Monday, February 3, 2025
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Seasonal Affective Disease : मौसम बदलते ही लोग क्यों पड़ते हैं बीमार?

ऐसा किया जाए कि बदलते मौसम में बीमारियां (Seasonal Affective Disease) पास तक फटकने न पाए।

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जानिए बदलते मौसमी बीमारियों (Seasonal diseases) से बचने के राज  

Seasonal Affective Disease, How to stay healthy in changing weather : मौसम बदलने के साथ ही लोग बीमार क्यों होने लगते हैं? ज्वाइंट पेन (Joint Pain), सर्दी-जुकाम (Cold and cough) और एलर्जी (Allergies) जैसी बीमारियां (Seasonal Diseases) अक्सर बदलते हुए मौसम में लोगों को चपेट में ले लेती है।
इसके पीछे क्या कारण (Cause) है और क्या ऐसा किया जाए कि बदलते मौसम में बीमारियां (Seasonal Affective Disease) पास तक फटकने न पाए। आईए, आयुर्वेद (Ayurveda) के लिहाज से मौसमी बीमारियों से बचाव (Prevention from seasonal affective diseases) के बारे में समझते हैं।

मौसमी बीमारियों से क्यों प्रभावित होती है सेहत ?

Why seasonal diseases affect health?

मौसम बदलने के समय को संधिकाल (transition period) कहा जाता है। ऐसे में स्वभाविक रूप से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) कमजोर होने लगती है। मौसम के उतार-चढाव (weather fluctuations) से पैदा होने वाले परिवर्तनों को सहन करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली संघर्ष करने लगती है।
Seasonal Affective Disease : मौसम बदलते ही लोग क्यों पडते हैं बीमार? 
Seasonal Affective Disease : मौसम बदलते ही लोग क्यों पडते हैं बीमार?
ऐसे में शरीर की अनुकूलन क्षमता (Adaptability) परिवर्तन के लिहाज से खुद को ढाल नहीं पाती है। ऐसे में वातावरण में मौजूद वायरस (Virus) और बैक्टीरिया (Bacteria) आसानी से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। कमजोर पडी प्रतिरक्षा प्रणाली तत्काल उस मजबूती से संक्रमण पैदा करने वाले तत्वों से लड नहीं पाते हैं। नतीजतन, लोग बीमार पड जाते हैं।

बदलते मौसम में बढता है कफ दोष 

Kapha dosha increases in changing weather

आयुर्वेद के सिद्धांत (Principles of Ayurveda) के मुताबिक, मौसम में परिवर्तन (change in weather) के साथ ही शरीर में कफ दोष (Kapha Dosha) प्रबल होने लगता है। तापमान में लगातार होने वाले उतार-चढाव की वजह से कफ दोष की अधिकता (Excess of Kapha dosha) होती है।
सुबह और शाम में तापमान कम होता है लेकिन दोपहर में ज्यादा होता है। इसके अलावा ज्यादातर घरों में सूरज की रोशनी भी कम ही पहुंचती है। सूर्य की रोशनी (Sunlight) संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया (Bacteria) और वायरस (Virus) से सुरक्षा प्रदान करती है।
जिसके कारण संक्रमण की संभावना (chance of infection) बढ जाती है। जैसे – ठंड के मौसम में शरीर में कफ की प्रधानता (Predominance of Kapha in the body) हो जाती है। जब गर्मी शुरू होने वाली होती है, तब शरीर में जमा कफ पिघलने लगता है।
इसके कारण कफ जनित बीमारियों का प्रभाव (Effect of cough related diseases) बढ जाता है। लोगों को सर्दी-जुकाम (Cold and cough), गले में खराश (Sore throat), सांस से संबंधित समस्या (Breathing problems) और रैस्पिरेटरी ट्रैक्ट में सूजन (Respiratory tract inflammation) जैसी समस्या शुरू हो जाती है।

बदलते मौसम में क्यों बढता है इन बीमारियों का जोखिम

Seasonal Affective Disease

हृदय रोग (Heart Disease)

ठंड के मौसम (Cold Weather) में खून की नलियां (blood vessels) सिकुड जाती है। ठंडे तापमान (cool temperature) के कारण लोगों की शारीरिक गतिविधियों (Physical activities) में भी कमी आती है लेकिन ठंड के मौसम में अग्नि प्रबल (Prabal Agni) होने के कारण लोग अन्य मौसम के मुकाबले भोजन ज्यादा करते हैं।
ऐसे में आहार और गतिविधियों के बीच का तालमेल बिगडता है। जिस अनुपात में हम भोजन करते हैं, जरूरी है कि उस अनुपात में शारीरिक गतिविधियां भी होनी चाहिए। अगर तालमेल बिगडा तो शरीर में कोलेस्ट्रॉल और फैट की अधिकता  (excess cholesterol and fat) होगी। इनकी अधिकता से रक्तचाप (Blood Pressure) प्रभावित होता है।
इनका स्तर बहुत अधिक बिगडने और हाई ब्लड प्रेशर (High blood pressure) दोनों मिलकर हृदय रोग और हार्ट अटैक (Heart disease and heart attack) के जोखिम को बढा देते हैं। यही कारण है कि ठंड के मौसम में या बदलते हुए मौसम में हार्ट अटैक और स्ट्रोक के मामले  (Heart attack and stroke cases due to changing weather) ज्यादा सामने आते हैं।

