World Elder Abuse Awareness Day के दिन जारी किया रिपोर्ट
नई दिल्ली : वर्ल्ड एल्डर एब्यूज अवेयरनेस डे (World Elder Abuse Awareness Day) के अवसर पर बुधवार को हेल्पएज इंडिया ने अपनी राष्ट्रीय रिपोर्ट ‘ब्रिज द गैप -अंडरस्टैंडिंग एल्डर नीड्स’ जारी किया। इस रिपोर्ट (Report on the condition of the elderly) में दिए गए आंकडों के मुताबिक देश में बुजुर्गों की आबादी लगभग 138 मिलियन है। जो देश की कुल आबादी का लगभग 10 प्रतिशत है।
यह संस्था पिछले दो वर्षों से बुजुर्गों के हालात (conditions of the elderly )को लेकर अध्ययन में जुटी हुई थी। अध्ययन (Report on the condition of the elderly) में यह भी जानने की कोशिश की गई है कि कोरोना महामारी का बुजुर्गों की जिंदगी पर किस तरह का प्रभाव पडा है। अध्ययन में बुजुर्गों की रोजमर्रा की जिंदगी से लेकर उनके अनुभव की संपूर्णता तक का जायजा लिया गया है। इस अध्ययन का उद्देश्य उन पहलुओं को उजागर करना है, जो बुजुर्गों की खुशहाल जिंदगी (conditions of the elderly) में बाधा बनकर खडे हैं।
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हेल्पएज इंडिया के सीईओ रोहित प्रसाद के मुताबिक अध्ययन से जो जानकारी मिली उसके विश्लेषण के बाद कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जो हमें बुजुर्गों के जीवन (conditions of the elderly) को नए सिरे से आकलन करने के लिए मजबूर कर देगी।
अध्ययन में 4,399 बुजुर्गों को किया गया शामिल :
अध्ययन (Report on the condition of the elderly)के दौरान वृद्धावस्था में आमदनी और रोजगार, स्वास्थ्य और बेहतरी, बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और सुरक्षा, और बुजुर्गों के सामाजिक और डिजिटल समावेशन से संबंधित मामलों को बारीकी से समझने की कोशिश की गई है। यह कवायद भारत के 22 शहरों में बड़े पैमाने पर ए, बी, सी श्रेणियों में 4,399 बुजुर्ग उत्तरदाताओं और उनकी देखभाल करने वाले 2,200 युवा वयस्कों से मिले जवाबों पर आधारित है।
रिपोर्ट (Report on the condition of the elderly) में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर 47 प्रतिशत बुजुर्ग अपनी आय के स्रोत के लिए अपने परिवार पर आश्रित हैं। वहीं, 34 प्रतिशत बुजुर्गों का जीवन पेंशन और नकद हस्तांतरण पर निर्भर करता है। राजधानी दिल्ली की बात की जाए तो यहां 57 प्रतिशत बुजुर्ग अपने परिवार पर आश्रित हैं।
वहीं 63 प्रतिशत बुजुर्ग आबादी पेंशन और नकद हस्तांतरण के जरिए अपने जीवन का निर्वहन कर रही है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि दिल्ली में बुजुर्गों की एक बडी तादाद है, जो परिवार के अलावा पेंशन पर भी आश्रित हैं।
आमदनी से बुजुर्ग निराश :
सर्वे में जब बजुर्गों से उनकी आमदनी के बारे में पूछा गया तो राष्ट्रीय स्तर पर 52 प्रतिशत बुजुर्गों ने अपनी आमदनी को लेकर निराशा व्यक्त करते हुए इसे अपर्याप्त करार दिया। वहीं 40 प्रतिशत बजुर्गों ने आर्थिक सुरक्षा को लेकर चिंता जताई। इसके पीेछे दो प्रमुख कारण बताए गए। एक तो उनकी बचत या आमदनी उनके खर्चों से कम है। दूसरा पेंशन की जो रकम मिलती है, वह उनके लिए अपर्याप्त है।
यह स्थिति इस बात की ओर ईशारा करती है कि बुजुर्गों के लिए वित्तीय नियोजन और सामाजिक सुरक्षा, इन दोनों मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है।
हालांकि, राजधानी दिल्ली के 52 प्रतिशत बुजुर्गों ने अपनी आय को पर्याप्त बताया। वहीं 48 प्रतिशत ने आमदनी जरूरत के मुकाबले कम होने की बात को स्वीकार किया। कुलमिलाकर दिल्ली के 71 प्रतिशत बुजुर्गों को लगता है कि वह वित्तीय रूप से सुरक्षित हैं।
शहर से लेकर गांव तक चुनौतियों का सामना करने को मजबूर हैं बुजुर्ग :
