Wednesday, April 17, 2024
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ल्यूपस है तो इन पांच चीजों को लेकर रहे सतर्क

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ल्यूपस (Lupus)एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर (Autoimmune Disorder) है। ल्यूपस (एसएलई) जोड़ों, त्वचा, गुर्दे, रक्त कोशिकाओं, मस्तिष्क, हृदय और फेफड़ों को प्रभावित कर सकता है। इसके लक्षण अलग-अलग तरह के हो सकते हैं। प्रमुख लक्षणों में थकान, जोड़ों का दर्द, दाने और बुखार शामिल हो सकते हैं। यह लक्षण समय-समय पर तेज हो सकते हैं और कुछ अंतराल के बाद इनसे थोडी राहत भी मिल सकती है। ल्यूपस का कोई प्रभावी उपचार उपलब्ध नहीं है। इसे भी कुछ दवाइयों और थेरेपी की मदद से नियत्रित किया जा सकता है।


नई दिल्ली :  ल्यूपस (Lupus) वाले मरीजों को इन पांच चीजों से जितना हो सके बचने की जरूरत होती है। इन पांच बातों का ध्यान रखकर आप ल्यूपस की परेशानियों को थोडा कम कर सकते हैं ।

1. सूरज की रोशनी और यूवी किरणें

ल्यूपस (Lupus) फाउंडेशन ऑफ अमेरिका के मुताबिक, यूवी विकिरण के प्रति संवेदनशीलता और प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं ल्यूपस के रोगियों में होती है। चाहे सूरज की रोशनी से हों या फ्लोरोसेंट बल्ब जैसे कृत्रिम इनडोर प्रकाश से – 70 प्रतिशत रोगियों को इससे समस्या होती है। यहां तक ​​​​कि कुछ ही मिनटों के संपर्क में थकान, घाव, चकत्ते और बुखार भी उभर सकता है। इस तरह की समस्या दिनों से लेकर हफ्तों तक परेशान कर सकती है। यूवी विकिरण कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक ल्यूपस रोगियों के लिए ठंडे मौसम और छाया मनोवैज्ञानिक रूप से भी राहत पहुंचाने वाली साबित हो सकती है।

ल्यूपस के रोगी यूवीए और यूवीबी किरणों को अवरुद्ध करने वाले एसपीएफ़ 70 या उससे अधिक के सनस्क्रीन का उपयोग करके यूवी क्षति की प्रक्रिया को कम कर सकते हैं। ल्यूपस से पीडित मरीज को बाहर समय बिताते समय एसपीएफ़-युक्त कपड़े भी पहनने चाहिए, जब सूरज की गर्मी तेज हो तो उन्हें बाहर निकलने से बचना चाहिए। फ्लोरोसेंट बल्ब की रोशनी में इन्हें इसके प्रकाश से बचाने वाले कवर का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए 380 से 400 की नैनोमीटर रीडिंग वाले कवच का इस्तेमाल किया जा सकता है।

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2. तनाव

कई अध्ययनों में यह स्पष्ट हुआ है कि शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक तनाव फ्लेरेस के स्तर को बढाता है। ऐसे ही एक सर्वेक्षण में शामिल 85 प्रतिशत रोगियों ने तनाव को एक ट्रिगर बताया है। शोधकर्ता सक्रिय रूप से ऑटोइम्यून बीमारी वाले लोगों में प्रतिरक्षा प्रणाली पर तनाव से संबंधित प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि तनाव-ट्रिगर न्यूरोएंडोक्राइन हार्मोन साइटोकिन के स्तर को प्रभावित करते हैं। इसे सीधे तौर पर इम्यूनोलॉजी विकार के कारण के तौर पर देखा जाता है।
“तनाव से पूरी तरह बचना किसी भी व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। आज के दौर में तनाव किसी को भी हो सकता है। जबकि, तनाव प्रबंधन करके हम काफी हद तक इससे होने वाली परेशानियों से बच सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक शारीरिक व्यायाम, विशेष रूप से, तनाव कम करने के लिए कारगर माना जाता है। इसकी मदद से तनाव को प्रबंधित कर सकते हैं। तनाव को कम करने में म्यूजिक थेरेपी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

