को कई तरह के नुकसान उठाने पड़ते हैं।
- असुरक्षित ब्लड ट्रांसफ्यूजन के कारण मरीजों को कई तरह के संक्रमण हो सकते हैं, जिसके कारण उन्हें विभिन्न प्रकार के शारीरिक और आर्थिक नुकसानों का सामना करना पड़ता है।
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- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार विश्व भर में हर वर्ष 16 अरब इंजेक्शन मरीजों को लगाए जाते हैं। गलत इंजेक्शन या गलत तरीके से दिए गए इंजेक्शनों के कारण संक्रमण और अन्य दुष्परिणाम मरीज को भुगतने पड़ते हैं। कई बार गलत इंजेक्शन का प्रयोग जानलेवा भी साबित होता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार वैश्विक स्तर पर इलाज के दौरान 10 में से एक मरीज को विभिन्न तरह के नुकसान होते हैं, जिनमें हर साल होने वाली 30 लाख से अधिक मौतें भी शामिल हैं।
- असुरक्षित देखभाल के कारण निम्न और मध्यम आय वाले देशों में चार प्रतिशत व्यक्तियों की मृत्यु इलाज के दौरान हो जाती है।
मरीज को होने वाले तमाम नुकसानों में से आधे दवाओं के कारण होते हैं। सामूहिक प्रयासों से 50 प्रतिशत से अधिक नुकसानों को टाला जा सकता है। - मरीजों को होने वाले नुकसान के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि में प्रतिवर्ष 0.7 प्रतिशत की कमी आ जाती है। अगर गणना की जाए तो अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिवर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था में खरबों डॉलर का नुकसान हो जाता है।
- रोगी सुरक्षा हेतु विभिन्न योजनाओं के लिए किए जाने वाले निवेश से न केवल लाखों लोगों की जान बच सकती है बल्कि इससे होने वाली बचत निवेश के मुकाबले कई गुना हो सकती है।
मरीजों को नुकसान से ऐसे बचाया जा सकता है
दवाओं के गैर जरूरी प्रयेाग और ओटी संक्रमण पर गंभीरता जरूरी
मरीजों को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए दवाओं के अतार्किक प्रयोग के संबंध में सख्त दिशा निर्देश लागू किए जाएं। जिनकी अवहेलना करने पर कठोर कार्रवाई का प्रावधान हो। कई स्वास्थ्य संस्थान और केंद्र अंधाधुंध कमाई के चक्कर में रोगियों की सुरक्षा (Patient Safety) के साथ खिलवाड़ करते हैं और बिना समुचित स्ट्रलाइजेशन और डिसइन्फेक्शन के लगातार सर्जरी करते रहते हैं। सर्जिकल उपकरणों व ऑपरेशन थिएटर के समुचित स्ट्रलाइजेशन तथा डिसइन्फेक्शन न होने से मरीज वायरस, फंगस और बैक्टीरिया के संक्रमण का शिकार हो जाता है, जिसका इलाज लंबा और महंगा होता है।
यह मरीजों के लिए घातक भी सिद्ध हो सकता है। सभी प्राइवेट और सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में सर्जिकल थियेटर की संख्या और वहां मौजूद सर्जिकल उपकरणों के आधार पर विभिन्न प्रकार की सर्जरी की अधिकतम संख्या सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसके साथ ही सभी चिकित्सकीय संस्थानों में नियमित रूप से सरकारी स्तर पर ऑडिट किया जाए।
जो संस्थान में स्ट्रलाइजेशन और डिसइन्फेक्शन की स्थिति के साथ वहां होने वाली सर्जरी की अधिकतम संख्या की भी जांच करें। सर्जिकल उपकरणों का स्ट्रलाइजेशन और डिसइन्फेक्शन हर सर्जरी के बाद उच्च स्तरीय डिसइनफेक्टेंट और केमिकल्स द्वारा किया जाए। हर सर्जरी के बाद ऑपरेशन थिएटर का स्ट्रलाइजेशन और डिस इन्फेक्शन मध्यम स्तरीय रसायन से किया जा सकता है, जिनमें तीन प्रतिशत हाइड्रोजन पराक्साइड, अमोनियम कंपाउंड्स, फेनोलिक्स और डाइल्यूट ग्लूट्रलडायहड शामिल हैं।
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24 घंटे में एक बार अनिवार्य तौर पर संक्रमण मुक्त की जाए ओटी
