सीओपीडी से बचाव के लिए जागरूकता है जरूरी
नई दिल्ली|टीम डिजिटल :
देशभर में chronic obstructive pulmonary disease (सीओपीडी) बडी समस्या बनती जा रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक देश में होने वाली 9.5 प्रतिशत मौत के पीछे सीओपीडी वजह है। देश में होने वाली मौतों के लिए सीओपीडी (COPD) दूसरा सबसे बडा कारण साबित हो रहा है। संबंधित मामले में लोगों को जागरूक करने की जरूरत है और कोरोना महामारी के बाद इस समस्या को लेकर बेहद सतर्क होने जाने की भी आवश्यकता है।
क्या है सीओपीडी (COPD) :
इस रोग में फेफड़ों को क्षति होती है और फेफड़ों में हवा का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है। सीओपीडी (COPD) रोग धीरे-धीरे बढ़ता है, जिस वजह से कम मामलों में समय रहते इस बीमारी की पहचान हो पाती है। सीओपीडी के भार और प्रभाव को कम करने के लिए इसका समय पर निदान होना जरूरी है। इससे उपचार की दिशा में बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
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सीओपीडी की वजह :
सीओपीडी आम तौर से लंबे समय तक हानिकारक कणों या गैसों, जैसे सिगरेट के धुएं, चूल्हे के धुएं, और प्रदूषक तत्वों आदि के संपर्क में रहने के कारण हो सकता है।
लक्षण :
सांस फूलना, खांसी, बलगम, खराश, और छाती में जकड़न
स्पाईरोमीट्री कर देता है सीओपीडी का खुलासा :
सीओपीडी के निदान के लिए एक लंग फंक्शन टेस्ट किया जाता है, जिसे स्पाईरोमीट्री कहा जाता है। स्पाईरोमीट्री सीओपीडी के लिए एक गोल्ड स्टैंडर्ड डायग्नोस्टिक टेस्ट है और इसमें व्यक्ति द्वारा सांस के साथ खींची और छोड़ी जाने वाली हवा की मात्रा को मापा जाता है। इससे व्यक्ति के लंग फंक्शन का चित्रण होता है। हालांकि, स्पाईरोमीट्री का उपयोग बहुत कम हो रहा है। खासकर प्राथमिक या इलाज के पहले बिंदु पर स्थित फिजिशियन बीमारी के प्रारंभिक चरणों में इसका उपयोग नहीं करते। इसका मुख्य कारण स्पाईरोमीटर्स की कम उपलब्धता और इस क्षेत्र में इनोवेशन की कमी है।
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मेडिकल हिस्ट्री और परीक्षण है जरूरी :
चेस्ट फिजिशियन और पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. क्षितिज कालरा के मुताबिक सीओपीडी के निदान के लिए चिकित्सक मरीज के इतिहास और क्लिनिकल परीक्षण करते हैं। इसमें बीमारी के शुरुआती संकेतों को चूक जाने की संभावना होती है। इसलिए इस बीमारी के शुरुआती लक्षणों का अनुभव करने वाले मरीजों के लिए इलाज के पहले चरण में स्पाईरोमीटर परीक्षण जरूरी होता है। यह चिकित्सा की मानक प्रक्रिया है और इससे रोग के शीघ्र निदान और उपचार में विशेष मदद मिलती है।
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बचाव :
प्रदूषित वातावरण से बचें।
वर्तमान समय में लंग्स से संबंधित नियमित व्यायाम करना बेहद जरूरी है।
फ्री रेडिकल्स को कम करने वाले एंटीऑक्सिडेंट गुणों वाले खाद्य पदार्थों को आहार में शामिल करें।
मौसमी फलों और सब्जियों का सेवन करें।
जितना हो सके धूम्रपान और शराब पीने की प्रवृत्ति को नियंत्रित कर रहें।
वर्ष में एक बार लंग्स कार्यप्रणाली से संबंधित प्राथमिक जांच कराएं।
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