Thursday, November 21, 2024
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Psoriasis के उपचार में यूनानी दवाएं कितनी दमदार, जानिए स्टडी के परिणाम

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दो संस्थानों से मिलकर किया है यह अध्ययन

Psoriasis जैसे रोग पर यूनानी दवाएं कितनी प्रभावी है? यह जानने के लिए हाल ही में दो प्रमुख संस्थाओं ने अध्ययन किया है। इस अध्ययन के जरिए जो नतीजे निकलकर सामने आए हैं, वह विशेषज्ञों के लिए उत्साहित करने वाले साबित हो रहे हैं।

क्या है Psoriasis

सोरायसिस, एक क्रोनिक त्वचा रोग है। जिसके लक्षण आते-जाते रहते हैं। यह आमतौर पर घुटनों, कोहनी, धड़ और खोपड़ी पर उभरता है। सर्दी के मौसम में इसके लक्षण बिगड जाते हैं। त्वचा पर पपड़ीदार, खुजलीदार चकत्ते हो जाते हैं। यह रोगी के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। सोरायसिस के उपचार के लिए वैसे तो कई उपचार के विकल्प उपलब्ध है लेकिन इसका प्रभावी उपचार अभी तक संभव नहीं हो पाया है।

तीन साल त​क किया गया अध्ययन

यह अध्ययन केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद और दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास के तहत किया गया है। अध्ययन प्रोफेसर नीना खन्ना की देखरेख में त्वचाविज्ञान विभाग में आयोजित किया गया। 3 साल तक किए गए इस अध्ययन में उपचार (Treatment of Psoriasis)  केवल तीन महीनों तक ही किया गया। अध्ययन में 287 लोगों को शामिल किया गया।

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इस अध्ययन में, Psoralens, फोटोटॉक्सिक पौधे-व्युत्पन्न यौगिकों का एक वर्ग, Psoralen प्लस पराबैंगनी A (PUVA) फोटोकेमोथेरेपी के मानक एलोपैथिक उपचार के हिस्से के रूप में 140 रोगियों को दिया गया। और शेष 147 रोगियों को यूनानी फॉर्मूलेशन दिया गया। जिसमें यूनानी कोडित दवाओं UNIM-401 का संयोजन था।

Psoriasis के उपचार में यूनानी दवाएं कितनी दमदार, जानिए स्टडी के परिणाम
Psoriasis के उपचार में यूनानी दवाएं कितनी दमदार, जानिए स्टडी के परिणाम | Photo : freepik

जिसमें एफ. परविफ्लोरा (बार्ग-ए-शाहत्रा), एस. चिराता (चिरैता तल्ख), पी. कोरिलिफोलिया (बाबची) और टर्मिनलिया चेबुला (हेलेला सियाह) शामिल थे। इसके साथ ही सामयिक अनुप्रयोग UNIM-403, जिसमें तिल के तेल में ए. इंडिका (नीम) और सी. कैम्फोरा (कपूर, काफूर) शामिल हैं। छह महीने की अध्ययन अवधि के दौरान, तीन महीने के उपचार (Treatment of Psoriasis) और तीन महीने के फॉलोअप करने के बाद यह पता चला कि सोरायसिस के उपचार में यूनानी उपचार समान रूप से प्रभावी हो सकता है।

अध्ययनकर्ताओं में से एक, डॉ. तमन्ना नाज़ली के अनुसार, सोरायसिस के उपचार के साथ समस्या यह है कि उपचार बंद कर देने कके बाद इसके दोबारा होने का जोखिम बना रहता है। इस अध्ययन में रिलैप्स का निर्धारण उन रोगियों द्वारा किया गया था, जिन्होंने 12 सप्ताह की उपचार अवधि पूरी कर ली थी और 12 सप्ताह की एक और अवधि के लिए नैदानिक ​​सार्थक प्रतिक्रिया (पीएएसआई में ≥50% सुधार) प्राप्त की थी। 24 हफ्तों के फॉलोअप के बाद यह पता चला ​कि 24 सप्ताह में, यूनानी उपचार समूह में 15% रोगियों और पीयूवीए सोल समूह में 18% रोगियों में दोबारा सोरायसिस के लक्षण उभर गए।

यूनानी दवाओं से उपचार में दुष्प्रभाव का जोखिम कम

विशेषज्ञों के मुताबिक, यूनानी उपचार में न्यूनतम दुष्प्रभाव, नैदानिक दुष्प्रभाव (मतली, उल्टी और पेट दर्द) विकसित होने का जोखिम रहता है। इस अध्ययन में केवल दो प्रतिशत लोगों में ही इस तरह के दुष्प्रभाव वाले लक्षण पाए गए। जबकि, जिनका उपचार पीयूवीए समूह के तौर पर किया गया, उनमें इसकी दर 16.4 प्रतिशत पाई गई। विशेषज्ञों का कहना है कि सोरायसिस  के उपचार में यूनानी दवाओं की भूमिका मानक उपचार विधियों के समान ही है। जो बात इसे अन्य पद्धतियों से अलग करती है, वह यूनानी दवाओं से होने वाला न्यूनतम दुष्प्रभाव है।


नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

अस्वीकरण: caasindia.in में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को caasindia.in के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। caasindia.in लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी/विषय के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

 

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