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ऑटोइम्यून रोग को रिर्वस करने वाली प्रोटीन वैज्ञानिक कर रहे हैं तैयार

जॉन हॉपकिन्स के विशेषज्ञ ऑटोइम्यून रोग पर कर रहे हैं अध्ययन

नई दिल्ली।टीम डिजिटल :
ऑटोइम्यून रोग, Autoimmune Disease (रुमेटीइड गठिया और मल्टीपल स्केलेरोसिस) प्रतिरक्षा प्रणाली से संबंधित समस्या है। जब प्रतिरक्षा प्रणाली अनजाने में शरीर के ऊतकों और अंगों पर ही हमलावर हो जाती है और इससे शरीर में होने वाली समस्याओं को ऑटोइम्यून रोग (autoimmune disease awareness) कहा जाता है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का यह भी मनाना है कि आनुवंशिकी इस तरह के रोगों के विकास में भूमिका निभाती है। जबकि, इसके रोकथाम और उपचार बाहरी कारकों, जैसे पोषण और पर्यावरण पर ध्यान केंद्रित कर किया जाता है। 
जॉन्स हॉपकिन्स के विशेषज्ञों की एक टीम मानती है कि ऑटोइम्यून रोग (Autoimmune Disease) की रोकथाम और उपचार का राज कहीं न कहीं सेलुलर स्तर के अंदर छुपा है। वैज्ञानिकों की इस टीम ने एक खास प्रोटीन तैयार किया है नियामक टी कोशिकाओं (ट्रेग्स) की तादाद को सक्रिय कर उसे बढाने में मदद करता है। इससे ऑटोइम्यून रोगों की रोकथाम में मदद मिलती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इससे संबंधित परिणाम उनके सेल्स रिपोर्ट में उजागर हुए हैं। 
ऑटोइम्यून रोग को रिर्वस वाली प्रोटीन वैज्ञानिक कर रहे हैं तैयार
ऑटोइम्यून रोग को रिर्वस वाली प्रोटीन वैज्ञानिक कर रहे हैं तैयार
केमिकल और बायोमोलेक्यूलर इंजीनियरिंग और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर और शोध दल के सदस्य जेमी स्पैंगलर के मुताबिक “प्रतिरक्षा प्रणाली को संतु​लित रखने में ट्रेग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं लेकिन जब यही बेकार हो जाते हैं तब ऑटोम्यून्यून बीमारियों (Autoimmune Disease) का विकास कर सकते हैं। इस अध्ययन से पता चला है कि यह अणु ऑटोइम्यून बीमारियों को रोकने में मदद कर सकता है।
अध्ययन में यह पाया गया है कि अणु, जो (इंटरल्यूकिन -2 साइटोकिन और एंटी-साइटोकाइन एंटीबॉडी F5111 को फ़्यूज़ करता है) ने Treg सक्रियण और विस्तार को बढाया। साथ ही गैर-मोटे मधुमेह से पीडित चूहों को ऑटोइम्यून रोग के विकास के खिलाफ सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण डिग्री तक संरक्षित भी किया। यहां बता दें कि मधुमेह भी एक ऑटोइम्यून बीमारी है।
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इस प्रक्रिया के तहत विशेष रूप से Tregs को लक्षित और विस्तारित किया जाता है। इसका उपयोग प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को दबाने के लिए किया जाता है। अध्ययन के प्रमुख लेखक और रासायनिक और जैव-आणविक इंजीनियरिंग विभाग में पीएचडी उम्मीदवार डेरेक वानडाइक के मुताबिक ऑटोइम्यून बीमारी से पीडित लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली उनके शरीर के खिलाफ ही काम करने लगती है। ऐसे में  इन Tregs का उपयोग करके उस हमलों को दबाया जा सकता है। 
वैज्ञानिकों का कहना है कि भविष्य के लो एक्टिव स्थिति की ऐसी बीमारियों को रिवर्स करने के इस दृष्टिकोण का उपयोग करने की संभावनाओं का वह पता लगा रहे हैं। शोध दल में जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के ल्यूक टॉमसोविक, ड्रू पार्डोल, और जियोर्जियो रायमोंडी और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन फ्रांसिस्को में सहयोगी शामिल थे। इस शोध कार्य को राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान द्वारा वित्त पोषित किया गया था। 
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Photo : freepik

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