हर 24 घंटे के बाद उच्च स्तरीय केमिकल्स से ऑपरेशन थिएटर की सफाई की जाए। जिनमें 7.5 प्रतिशत हाइड्रोजन परोक्साइड, हाइपोक्लोराइट व हाइपोक्लोरिक एसिड शामिल हो। सप्ताह में कम से कम एक बार ऑपरेशन थिएटर की सफाई ऐसे केमिकल से की जाए, जो सभी तरह के बैक्टीरिया, वायरस व फंगस पर प्रभावी हो। ऐसे रसायनों में पैरासिटिक एसिड, हाइपोक्लोराइट, ऑर्थो-थेललडिहाइड तथा 7.5 प्रतिशत हाइड्रोजन पराक्साइड शामिल हैं।
हालांकि हाइपोक्लोराइट के मुकाबले सोडियम डाइक्लोरो आइसो साइन्यूरेट तथा क्लोरोमाइन-टी जैसे रसायन क्लोरीन को अधिक समय तक बांधकर रखते हैं, जिससे लंबे समय तक उनका असर कायम रहता है। वैसे फोरमलडिहाइड को एक बेहतर डिसइनफेक्टेंट माना जाता है क्योंकि इसमें फोर्मलीन लिक्विड में पोटैशियम परमैगनेट मिलाकर गैस उत्पन्न की जाती है। जिससे फर्श से छत तक संक्रमणमुक्त हो जाता है। एल्डिहाइड के कैंसर कारक प्रभाव के सामने आने के बाद इसका प्रयोग सीमित कर दिया गया है। ऐसे में वैज्ञानिकों को ऐसे उपाय खोजने की जरूरत है जो वायरस, बैक्टीरिया, फंगस वगैरह का खात्मा तो करें लेकिन मरीज या स्टाफ को उसके कारण कोई नुकसान न पहुंचे।
मरीजों की बीमारी का सही निदान करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करें
मरीज की बीमारी का सही निदान हो, इसके लिए डॉक्टरों को अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, टोमोग्राफी तथा एम.आर.आई. जैसी जांच के साथ रक्त से होने वाली जांच अनुभवी व वरिष्ठ चिकित्सक द्वारा की जानी चाहिए।
विभिन्न प्रकार की जांच करने वाली लैब में कार्यरत डॉक्टरों और कर्मचारियों की शैक्षणिक योग्यताओं की नियमित रूप से जांच होनी चाहिए। जांच की गलत रिपोर्ट देने वाले डॉक्टर और लैब के खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान नियमों में किया जाए। आजकल घर से सैंपल देने का चलन बढ़ रहा है, ऐसे में यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि लैब तक पहुंचने के दौरान सैंपल की गुणवत्ता प्रभावित न हो।
अनावश्यक लैब टेस्ट न कराएं
अनावश्यक लैब टेस्ट कराने के चलते मरीज को बेवजह आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है और अनावश्यक टेस्ट लिखने की प्रैक्टिस पर लगाम लगाने की आवश्यकता है। इसके लिए नेशनल मेडिकल कमिशन उचित जारी दिशा निर्देश जारी करे।
वार्डों की सफाई पर रखें विशेष नजर
सर्जरी के बाद की देखभाल में कमी के चलते भी मरीज को संक्रमण हो सकता है। यदि वार्ड या निजी कक्ष में समुचित सफाई न हो। वार्ड और निजी कक्ष में भी नियमित रूप से डिसइनफेक्टेंट और केमिकल्स से नियमित रूप से सफाई की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। साथ ही अस्पताल के स्टाफ व मरीज के मुलाकातियों को भी निजी साफ-सफाई की उचित प्रक्रिया के बाद ही मरीज के संपर्क में आने दिया जाए।
रक्त से फैलने वाले संक्रमण के प्रति रहे सचेत
एचआईवी व एड्स जैसे रोगों के कीटाणुओं का पता ब्लड ट्रांसफ्यूजन के लिए ताजे रक्त से नहीं चल पाता है और कई बार तीन महीने के बाद दूषित ब्लड के कारण मरीज संक्रमित हो जाता है। किसी भी प्रकार के बैक्टीरिया, वायरस, फंगस या अन्य संक्रमण का खून में तुरंत पता लगाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) सहित सभी देशों की सरकारों को तकनीक विकसित करनी चाहिए।
Patient Safety : स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार के साथ मरीजों की सुरक्षा भी है जरूरी
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