UNICEF और NIMHANS ने जारी किया National Roadmap
National Roadmap for Child Road Safety released : भारत में बच्चों की सडक सुरक्षा (road safety for children) चिंताजनक होती जा रही है। सडक दुर्घटनाएं (Road Accident) अबोध बच्चों की मौत (Death of children) का प्रमुख कारण (Major Reasons) बन गई है।
यूनिसेफ (UNICEF) ने मंगलवार को राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (NIMHANS) ने मंगलवार को बाल सडक सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय रोडमैप (National Roadmap for Child Road Safety) जारी किया है। यह रोडमैप डब्ल्यूएचओ (WHO) सहयोगी केंद्र की भागीदारी से तैयार की गई है। देश में कुल सड़क दुर्घटनाओं (Road Accident) में होने वाली मौत के आंकडे में 10 प्रतिशत आंकडा बच्चों की मौत को प्रदर्शित करता है। जो एक व्यापक चिंता का विषय बन गया है।
प्रत्येक वर्ष 5 मिलियन बच्चे घातक चोट से प्रभावित
5 million children are affected by fatal injuries each year
रिपोर्ट लॉन्च कार्यक्रम के दौरान महामारी विज्ञान (Epidemiology) के अतिरिक्त प्रोफेसर और डब्ल्यूएचओ सहयोगी केंद्र के प्रमुख डॉ गौतम मेलुर सुकुमार (Dr. Gautham Melur Sukumar) ने कहा, “भारत में हर दिन 18 वर्ष से कम उम्र के लगभग 45 बच्चे सड़क दुर्घटनाओं (Road Accident) में अपनी जान गंवाते हैं।
वर्ष 2022 में इस आयु वर्ग में 16,443 मौतें दर्ज की गईं, जबकि वास्तविक संख्या कम रिपोर्टिंग के कारण 20 प्रतिशत अधिक होने की संभावना है। इसके अतिरिक्त, हर साल लगभग 5 मिलियन बच्चे गैर-घातक चोटों (non-fatal injuries) से पीड़ित होते हैं, जिन्हें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है।”
तत्काल उपाय करने की जरूरत
Urgent measures needed
भारत में बाल सड़क सुरक्षा उपायों (child road safety measures) की तत्काल जरूरत है। यूनिसेफ इंडिया (UNICEF India) के स्वास्थ्य प्रभारी अधिकारी डॉ. विवेक सिंह ने कहा, “बच्चे अपनी शारीरिक, विकासात्मक और शारीरिक विशेषताओं के कारण गंभीर चोटों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
लगभग 50 प्रतिशत मौत दुर्घटना स्थल पर हुईं, जिसमें सिर की चोटें सबसे आम थीं। इसके बाद शरीर के निचले हिस्सों में चोटें आईं। बच्चों में सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों में भारी वृद्धि को देखते हुए, यूनिसेफ ने उनके लिए सुरक्षित आवागमन सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाया है।”
जारी की गई रिपोर्ट द्वितीयक डेटा स्रोतों (Secondary Data Sources)और विशेषज्ञ परामर्श के माध्यम से भारत में बाल और किशोर सड़क सुरक्षा की वर्तमान स्थिति की समीक्षा करती है। यह भारत में बाल और किशोर सड़क यातायात दुर्घटनाओं के बोझ, जोखिम और निर्धारकों का वर्णन करती है, मौजूदा रूपरेखाओं का विश्लेषण करती है, और भारत में बाल और किशोर सड़क सुरक्षा को मजबूत करने के लिए सिफारिशें और एक बहु-क्षेत्रीय कार्य योजना प्रदान करती है।
Road Accident : चौंकाने वाले नतीजे
The shocking results
