Thursday, April 25, 2024
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Ankylosing Spondylitis की ऐसे रोकें रफ़्तार

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Ankylosing Spondylitis से पीडित मरीज का शारीरिक ढाँचा प्रभावित हो जाता है

 

नई दिल्ली।टीम डिजिटल : Ankylosing Spondylitis (AS)  जोड़ों में सूजन से सम्बंधित इंफ्लामेटरी रोग है, जो समय के साथ, रीढ़ की हड्डी (कशेरुक) में कुछ हड्डियों को फ्यूज करने का कारण बन सकती है। यह फ्यूज़ रीढ़ के लचीलेपन को प्रभावित करने के साथ धीरे-धीरे शरीर के सभी जोड़ों को प्रभावित कर देती है। परिणामस्वरूप प्रभावित मरीज का शारीरिक ढाँचा प्रभावित हो जाता है और कुछ मरीजों का शरीर आगे की और झुक जाता है।

ऑटो इम्यून श्रेणी की इस बीमारी से पीड़ित लोगों के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही शरीर के जोड़ों पर भ्रमित होकर हमलावर हो जाती है। जिससे जोड़ों के बीच मौजूद शॉफ्ट टिशू प्रभावित होकर नष्ट होने लगते हैं और धीरे-धीरे जोड़ों के बीच का अंतर कम होने लगता है। यह ऑटोइम्यून श्रेणी की असाध्य बीमारी है। जिसके लिए विशेषज्ञ HLA बी-27 जीन को ज़िम्मेदार मानते हैं। हालांकि, इस बीमारी के वास्तविक कारणों से चिकत्सा विज्ञान और विशेषज्ञ अभी अनजान हैं।

इस बीमारी को बेहतर उचार और बेहतर प्रबंधन के साथ नियंत्रित किया जा सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक़ यह बीमारी ज्यादातर 15-35 वर्ष के युवाओं को प्रभावित करती हैं। वहीं इसका प्रभाव पुरुषों पर अधिक पाया जा रहा है। वहीं इससे पीड़ित महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले कम है। विशेषज्ञों के मुताबिक़ देश में प्रति 1000 आबादी में से 2-3 लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं।

समाधान :

1. जोड़ों को फ्यूजन से बचाना:

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आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस से पीड़ित मरीजों के जोड़ों के बीच मौजूद शॉफ्ट टिशू प्रभावित होकर नष्ट होने लगते हैं और धीरे-धीरे जोड़ों के बीच का अंतर कम होने लगता है। इसे मेडिकल भाषा में ज्वाइंट फ्यूजन कहते हैं। अगर समय रहते उचार नहीं कराया जाए तो इस बीमारी से पीड़ित लोगों के रीढ़ की हड्डी में मौजूद मनके आपस में जुड़ जाते हैं और रीढ़ की हड्डी सिंगल बोन के रूप में तब्दील हो सकती है। जिसके बाद पीड़ित मरीज की शारीरिक क्षमता और दैनिक गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं। उपचार नहीं कराने पर आगे चलकर शरीर के सभी छोटे और बड़े जोड़ों में भी फ्यूजन की सम्भावना बनी रहती है।  

जोड़ों के बीच होने वाले फ्यूजन की स्थिति से बचने के लिए विशेषज्ञ नियमित रूप से एक्सरसाइज करने की सलाह देते हैं। नियमित फिजियोथेरेपी और स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करने से मरीज के शरीर में लचीलापन बना रह सकता है। बीमारी के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए शुरूआती अवस्था के मरीजों को शारीरिक तौर पर सक्रीय रहना चाहिए। यह बीमारी ज्यादा आराम करने, ज्यादा देर तक एक ही स्थान पर बैठे रहने से बढ़ सकती है। ध्यान रहे दर्द ज्यादा रहने पर दर्द कम होने तक विशेषज्ञ एक्सरसाइज नहीं करने या कम करने की सलाह देते हैं। (व्यायाम के लिए विशेषज्ञ फिजियोथेरेपिस्ट से संपर्क करें)

