Sunday, September 8, 2024
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Virus : लाखों साल से सोये घातक वायरस नींद से जागेंगे!

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क्या ऐसे Virus से लडने के लिए तैयार है इंसान?

नई दिल्ली।टीम डिजिटल : इंसान के अस्तित्व में आने से पहले वायरस (Virus) की मौजूदगी थी। धरती पर ऐसे कितने वायरस हैं, जिनका अगर संपर्क इंसान से हो गया, तो तबाही का खौफनाक मंजर पैदा हो सकता है। वायरस के ऐसे हमलों को रोकना इंसान के लिए नामुमकिन हो जाएगा।

हिम युग से ही सोए हुए हैं खतरनाक वायरस

जानकारों के मुताबिक डायनासोर युग के बाद पृथ्वी पर हिमयुग की शुरूआत हुई। इस युग में ये घातक वायरस (deadly virus) बर्फ के अंदर दब गए। ऐसा विशेषतौर पर धरती के उत्तरी ध्रुव के क्षेत्र आर्कटिक में हुआ। यहां लंबे समय से वायरसों की कई घातक प्रजातियां बर्फ के अंदर निष्क्रिय अवस्था में मौजूद है।

जलवायु के गर्म होने पर इंसानी संपर्क में आने का खतरा

Virus : लाखों साल से सोये घातक वायरस नींद से जागेंगे!
Virus : लाखों साल से सोये घातक वायरस नींद से जागेंगे! Photo : freepik

वैज्ञानिकों के मुताबिक बर्फ के नीचे दबे निष्क्रिय वायरस का जागना काफी हदतक जलवायु पर निर्भर करता है। जिस तरह से जलवायु गर्म होती जा रही है, उससे इन वायरस (Virus) के लिए अनुकूल परिस्थियों के पैदा होने का खतरा भी बढता जा रहा है। जलावायु गर्म होने से बर्फ पिघलेगा और जल के माध्यम से यही वायरस इंसानों के बीच पहुंच जाएंगे।

क्या खतरनाक वायरस से लडने के लिए तैयार है इंसान

वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर यह घातक वायरस सक्रिय होते हैं तो यह बडी आपदा साबित हो सकती है क्योंकि इनसे निपटने के लिए इंसान तकनीकी तौर पर तैयार नहीं है। हाल ही में वायरस अटैके से जुडे दो ऐसे मंजर दुनिया देख भी चुकी है। इनमें से एक कोराना तो दूसरा वर्ष 2015 में सक्रिय होने वाला जॉम्बी वायरस के रूप में सामने आया था। ये दो घटनाएं वैज्ञानिकों के इस दावों चिंता बढाने वाली साबित हो रही है।

बैक्टीरिया की जैव विविधता बदल सकता है वायरस

पीएलओएस कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने तो वैज्ञानिकों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है। इस अध्ययन के तहत एक प्राचीन वायरस और एक आधुनिक बैक्टीरिया के प्रभाव को डिजिटल माध्यम से तैयार किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि वायरस ने बैक्टीरिया समुदाय की प्रजातियों की विविधता को ही बदल कर रख दिया। इस अध्ययन के बाद से खतरनाक वायरसों के जिंदा होने की आशंका तेज हो गई है और इसने विशेषज्ञों की चिंता भी बढा दी है।

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आर्कटिक क्षेत्र में नासा भी कर रहा है अध्ययन

मामले की गंभीरता को देखते हुए नासा ने भी आर्कटिक के क्षेत्र में पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पृथ्वी पर होने वाले प्रभावों को समझने की कवायद शुरू कर दी है। नासा बीते कुछ वर्षों से इस मामले पर अध्ययन कर रहा है। जनवरी 2022 में नासा के एक रिसर्च के जरिए ही पता चला था कि अचानक से पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से कार्बन रिलीज होेने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। लाखों वर्षों से बर्फ में दफन खतरनाक वायरस इस वजह से आजाद हो सकते हैं।

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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

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