इस रिपोर्ट (Report on the condition of the elderly) में एक और पहलू उजागर हुई है। अध्ययन बडे पैमाने पर शहरी मध्यम वर्ग की स्थिति को तो बयान करता ही है बल्कि ग्रामीण बुजुर्गों की चुनौतियों और उनके खराब हालत (conditions of the elderly) को उजागर करता है। इन लोगों के पास न तो आमदनी का कोई श्रोत है और न पेंशन का सपोर्ट। संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में प्रतिमाह इन्हें 3000 रुपए बतौर पेंशन दिए जाने की सिफारिश की है। यह सुनिश्चित करना अब और जरूरी इसलिए भी हो जाता है क्योंकि महामारी के बाद करीब 71 प्रतिशत बुजुर्ग बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं।
जबकि, इनमें से 36 प्रतिशत बुजुर्ग काम करना चाहते हैं। इनमें से 40 प्रतिशत जितना मुमकिन हो उतना काम करना चाहते हैं। 61 प्रतिशत बुजुर्गों की राय है कि बुजुर्गों के लिए उपलब्ध रोजगार उनके लिए सही नही है। राजधानी दिल्ली के 87 प्रतिशत बुजुर्ग अपने लिए उपलब्ध कार्य नहीं कर रहे हैं। 40 प्रतिशत बुजुर्गों ने यह भी माना कि उनके लिए रोजगार के अवसर मौजूद हैं। दिल्ली के 44 प्रतिशत बुजुर्ग सेवानिवृत्ति के बाद भी काम करने की इच्छा रखते हैं।
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समाज में योगदान देना चाहते हैं बुजुर्ग :
लगभग 30 प्रतिशत बुजुर्गों ने स्वयंसेवा करने और समाज में योगदान देने की इच्छा जताई। राजधानी दिल्ली में, लगभग 48 प्रतिशत बुजुर्गों ने भी स्वयंसेवा करने और समाज में योगदान देने को उत्सुक बताया। जमीन पर जो हालात (conditions of the elderly) हैं, उससे यह पता चलता है कि महज 16 प्रतिशत बुजुर्ग ही स्वयंसेवा कार्य में अपना योगदान दे पा रहे हैं।
क्या चाहते हैं बुजुर्ग :
- 45 प्रतिशत बुजुर्गों ने वर्क फ्रॉम होम कल्चर को खुद के लिए बेहतर बताया।
- 34 प्रतिशत ने कामकाजी और नौकरी करने वाले बुजुर्गों के प्रति और अधिक सम्मान दिए जाने की बात कही।
- 29 प्रतिशत ने सेवानिवृत्ति आयु को बढाने और बुजुर्गों को ध्यान में रखते हुए विशेष रोजगार के अवसर और नौकरी पैदा करने की बात कही।
- दिल्ली के 74 प्रतिशत ऐसे लोग जो बुजुर्गों की देखभाल करते है और 60 प्रतिशत बुजुर्गों ने वर्क फ्रॉम होम कल्चर को इनके लिए सबसे बेहतर बताया।
परिजनों के व्यवहार पर क्या कहते हैं बुजुर्ग :
- 52 प्रतिशत बुजुर्गों ने स्वीकार किया कि उन्हें परिवार के सदस्यों द्वारा प्यार और देखभाल की जाती है।
- 78 प्रतिशत ने माना कि उनका परिवार उन्हें बेहतर खान-पान प्रदान करता है।
- 41 प्रतिशत ने कहा कि उनका परिवार उनके उपचार और दवा का खर्च उठाता है।
- 87 प्रतिशत बुजुर्गों ने माना कि उन्हें अपने निवास के आस-पास ही स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध है।
- 78 प्रतिशत बुजुर्गों ने ऐप-आधारित/ऑनलाइन स्वास्थ्य सुविधाओं के न होनेे पर निराशा भी व्यक्त की।
- 67 प्रतिशत बुजुर्गों ने बताया कि उम्र के इस पडाव पर जहां उन्हें सबसे अधिक देखभाल की जरूरत है लेकिन उनके पास स्वास्थ्य बीमा की सुविधा नहीं है।
- महज 13 प्रतिशत बुजुर्गों ने माना कि उन्हें सरकारी बीमा योजनाओं की कवर उपलब्ध है।
- दिल्ली के 98 प्रतिशत बुजुर्गों ने माना कि उनके निवास के आसपास उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं मिल जाती है।
- 81 प्रतिशत वे लोग या परिजन जो बुजुर्गों की देखभाल करते हैं, उन्होंने माना कि वरिष्ठ नागरिकों को और अधिक स्वास्थ्य सुविधाएं देने की आवश्कता है।
- इनमें से ज्यादातर लोगों ने कोरोना महामारी के इस दौर में बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा को और मजबूत करने की बात कही है।
- 49 प्रतिशत बुजुर्गों ने बेहतर स्वास्थ्य बीमा और स्वास्थ्य सुविधाओं के उपलब्ध करवाए जाने की इच्छा जताई।
- 42 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें अपने परिजनों से और अधिक सपोर्ट की जरूरत है।