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2. हड्डियों और मांसपेशियों पर प्रभाव :

विशेषज्ञों के मुताबिक़ इस बीमारी में मांसपेशियों पर भी प्रभाव पड़ता है। जोड़ों में सूजन के कारण इनके बीच का अंतर कम होने लगता है और जोड़ों का कार्य प्रभावित होने लगता है। ऐसे में मांशपेशियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। इससे माशपेशियों के कमजोर होने का जोखिम बना रहता है। इस स्थिति से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करने के साथ पौष्टिक आहार लेना भी जरुरी है। अपने आहार में नियमित रूप से हरी सब्जियां, फल (साइट्रिक ग्रेड के फलों को छोड़कर) शामिल करें।

ऐसे में योग बहुत फायदेमंद साबित होता है। जिससे जकड़न भी नियंत्रित रहती है। मांसपेशियां मजबूत होती हैं और शरीर में हलचल बनी रहती है।इस स्थिति से निपटने के लिए विशेषज्ञ शारीरिक रूप से सक्रीय रहने की सलाह देते हैं। साथ ही मांसपेशियों को मज़बूत करने में सहायक एक्सरसाइज करने के लिए कहते हैं। इसके अलावा शरीर में विटामिन डी और कैल्शियम के स्तर को भी उचित मात्रा में बनाये रखना जरुरी है।

3. शरीर के विभिन्न हिस्सों में दर्द को प्रबंधित करने के लिए:

सबसे पहले उन खाद्य पदार्थों की जांच करें जो भोजन के बाद दर्द को बढ़ाते हैं। ऐसे खाद्य सामग्रियों की पहचान कर उसके सेवन से बचें। ध्यान रहे कि खाद्य पदार्थों का प्रभाव मरीजों पर अलग अलग भी पड़ सकता है। साथ ही, डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाओं का सेवन भी नियमित रूप से जारी रखें। आहार निर्धारित करने के लिए आप किसी आहार विशेषज्ञ से संपर्क कर सकते हैं।

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4. महत्वपूर्ण अंगों को स्वस्थ रखना:

यह न केवल एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए आवश्यक है, बल्कि किसी भी बीमारी से पीड़ित रोगियों के लिए यह प्रक्रिया और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को विषैले तत्वों से मुक्त कर हम स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। डिटॉक्सिफिकेशन शरीर को दवाइयों के साइड इफेक्ट से भी सुरक्षित रखता है। इसके अलावा, बीमारियों की रोकथाम के साथ उसके दुष्प्रभाव को भी कम कर सकते हैं। इसके लिए मेडिटेशन भी फायदेमंद है। धूम्रपान, तंबाकू और शराब के सेवन से दूर रहें। इनके सेवन से Ankylosing Spondylitis की सक्रियता बढ़ जाती है।

5. रीढ़ की हड्डी को झुकाव से बचाना :

शारीरिक मुद्रा के प्रभाव से बचाव के लिए रोजाना कुछ विशेष व्यायाम करने की भी जरूरत होती है। इसके अलावा, नियमित रूप से अपनी शारीरिक मुद्रा की जांच करें। डॉक्टर की सलाह पर आप बॉडी पोस्चर को (शारीरिक मुद्रा ) सही करने के लिए सपोर्ट बेल्ट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। जितना हो सके अपने शरीर को झटके से बचाएं। शारीरिक मुद्रा को प्रभावित होने से बचाने के लिए नियमित रूप से साइकिल चलाना और तैरना फायदेमंद हो सकता है। इसका ध्यान रहे कि दर्द के मुताबिक़ अपने बॉडी पोश्चर को न रखें। अगर आराम मिलने की वजह से गर्दन और कमर को झुकायेंगे तो आपकी गर्दन या कमर अप्राकृतिक रूप से झुक सकती है।

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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

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