कॉम्बिनेशन प्रोटोकॉल के बारे में दावा किया जा रहा है कि ऑटोइम्यून बीमारियों से पीडित मरीजों के लिए यह राहत साबित हो रहा है। कितना दम है इस दावे में…
नई दिल्ली : ऑटोइम्यून बीमारी मेडिकल साइंस के लिए पहेली है तो मरीजों के लिए जीते जी बडी शारीरिक चुनौती। अगर इसकी पीडा का प्रभाव पता लगाना है, तो इससे पीडितों के मन को समझना जरूरी हो जाता है। मरीज लगातार किसी ऐसे उपचार की खोज में जुटे रहते हैं, जो उन्हें राहत दिला सके।
इस तलाश मेें कई बार उन्हें कुछ ऐसा पता चलता है, जो उन्हें राहत दिला सकती है, तो मरीज हर तरह से उस उपाए को अपनाने की कोशिश मेें जुट जाते हैं। उनकी पीडा और मजबूरी का फायदा भी खूब उठाया जा रहा है। राहत की यह खोज कब खत्म होगी किसी को पता नहीं है लेकिन हर किसी के मन में आशा और जिज्ञासा लगातार बनी हुई है।
कुछ वर्षों से मेडिकल गलियारे में ऑटो इम्यून रोगियों को राहत देने वाली एक नई चिकित्सकीय मॉडल के बारे में चर्चा है। इस मॉडल को कॉम्बिनेशन प्रोटोकॉल कहा जाता है। वर्ष 2012-13 के दौरान हैदराबाद और बंगलुरू में ऑटोइम्यून बीमारियों (Autoimmune Disease) से पीडित रोगियों पर इस प्रोटोकॉल का प्रयोग किया गया था और इसके बाद विशेषज्ञों ने इसे एक सफल प्रयोग भी करार दिया था।
The treatment strategies of autoimmune disease may need a …
In spite of all these advances cure or long-lasting remission still remains elusive in majority of systemic Ads, i.e., rheumatoid arthritis (RA), SLE, …
आखिर क्या है यह कॉम्बिनेशन प्रोटोकॉल :
इस प्रोटोकॉल को चार चरणों में लागू किया जाता है। पहले चरण में इम्यून मॉडयूलेशन किया जाता है। इसके बाद आगे के तीन महीनों में एक खास तरह की स्टेम सेल एपीएससी का मरीजों में प्रत्यारोपण किया जाता है। ये सेल्स ऑटोलोगस होते हैं। इन्हें मरीज की ही अस्थिमंज्जा या रक्त से तैयार किया जाता है। जानकारी के मुताबिक इस तरह की सुविधा दुनिया के चुनिंदा देशों में ही उपलब्ध है और सौभाग्य से इसकी उपलब्धता भारत में भी है।
मच्छरजनित रोगों से निपटने में मदद करेंगे कीट वैज्ञानिक
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दावा : इन बीमारियों में मिलती है राहत :
डायबिटीज- टाइप 1
रूमेटाइड अर्थराइटिस
मल्टीपल स्कलीरोसिस
एनकायलूजिंग स्पान्डिलाइसिटस
रियेक्टिव अर्थराइटिस
एम्स : डिप्रेशन पीडितों की होगी जिनोम सिक्वेंसिंग, 1500 मरीजों पर होगा रिसर्च
डिप्रेशन पीडितों को लेकर एक बडी रिसर्च शुरू की गई है। 1500 मरीजों पर की जाने वाली इस रिसर्च में उनकी ज
शुरूआती मरीजों में इसके परिणाम बेहतर :
इम्यून मॉडयूलेशन के बारे में यह दावा किया गया है कि यह ऑटोइम्यून बीमारियों से पीडित शुरूआती अवस्था के मरीजों पर इसके काफी अच्छे परिणाम पाए गए हैं। नेचर पत्रिका के एक लेख के जरिए अमेरिकी वैज्ञानिक डेविड मिलर ने इन बीमारियों के उपचार में नैनो तकनीक के प्रयोग का सुझाव दिया था। इन लाइलाज बीमारियों के उपचार में रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करने वाली दवा कार्टिसोन का उपयोग किया जाता है।
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यह एक स्टेरॉयड है लेकिन इस तरह की दवाओं के लंबे समय तक उपयोग के गंभीर दुष्प्रभाव भी सामने आते हैं। चुनिंदा लेकिन कुछ मामलों में इन दवाओं के प्रयोग करने वाल मरीजों में नए संक्रमण और कैंसर तक होने की बात भी सामने आ चुकी है। इसलिए इन दवाओं से अलग उपचार के लिए एक नए विकल्प की तलाश में विशेषज्ञ लगातार प्रयास कर रहे हैं। दावा है कि कॉम्बिनेशन प्रोटोकॉल वाला यह मॉडल इन दवाओं का बेहतर विकल्प बन सकता है और इसका असर भी अच्छा साबित हो सकता है।
नोट : अगर आप में से किसी ने कॉम्बिनेशन प्रोटोकॉल से उपचार कराया है तो आप हमसे हमारे मेल एड्रेस के जरिए संपर्क कर सकते हैं। हमारी कोशिश रहेगी कि आगे लेख में हम इस उपचार तकनीक के बारे में इसके विशेषज्ञों से बातचीत कर और जानकारी साझा करेंगे।
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