ज्वाइंट पेन (Joint Pain)

जोड (Joints) शरीर का कफ प्रधान अंग (cough dominant organ) है। सर्दी के मौसम में कफ की अधिकता (excess phlegm in winter season) से ज्वाइंट हेल्थ (Joint Health) प्रभावित होता है। कफ की प्रधानता सूजन (inflammation) पैदा करती है। जब भी शरीर में कफ दोष (Kapha dosha) असंतुलित होता है, तब जोडों में दर्द की समस्या (joint pain problem) अचानक बढती है। जिन्हें क्रॉनिक ज्वाइंट पेन (Chronic Joint Pain) है, उनके लक्षण अचानक बिगडते हैं और दर्द और सूजन (pain and inflammation) बढ जाते हैं।

मधुमेह (Diabetes)

मधुमेह (diabetes) यानि ब्लड शुगर (Blood Sugar) के मामले में भी हृदय रोग (Heart disease) वाला सिद्धांत लागू होता है। सर्दी और गर्मी के बीच का मौसम यानि संधिकाल में अग्नि की प्रबलता होने से लोग भोजन अधिक करते हैं और शारीरिक गतिविधियां सीमित हो जाती है।
ऐसे में शुगर का स्तर (Sugar levels) भी प्रभावित होता है। बहुत सारे लोगों को बार्डर लाइन शुगर (border line sugar) होता है लेकिन उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं होती। मौसम के बदलाव और जीवनशैली (Lifestyle) में अचानक से होने वाले परिवर्तन (Change) शरीर में शुगर के स्तर को हवा दे देते हैं और छुपा हुआ डायबिटीज सामने आता है। लोगों को हैरानी होती है कि आखिर अचानक उन्हें शुगर की समस्या (Sugar problem) कैसे हो गई?

बदलते मौसम में स्वस्थ रहने के लिए क्या करें ?

What to do to stay healthy in the changing seasons?

जब भी सर्दी से गर्मी की ओर मौसम में परिवर्तन (Changes in weather) हो रहा हो तो अचानक गर्म कपडों को कम न करें।
दैनिक आहार में चना शामिल करें। चना तासिर का संतुलन बनाए रखता है। यानि ज्यादा गर्म या ठंडी तासीर से होने वाली समस्याओं से बचाने में चना मदद करता है।
आहार में सरसो, बथुआ और पालक, सलगम और गाजर शामिल करें। यह पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद करने के साथ शरीर में खून की मात्रा को भी बढाता है और जोडों की समस्या में भी फायदेमंद साबित होता है।
मौसमी-फलों और सब्जियों का सेवन भी अनिवार्य रूप से इसलिए करना चाहिए क्योंकि यह खून में एसिड के स्तर को संतुलित करने में भी मदद करता है।
अगले दो महीने तक बदलते हुए मौसम में प्रतिदिन एक चुटकी काली मिर्च, लौंग, बडी इलाचची, तुलसी और दालचीनी का भी संतुलित मात्रा में सेवन करें। वही, अदरक का उपयोग सीमित कर दें।
अगले दो महीने तक शरीर में तेल की मालिश जरूर करें। शरीर में नारियल के तेल की मालिश से बचें क्योकि इसकी तासीर ठंडी होती है। इसकी जगह तिल या सरसो तेल और जैतून के तेल का उपयोग किया जा सकता है।
उचित मात्रा में पानी भी जरूर पीएं क्योंकि पानी शरीर को विषमुक्त करने में मदद करता है।
आइसक्रीम जैसी ठंडी तासीर की चीजों से परहेज रखें। मौसमी बदलाव के दौरान आईसक्रीम शरीर को संक्रमण के अनुकूल बना सकता है। खासतौर से गले और सांस से संबंधित संक्रमण (Seasonal Diseases) का जोखिम पैदा हो सकता है।
शरीर की स्वच्छता का ध्यान जरूर रखें क्यों​कि मौसमी बदलाव के दौरान त्वचा से संबधित संक्रमण या रोग (Seasonal Affective Disease) का जोखिम भी बढ जाता है।
15-20 मिनट नियमित व्यायाम भी करें इससे शरीर को सक्रिय रखने के साथ ऊर्जा बनाए रखने में भी मदद मिलेगी। व्यायाम मानसिक सेहत (Mental Health) के लिए भी बेहद उपयोगी साबित होता है।

नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

अस्वीकरण: caasindia.in में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को caasindia.in के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। caasindia.in लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी/विषय के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

 

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Dr. RP Parasher
Dr. RP Parasherhttps://caasindia.in
Dr. R. P. Parasher is a clinical psychologist and Ayurveda specialist. He works as the Chief Medical Officer (Ayurveda) in Municipal Corporation of Delhi, Dr. Parasher is one of the popular practitioners in the field of Ayurvedic medicine. He has special interest in lifestyle diseases, treatment of autoimmune and rare diseases.
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