World Osteoporosis Day : आयुर्वेद में भी है उपचार
नई दिल्ली। डॉ. आरपी पाराशर :
ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis), यह रोग तो बुढापे में ही होगा लेकिन समय बदलने के साथ जैसे-जैसे लोगों की जीवनशैली में नकरात्मक बदलाव बढते गए, बुढापा में होने वाले रोग युवाओं पर भी हावी होते चले गए। इन्हीं में से एक रोग
ऑस्टियोपोरोसिस भी है। यह बीमारी अब युवाओं को भी चपेट में ले रही है और इसके प्रति जागरूकता के साथ सतर्कता भी अब बरतने की जरूरत है। जब हड्डियां अत्यधिक कमजोर हो जाती है और जरा सी चोट के बाद ही टूटने लगती है तो इस अवस्था को ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) कहते हैं।
आयुर्वेद (Ayurveda) में रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र ये सात धातुएं मानी गई हैं और क्रमशः धातु से अगली धातु बनती है। इस आयुर्वेदिक सिद्धांत से यह समझा जा सकता है कि हमारा आहार यदि संतुलित नहीं होगा तो हमारे शरीर में धातुएं भली-भांति नहीं बनेंगी। परिणामस्वरूप हमारी हड्डियों के बोन मास पर असर पड़ने लगता है और हड्डियों के बोन मास में कमी आने की वजह से हड्डियों में कमजोरी आने लगती है और व्यक्ति ऑस्टियोपोरोसिस का शिकार हो जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में हड्डियां बेहद कमज़ोर हो जाती हैं जिसकी वजह से हल्के से झटके या खिंचाव से भी फ्रैक्चर की संभावना बढ़ जाती है।
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लक्षण
शुरुआत में ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण सामने नहीं आते हैं लेकिन जब हड्डियों को काफी नुकसान हो चुका होता है।पीठ, हाथों और पैरों में दर्द होना,
शरीर का झुका हुआ लगना,
बिना कारण के लगातार कमज़ोरी महसूस होना और आसानी से थक जाना, आदि तो ओस्टियोपोरोसिस के प्रमुख लक्षण हैं।
कारण:
बढ़ती उम्र : ऑस्टियोपोरोसिस का प्रमुख कारण है। आमतौर पर हमारे शरीर में हड्डियों के बनने और टूटने की प्रक्रिया चलती रहती है। उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों का टूटना तो चलता रहता है लेकिन बनने की प्रक्रिया रुक जाती है जिससे हड्डियां नाजुक हो जाती हैं और ऑस्टियोपोरोसिस होने की संभावना बढ़ जाती है.
मेनोपॉज:- मेनोपॉज़ आमतौर पर 40-50 की उम्र में महिलाओं को होता है। इस स्थिति में महिलाओं के शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं और शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा कम होती चली जाती है जिससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। वहीं पुरूषों की बात करें तो इस उम्र में उनके शरीर में भी टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का स्तर कम हो जाता है जिससे ऑस्टियोपोरोसिस की स्थिति बनने लगती है। हालांकि महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में ये प्रक्रिया धीरे होती है।
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हाइपोथायरायडिज्म :
विटामिन डी और कैल्शियम की कमी, आनुवंशिक प्रवृतियां,
सूर्य के प्रकाश का शरीर पर ना पड़ना, प्रदूषण आदि ओस्टियोपोरोसिस के प्रमुख कारणों में से हैं।
ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव के लिए क्या करना चाहिए :
डेयरी उत्पाद: दूध से बने हुए प्रोडक्ट्स को कैल्शियम का सबसे अच्छा सोर्स माना जाता है। कैल्शियम हड्डियों को मज़बूत करने में अहम रोल निभाता है। इसलिए खाने में दूध, पनीर, दही, छाछ, आदि डेयरी उत्पाद अवश्य सम्मिलित करें।
प्रोटीन: पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए मीट, मछली, ओट्स, राजमा, चना, उड़द, मूंग, आदि का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए
फल और सब्ज़ियां: खाने में ताजे फल और सब्जियां शामिल लें। पालक, शलगम, केला, ओकरा, चीनी गोभी, सरसों का साग, ब्रोकोली, शकरकंदी, संतरा, स्ट्रॉबेरी, पपीता, अनानास, केले, प्रून आदि का नियमित रूप से सेवन करें।
चिकित्सा:
हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी : महिलाओं में मीनोपॉज शुरु होने के बाद हड्डियों का घनत्व बनाए रखने के लिए एस्ट्रोजन थेरेपी दी जाती है। लेकिन एस्ट्रोजन थेरेपी से स्तन कैंसर, एंडोमेट्रियल कैंसर, रक्त के थक्कों के होने के साथ-साथ हृदय सम्बंधित रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। पुरूषों में टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम होने पर टेस्टोस्टेरोन हार्मोन दिया जाता है लेकिन उससे भी कैंसर होने की संभावना रहती है। ऑस्टियोपोरोसिस की चिकित्सा के लिए आयुर्वेदिक दवाएं कपूर्णतः सुरक्षित और प्रभावी है।
जीरा, मेथी, जहरमोहरा, गोदंती, मुक्ताशुक्ति, यशद भस्म, सुरंजान, शिलाजीत, वंशलोचन अलसी, व्हीट जर्म ऑयल, कलौंजी, शिग्रु, आदि आयुर्वेदिक दवाओं में हड्डियों के लिए आवश्यक विटामिन डी, कैल्शियम व अन्य मिनरल्स भरपूर मात्रा में होते हैं और ऑस्टियोपोरोसिस की चिकित्सा में अत्यंत प्रभावी हैं। रोग से बचाव के लिए तीस वर्ष की आयु के बाद इनका उचित मात्रा में सेवन किया जाए तो ओस्टियोपोरोसिस से बचाव संभव है। अश्वगंधा, शतावरी आदि दवाएं पुरुषों व महिलाओं में टेस्टोस्टेरोन व एस्ट्रोजन की कमी नहीं होने देती ।
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Photo : freepiks