निष्कर्षों से पता चलता है कि 2011 और 2022 के बीच, बच्चों और किशोरों के बीच अनुमानित 198,236 सड़क दुर्घटनाएं (road accidents) हुईं और उनमें से लगभग 75 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं 14-17 वर्ष आयु वर्ग में हुईं। इसके अलावा, 2011 और 2022 के बीच इस समूह की मौतों की संख्या दोगुनी से भी अधिक हो गई है।
कुप्रबंधन भी दुर्घटनाओं के पीछे बडी वजह
Mismanagement is also a big reason behind accidents
विशेषज्ञ पैनल चर्चा में निमहंस (NIMHANS के पूर्व निदेशक डॉ. गुरुराज ने कहा, “बच्चों और किशोरों की दुर्घटनाओं और मौतों में वृद्धि के कारण सिर्फ़ असुरक्षित सड़कें नहीं हैं। जोखिम कारकों में मानव, वाहन, सड़क और सड़क सुरक्षा कुप्रबंधन से संबंधित कारक शामिल हैं।
भले ही बच्चों और किशोरों से हर दोपहिया वाहन यात्रा के दौरान हेलमेट पहनने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन बच्चों और किशोरों के बीच हेलमेट का सही उपयोग शहरी क्षेत्रों में केवल 10-50 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 2-5 प्रतिशत है। भारतीय शहरों में बाल संयम प्रणाली (CRS) का उपयोग भी बेहद कम है।”
कार निर्माण में नहींं रखा जाता है बाल सुरक्षा का ध्यान
Child safety is not taken into consideration in car manufacturing
भारत में सुरक्षा के मामले में टॉप 25 कारों में से आधे से अधिक की बाल-यात्री सुरक्षा रेटिंग (Child-passenger safety ratings) 3 स्टार या उससे कम थी।
इन प्रत्यक्ष कारकों के अलावा, बड़े सामाजिक-आर्थिक प्रभाव भी हैं जो बच्चों को सड़क दुर्घटनाओं के लिए प्रवृत्त करते हैं। चूंकि भारत में आधे से अधिक बच्चे पैदल स्कूल जाते हैं, इसलिए पैदल चलने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। बच्चों की सभी पैदल चलने वालों की लगभग एक तिहाई मौतें यातायात चौराहों पर हुईं।
बाल चिकित्सा आईसीयू की कमी
Lack of Pediatric ICU
भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) की उपायुक्त डॉ. जोया अली रिजवी के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं में शामिल बच्चे और किशोर अक्सर गंभीर चोटों का शिकार होते हैं, जिससे बचने के लिए गहन चिकित्सा इकाई (ICU) तक पहुंच महत्वपूर्ण हो जाती है।
हालांकि राजमार्गों के किनारे ट्रॉमा केयर केंद्र स्थापित करने और जिला अस्पतालों में दुर्घटना और आपातकालीन देखभाल को मजबूत करने के प्रयास जारी हैं, एम्स दिल्ली (AIIMS Delhi) के एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि भारत में केवल 20 प्रतिशत बड़े सरकारी अस्पतालों में बाल चिकित्सा आईसीयू सुविधाएं हैं।
निमहंस की निदेशक डॉ. प्रतिमा मूर्ति ने बताया कि निमहंस ने सामान्य रूप से चोट की रोकथाम और विशेष रूप से दर्दनाक मस्तिष्क चोटों के लिए सलाह और तकनीकी सहायता प्रदान करना जारी रखा है। निवारक और प्रोत्साहक प्रयासों के अलावा, वयस्कों और बच्चों की सड़क दुर्घटना की चोटों से निपटने में सक्षम, हर 3-5 जिलों में एक अत्याधुनिक पॉलीट्रॉमा सेंटर की आवश्यकता है ।
यह ट्रॉमा केयर सेंटर और जिला अस्पतालों के आपातकालीन विभागों से रेफरल को स्वीकार करेगा। निमहंस बेंगलुरु के उत्तर में एक पॉलीट्रॉमा केंद्र स्थापित करने की भी योजना बना रहा है, जो एक अत्याधुनिक लेवल 1 ट्रॉमा सेंटर होगा।