हालांकि, गंभीर दर्द, सांस लेने में तकलीफ, थकान और चलने-फिरने की समस्या से जूझ रहे ल्यूपस के रोगियों के लिए व्यायाम समस्या बढाने वाला भी साबित हो सकता है। ऐसे में इन्हें ध्यान और प्रार्थना, दिमागीपन अभ्यास, संज्ञानात्मक व्यवहार उपचार, संगीत, कला चिकित्सा, योग और श्वास अभ्यास जैसी अन्य तनाव-घटाने की तकनीकों पर विचार करना चाहिए।

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3. संक्रमण

संक्रमण ल्यूपस रोगियों के लिए बडी चुनौती है। इनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कॉम्प्रोमाज्ड होती है। ऐसे में संक्रमण होने का जोखिम बना रहता है। ल्यूपस रो​गियों की मौत के पीछे संक्रमण एक प्रमुख कारण है। संक्रमण की स्थिति में या उसके ठीक बाद मरीजों को थकान, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, बुखार, चकत्ते और मुंह और नाक के घावों में वृद्धि दिखाई दे सकती है। किसी भी संक्रमण के साथ, विशेष रूप से यदि बुखार मौजूद है, तो यह निर्धारित करना जरूरी होता है कि बुखार बैक्टीरिया, वायरस या प्रोटोजोआ के कारण हो रहा है। ऐसी स्थिति में तत्काल विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श लें और जरूरी जांच कराएं।

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4. गर्भावस्था, मासिक धर्म चक्र और हार्मोन

शोध और अध्ययनों के माध्यम से वैज्ञानिकों ने शरीर में लक्षणों और हार्मोन के स्तर के बीच करीबी संबंध पाया है। अध्ययनों से पता चलता है कि रोगियों में मासिक धर्म चक्र शुरू होने से ठीक पहले (हार्मोनल उछाल चरण) और उनकी अवधि के दौरान फ्लेरेस के स्तर में बढोत्तरी होती है। इस दौरान सबसे अधिक थकान और दर्द के स्तर में वृद्धि और रोग गतिविधि में समग्र वृद्धि के बारे में रोगियों ने बताया है।

गर्भावस्था को ल्यूपस के कुछ रोगियों में बीमारी की गतिविधि और लक्षणों में वृद्धि के लिए भी ट्रिगर माना जाता है। विशेषज्ञों का ऐसा भी मानना है कि यह हार्मोन में बदलाव, जैसे कि एस्ट्रोजन में वृद्धि के कारण होता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि गर्भावस्था के दौरान कम से कम 50 प्रतिशत महिलाएं ल्यूपस गतिविधि में वृद्धि का अनुभव करती हैं।

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5. भोजन और आहार

ल्यूपस के तेज लक्षण वाले मरीजों के मुताबिक विशिष्ट खाद्य पदार्थों की बदौलत शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि के साथ-साथ लक्षणों और थकान को कम करने में मदद मिली है। आहार संबंधी प्रतिक्रियाएं प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग अलग हो सकती है। यह अक्सर एलर्जी या संवेदनशीलता की स्थिति से जुड़ी हो सकती हैं। कई अध्ययनों से पता चलता है कि एक अति प्रतिक्रियाशील प्रतिरक्षा प्रणाली एलर्जी, अस्थमा, एक्जिमा और अन्य अतिसंवेदनशीलता की प्रवृत्ति का कारण बन सकती है।

विशेषज्ञों के मुताबिक हमें अपने आहार में शामिल उन तत्वों का पता लगाना चाहिए जो ऑटोइम्यून बीमारियों के लक्षण को बढाते हैं। हम उन्हें खाने से बचते हुए लक्षणों को नियंत्रित कर सकते हैं। ल्यूपस के लिए किसी एक आहार की सिफारिश नहीं की जा सकती है क्योंकि रोगी से रोगी में संवेदनशीलता और एलर्जी अलग-अलग तरह की होती है।

सामान्य तौर पर इन्हें संतृप्त और ट्रांस वसा, बहुत अधिक नमक, अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और चीनी से बचने के लिए कहा जाता है। ये खाद्य पंदार्थ लक्षणों को ज्यादा बढा सकते हैं। आहार समायोजन में मेडिकल एलर्जिस्ट की मदद ली जा सकती है।


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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

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