जिंदगी के इस पडाव में बुजुर्ग अकेले क्यों :
- देशभर के 59 प्रतिशत बुजुर्ग समाज में खुद के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को सामान्य मानते हैं। यह आंकडें बहुत कुछ बयां करते हैं।
- 10 प्रतिशत बुजुर्गों ने खुलेतौर पर खुद के साथ दुर्व्यवहार होने की बात स्वीकार की है।
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बुजुर्गों ने बताया कौन करता है प्रताडित :
- रिश्तेदार – 36 प्रतिशत
- बेटे -35 प्रतिशत
- बहू – 21 प्रतिशत
57 प्रतिशत बुजुर्गों ने माना कि होता है अनादर :
- मौखिक दुर्व्यवहार – 38 प्रतिशत
- उपेक्षा- 33 प्रतिशत
- आर्थिक शोषण – 24 प्रतिशत
- मारपिटाई या शारीरिक शोषण – 13 प्रतिशत
दिल्ली के हालात :
- 74 प्रतिशत को लगता है इस तरह के दुर्व्यवहार समाज में प्रचलित हैं।
- 12 प्रतिशत खुद पीडित होने की बात स्वीकार की है।
- 35 प्रतिशत बुजुर्गों ने ऐसे दुर्व्यवहार के पीछे अपने बेटों को जिम्मेदार बताया।
- 44 प्रतिशत बुजुर्ग ने दुर्व्यवहार के लिए बहु को अपराधी माना।
दुर्व्यवहार के विरोध में परिवार से बातचीत कर दिया बंद :
- राष्ट्रीय स्तर पर 47 प्रतिशत बुजुर्गों ने माना कि दुर्व्यवहार के विरोध में उन्होंने परिवार से बातचीत बंद कर दी।
- दिल्ली के 83 प्रतिशत बुजुर्गों ने कहा कि उन्होंने परिवार से बात करना बंद कर दिया।
- दुर्व्यवहार की रोकथाम के बारे में बातचीत करने पर 58 प्रतिशत बुजुर्गों ने कहा कि उनके परिवार के सदस्यों को परामर्श की जरूरत है।
- 56 प्रतिशत बुजुर्गों ने समयबद्ध निर्णयों के दुरुपयोग से निपटने पर सहमति जताई और नीतिगत स्तर पर उम्र के अनुकूल प्रतिक्रिया प्रणाली को लागू करने पर बल दिया।
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यही पता नहीं कि शिकायत करें तो आखिर कहां :
- 46 प्रतिशत बुजुर्गों यह पता ही नहीं है कि वह अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार की शिकायत कहां करें।
- 13 प्रतिशत ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के रखरखाव और कल्याण अधिनियम, 2007’ के बारे में अवगत हैं।
- 38 प्रतिशत दिल्ली के बुजुर्गों का कहना है कि वे दुर्व्यवहार की शिकायत से संबंधित प्रक्रिया से अवगत नहीं हैं।
- 80 प्रतिशत बेंगलुरू और रायपुर के 84 प्रतिशत बुजुर्गों ने ऐसी किसी प्रक्रिया के प्रति किसी तरह की जानकारी नहीं होने की बात कही।
- 79 प्रतिशत बुजुर्गों को यह लगता है कि उनका परिवार उन्हें पर्याप्त समय नहीं देता है।
- 82 प्रतिशत बुजुर्ग अपने परिवार के साथ रह रहे हैं।
- 59 प्रतिशत की इच्छा है कि उनका परिवार उन्हें और ज्यादा समय दे।
- 78 प्रतिशत बुजुर्गों ने माना कि उनकी देखभाल करने वाले लोग परिवार के मसलों पर निर्णय लेने में उन्हें भी शामिल करते हैं।
- 43.1 प्रतिशत बुजुर्गों ने युवा पीढ़ी द्वारा खुद के उपेक्षा की बात स्वीकार की।
कितने बुजुर्गों के पास है डिजिटिल तकनीक उपलब्ध :
- 71 प्रतिशत बुजुर्गों के पास स्मार्टफोन नहीं है।
बुजुर्गों के लिए फोन का उपयोग कहां तक है सीमित :
- कॉलिंग- 49 प्रतिशत
- सोशल मीडिया – 30 प्रतिशत
- बैंकिंग लेनदेन – 17 प्रतिशत
- स्मार्ट फोन के इस्तेमाल की प्रक्रिया सीखने के लिए दूसरों पर निर्भर बुजुर्ग – 34 प्रतिशत
- दिल्ली में स्मार्टफोन का उपयोग करने वाले बुजुर्ग- 47 प्रतिशत
- सिर्फ काल करने वाले बुजुर्ग- 44 प्रतिशत
- सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले – 37 प्रतिशत
- दिल्ली के 76 प्रतिशत बुजुर्ग चाहते हैं कि उन्हें डिजिटल तकनीक के उपयोग के लिए प्रशिक्षित किया जाए।
World Elder Abuse Awareness Day : पूरा जीवन समर्पित करने के बाद भी अपने ही घर में अकेले हैं बुजुर्ग
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